रमणीक, मनोहर व लाजवाब पर्यटन स्थल अल्मोड़ा

उत्तराखंड राज्य का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण नगर है अल्मोड़ा। ज़िला मुख्यालय होने के कारण भी यह नगर व्यस्त व आधुनिकता लिए हुए है। कुमाऊं की संस्कृति, परम्परा, रहन-सहन व खान-पान सबकी विरासत यहां देखने को मिलती है। पहाड़ियों में बसा यह स्थान अत्यंत रमणीक, मनोहर व लाजवाब है। टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें, ऊपर-नीचे बने सुन्दर मकान, पारम्परिक संस्कृति के साथ-साथ विकास, आधुनिकता व फैशन का मिश्रित रूप यहां देखने को मिलता है। लगभग पूरे ही वर्ष यहां देशी व विदेशी सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता है। समुद्रतल से 1646 मी. की ऊंचाई पर यह नगर बसा है। इसका क्षेत्र 11.9 किलोमीटर में फैला हुआ है। यह पर्वत की चोटी पर बसा है। इस स्थान का पौराणिक महत्व भी है। स्कन्द पुराण के मानसखंड में इसका उल्लेख मिलता है। कोशिका (कोसी) और शाल्मली (सुयाल) नदी के बीच एक पवित्र व पावन पर्वत स्थित है। यह पर्वत अल्मोड़ा ही है। इस स्थान का पौराणिक , सांस्कृतिक, ऐतिहासिक व भौगोलिक महत्व रहा है। इतिहास के अनुसार सन् 1563 ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याण चंद ने आलमनगर नाम का एक नगर बसाया था। यूं तो चंदवंश की राजधानी चम्पावत थी, परन्तु राजा बालो को यह स्थान अत्यंत रमणीक व सुंदर लगा और यहीं राजधानी परिवर्तित कर दी। यही आलमनगर बाद में अल्मोड़ा नाम से प्रसिद्ध हो गया। सन् 1790 आते-आते गोरखों का आक्रमण कुमाऊं अंचल में होने लगा, गोरखा चतुर, चालाक व वीर जाति के लोग थे। सन् 1816 में गोरखों को हराकर यहां ब्रिटिश हुकूमत काबिज़ हो गई। अंग्रेज़ों के खिलाफ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अल्मोड़ा का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। यहां के कई वीर व सेनानियों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ जमकर लोहा लिया, यहां एक ज़िला जेल भी है जहां पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू भी रहे। यहां पहुंचना बहुत आसान है। सुगमता से पहाड़ी रास्तों का आनंद लेते हुए मोटर मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। हल्द्वानी, काठगोदाम रेलवे स्टेशन से यात्री बस, कार, टैक्सी आदि के ज़रिए यहां तक पहुंच सकते हैं। ज्ञात हो कि काठगोदाम रेलवे स्टेशन यहां का अंतिम रेलवे स्टेशन है। यहां से आगे को पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है। भवाली होते हुए हम आगे बढ़ते हैं तो 7 किलोमीटर आगे नीम करौली बाबा की स्मृति में बनाया गया भव्य हनुमान मंदिर है। हनुमान जी के अलावा यहां अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी रखी गई हैं। यहां ठहरने के लिए धर्मशाला भी है। सड़क के किनारे बसा यह स्थान अत्यंत ही मनोरम है। हर वर्ष 15 जून को यहां वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है। यह स्थान कैंची कहलाता है। गरम पानी एक ऐसी जगह है जहां पर यात्री ठहर कर चाय, पकौड़े व भोजन करते हैं। यहां हर दुकान में स्थानीय भोजन आलू के गुटके, ककड़ी का रायता अत्यंत स्वादिष्ट होता है। पहाड़ के स्रोतों का शुद्ध पानी इस खाने में स्वाद और अधिक बढ़ा देता है। यहां पर पहाड़ी सब्ज़ियां मिलती हैं। थोड़ा आगे जाने पर खैसा का झूलता पुल मिलेगा। यहां