ग्लोबल वार्मिंग के चलते बिगड़ रही है बादलों की बनावट

मनुष्य की तमाम विनाशकारी हरकतों की वजह से हर गुजरते दिन के साथ वातावरण बहुत अस्त-व्यस्त और अनिश्चित होता जा रहा है। जिस तरह इस बार मई माह में लगातार उत्तर भारत में आंधी तूफान को दौर चला है, वह स्वाभाविक रूप से बादलों की बिगड़ी स्थिति का नतीजा है। दरअसल ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के स्वाभाविक उतार-चढ़ाव पर जबरदस्त असर पड़ा है। मई के दूसरे सप्ताह में उत्तर भारत के अनेक इलाकों में मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है। वैज्ञानिकों के विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक मौसम में मिजाज में आयी इस गड़बड़ी का कारण आसमान पर तैरते बादलों की स्वाभाविक गति में आया अनियंत्रित बदलाव है। दरअसल बादल जब अपनी स्वाभाविक गति से आसमान में तैरते हैं तो ये वातावरण को न तो आवश्यकता से ज्यादा गरम होने देते हैं और न ठंडा। पृथ्वी के ताप संतुलन पर बादल के प्रभाव को वाट/वर्ग मीटर ऊर्जा प्रवाह के रूप में मापा जाता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में बादल 100 वाट प्रति वर्ग मीटर की दर से सौर ऊर्जा परावर्तित करके पृथ्वी को ठंडा रखते हैं। पृथ्वी को ठंडा करने की इस प्रक्रिया को बादलों द्वारा पृथ्वी से परावर्तित होने वाली सौर ऊर्जा को रोकने से उत्पन्न ग्रीन हाऊस प्रभाव से संतुलित रखा जाता है। इस प्रकार बादलों के समीप का वायुमंडल गर्म रहता है तथा पृथ्वी की सतह अपेक्षाकृत ठंडी रहती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से दूर के क्षेत्रों में बादल सौर ऊर्जा को 50 से 100 वाट प्रति वर्ग मीटर की दर से परावर्तित करके पृथ्वी को ठंडा रखते हैं। भूमंडल के लिए प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बादल समस्त भूमंडल के गर्म होने की प्रक्रिया को औसतन 13.2 वाट प्रति वर्ग मीटर की दर कम कर देते हैं। एक अनुमान के अनुसार यदि आसमान में बादल बिल्कुल ही न रहें परंतु अन्य सभी चीजें जैसी और जितनी हैं उतनी ही रहें तो सौर ऊर्जा पूरी पृथ्वी को इस तरह गर्म करेगी जैसे पूरे भूमंडल पर प्रत्येक 5 वर्ग मीटर जगह में एक 60 वाट का बल्ब लगा हो। जलवायु विज्ञानी मानते हैं कि पृथ्वी पर ऊष्मा का वितरण सुनिश्चित करने, पृथ्वी के मौसम को और पृथ्वी की जलवायु को निर्धारित करने में बादलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, बादलों का निर्माण भी पृथ्वी की गर्माहट से प्रभावित होता है। इस शताब्दी के जलवायु संबंधी आंकड़ें बताते हैं कि शताब्दी के सबसे गर्म वर्षों में आसमान में बादलों की उपस्थिति औसत से अधिक रही है। इन बादलों ने पृथ्वी को और अधिक गर्म होने से बचाया है। असामान में छाए बादल धरती की ओर आने वाले सूरज के अलबीडो प्रभाव को दोगुना कर देते हैं, लेकिन साथ ही बादल पृथ्वी से परावर्तित होकर लौटने वाली ऊष्मा को लौटने नहीं देते और पृथ्वी की सतह को गरम रखते हैं। इस प्रकार ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाते हैं। समय, स्थान और बादलों की किस्म के अनुसार ये परस्पर विरोधी प्रभाव किस प्रकार घटते-बढ़ते रहते हैं? यह प्रश्न जलवायु विज्ञानियों की जिज्ञासा का विषय रहा है। केवल कुछ ही समय पहले तक वैज्ञानिक इन प्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से मापने में सक्षम नहीं थे। परंतु, अब स्थितियां काफी स्पष्ट हैं। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि महासागर पृथ्वी का सबसे अधिक अंधकारमय क्षेत्र है जो उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में से केवल दस प्रतिशत सौर ऊर्जा परावर्तित करते हैं। इनके विपरीत ध्रुवीय प्रदेश सबसे अधिक चमकीले क्षेत्र हैं, लेकिन सहारा और सऊदी अरब के रेगिस्तानों से भी करीब 40 प्रतिशत सौर ऊर्जा परावर्तित होती है। भूस्थलों में उष्णकटिबंधीय वर्षा वन सबसे अंधकारमय क्षेत्र है जहां से सौर ऊर्जा का केवल 10-15 भाग ही परावर्तित हो पाता है। बादल बनाने में नमी का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। जिस क्षेत्र में नमी जितनी अधिक होगी उस क्षेत्र में बादल उतने ही अधिक बनेंगे। यही कारण है कि रेगिस्तान से ऊष्मा के अधिक परावर्तित होने के बावजूद नमी की कमी के कारण बादल कम बनते हैं। अब तक की जानकारी से यह स्पष्ट है कि बादल बनने की प्रक्रिया और इनके स्वरूप के बीच गहरा संबंध होता है। वायु की अत्यंत व्यग्र तरंगों के द्वारा बनने वाले बादल प्राय: धुनी हुई रूई के समान नजर आते हैं। ठीक इसके विपरीत जिन बादलों का जन्म हवा की मंद-मंद उठने वाली तरंगों के जरिए होता है, वे अकसर परत-दर-परत दिखाई पड़ते हैं।

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