से एक रास्ता रानीखेत को व दूसरा रास्ता अल्मोड़ा की ओर जाता है। ककड़ीघाट होकर अल्मोड़ा नगर में प्रवेश करते हैं। अल्मोड़ा नगर में सैलानियों के ठहरने के लिए सारी आधुनिक सुविधाओं के साथ होटल मिल जाते हैं। इसके अलावा हालीडे होम, सर्किट हाऊस, सार्वजनिक निर्माण विभाग का विश्राम गृह आदि हैं। यहां लाला बाज़ार, जो पाटालो (पत्थरों) से बना है, परन्तु आधुनिकता की दौड़ में कभी-कभी प्राचीनता गुम हो जाती है। वही यहां भी हुआ। इसके अलावा कारखाना बाज़ार, जौहरी बाज़ार, पल्टन बाज़ार आदि भी हैं।  इसके पूर्वी छोर पर कत्यूरी शासकों द्वारा बसाया गया किला खगमरा है, जो चंद राजाओं द्वारा बनाया गया मल्लाताल भी है। यहां एक ज़िला दावनी भी है। नगर में गढ़वाल-कुमाऊ की इष्टदेवी भगवती नंदा-पार्वती का मंदिर है जहां प्रतिवर्ष भाद्रपद (सितम्बर) माह में नंदाष्टमी के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है। जहां दूर-दूर से भक्त आते हैं। केले के तनों व पत्तों द्वारा मां की मूर्तियां बनाई जाती हैं। यहां झोड़ा, चांजरी, छपेरी जैसे पारम्परिक नृत्यों का आयोजन होता है। इसके अलावा, भिपुर सुंदरी, रघुनाथ मंदिर, महावीर मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, भैरव मंदिर, उल्का देवी मंदिर स्थित हैं।अल्मोड़ा जाकर अगर चितई मंदिर के दर्शन नहीं किए तो यात्रा अधूरी-सी लगेगी। नगर से 13 कि.मी. दूर यहां के प्रसिद्ध लोक देवता ‘गोल्ल जी’ का मंदिर है। यहां इन्हें ‘न्याय के देवता’ के रूप में मान्यता मिली है। इस मंदिर में हज़ारों की संख्या में घंटियां हैं जो भक्तों द्वारा भेंट की जाती हैं। इसके अलावा कसारदेवी, कालीमठ, सिमतोला, मोहन जोशी पार्क व राजकीय संग्रहालय, ब्राइट एंड कॉर्नर घूमने योग्य हैं। नृत्य सम्राट उदयशंकर को यह स्थान इतना पसंद आया कि उन्होंने यहां नृत्यशाला बनवाई जहां शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर व स्वामी विवेकानंद जैसे युग परिवर्तक व्यक्तित्व भी आए हैं। अल्मोड़ा नगर शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। यहां से पढ़कर कई हस्तियां ऊंचे-ऊंचे मुकामों तक पहुंची हैं। कुमाऊ विश्वविद्यालय परिसर अल्मोड़ा जहां लगभग सभी सेवाओं व विषयों को पढ़ाया जाता है। इसके अलावा जी.जी.आई.सी., जी.आई.सी. सहित कई इंटर कालेज व सरकारी व गैर-सरकारी निजी स्कूल हैं। जहां विद्यार्थी ज्ञानार्जन करते हैं, खेलों में भी यहां के खिलाड़ी अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा का परिचय दे रहे हैं। महिला क्रिकेट खिलाड़ी एकता बिष्ट सहित बैडमिंटन आदि में खिलाड़ियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ज़ोरदार धमक दी है। यूं तो यहां साल भर घूमने का मौसम है, परन्तु बसंत से जून तक यहां सुहावना मौसम पर्यटकों को लुभाता है। सर्दियों में बर्फ गिरने से यहां की पहाड़ियां सफेदी की चादर से ढक जाती हैं जो अद्भुत दृश्य होता है। इसी तरह रात को शहर के एक कोने से देखो तो पूरा शहर रोशनी से नहाया हुआ लगता है। रातों को जलने वाली लाइट्स यूं टिमटिमाती है मानो हज़ारों सितारे जमीं पर आ गए हों। हालांकि पारम्परिक बाज़ार अब आधुनिकता का चोला ओढ़ चुके हैं, फिर भी अब भी यहां कुमाऊं की परम्पराएं, संस्कृति, कला आदि जीवित हैं। खुलकर सबका स्वागत करने वाला यह शहर घूमने व प्रकृति का आनंद लेने को सर्वोत्तम स्थान है।