पाप नाशक पर्व  है गंगा दशहरा

भारतीय संस्कृति यूं तो है ही पर्व व त्यौहारों का अद्भुत संगम । यहां हर दिन एक पर्व, हर पल एक त्यौहार होता है। कभी मन के कलुषों को धोने के लिए तो कभी तन को गंगा सा चंगा करने के लिए हम ऐसे-वैसे या कैसे भी खुश होने का , संतुष्ट होने का , तृप्त होने का, घूमने का , तीर्थाटन का, पर्यटन का , दान देने या कि लेने का अवसर ढूंढ ही लेते हैं , और हमें ये अवसर देते हैं त्यौहार। ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को भी हर वर्ष आने वाला गंगा दशहरा भी इन्ही पर्वो की श्रंखला का चमकदार नग है । गंगा दशहरा एक पर्व मात्र ही नहीं वरन् हमें हमारी संस्कृति की ओर ले जाने व धर्मिक दृष्टि से कहें तो पापों के नाश करने का अनोखा पर्व है । प्रति वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को बुधवार के दिन पड़ने वाला यह पर्व भारत की आत्मा में बसने वाले त्यौहारें में से एक है । आज के दिन दस विशेष ज्योतिष योग एक साथ इकट्ठे होते हैं। इस वजह से भी इसे शायद दशहरा नाम मिला है । यद्यपि गंगा दशहरा मुख्यत: बुधवार को ही होता है पर यदि यह काल गणना में परिवर्तन के चलते मंगलवार को पड़ जाए तो इसे अत्यंत ही शुभ माना जाता है । कहा जाता है कि आज के दिन यानि गंगा दशहरे के दिन  यदि कोई भी व्यक्ति गंगा में ओउम् नमो: भगवती का जाप दस बार भी कर लेता है तो उसके दस पाप नष्ट हो जाते हैं और वह पूरी तरह से पाप रहित होकर निर्मलमना हो जाता है। अब ये दस पाप कौन से हैं इनका उल्लेख बहुत ही कम मिलता है पर ज्योतिषाचार्य वी एन राजू के अनुसार यें पाप हैं काम , क्रोध , लोभ , मद , मोह , डाह , ईर्ष्या , द्वेष , दूषित विचार व हिंसा का भाव। सोचिये जिसके ये दस पाप नष्ट हो गये, वह तो सोने सा चमकदार हो ही जाएगा न, पर मंगल के प्रभाव में आने पर तो कहा जाता है कि पापों की गणना की ज़रूरत ही नहीं वह तो मनुष्य के सारे ही पाप धो डालता है।  वास्तव में दस पापों के हरने के कारण ही यह स्नान पर्व  दशहरा यानि दस का हरण करने वाला कहलाया होगा । स्कंद पुराण इसकी पुष्टि भी करता है । एक अन्य मत के अनुसार आज के ही दिन महाराजा सगर के प्रपौत्र भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर शिव ने गंगा को पृथ्वी पर अपनी केश राशि में उलझा कर सुरक्षित उतारा था। भागीरथ ने भीषण तप करके पहले ब्रह्मा और विष्णु  व बाद में शिव को प्रसन्न करके गंगा को पृथ्वी पर लाने में कामयाबी पाई थी , जिसके जल से उनके पुरखों को मुक्ति मिली । तब से गंगा को मोक्षदायिनी होने का पद मिला । इतना ही नहीं, भारत के लिए तो गंगा आज भी समृद्धि व खुशहाली लाती है । आज भी गंगा के बिना एक समृद्धिशाली भारत की कल्पना बेमानी सी लगती है । यह भारत के लिए महज एक नदी नहीं वरन् पाप-नाशिनी , मुक्तिदायिनी ,  सबसे बड़ी साधिका , जल के रूप में जीवन देने वाली , कृषि का आधर  तथा विद्युत उत्पादन का स्रोत है । गंगावतरण महज एक मूर्त्त या स्थूल तत्व नहीं वरन् आध्यात्मिक पक्ष है। इसकी कथा प्रतीकात्मक कही जा सकती है जो मनुष्य के तीनों गुणों को जागृत करती है। ब्रह्मा के रूप में रजोगुण , विष्णु  के रूप में सतो गुण व  शिव के रूप में तमो गुण के संतुलन के प्रेरित करता है गंगावतरण का प्रसंग । यही संतुलन मानव मात्र के कल्याण के लिए अभीष्ट भी है । भागीरथ यहां मानव के कर्म की महत्ता को प्रतिपादित करता है। तप उसके कर्म का रूप है व गंगा उसके कर्म का पुरस्कार ये कथन गीता के ‘‘ कर्मण्येवऽधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ’’ के सिद्धांत की भी पुष्टि करते हैं क्योंकि यदि आरम्भ से ही फल की इच्छा मन में घर कर गई तो तपश्चर्या जैसा कष्ट साध्य कर्म हो ही नहीं सकता है । यह पर्व मूलाधर ब्रह्मा से हृदयचक्र  (विष्णु) और उससे भी आगे सहस्रनर (शिव) की प्राप्ति तक मार्ग दिखाता है । आज के संदर्भ में गंगा दशहरा पर्व गंगा के प्रति उपजे उपेक्षाभाव की चिन्ता भी जागृत करता है। हमारे पर्यावरणविद् लगातार गंगा पर आए संकट से सजग कर रहे हैं। साधु संत भी गंगा पर बनने वाले बांधें , उसके जल प्रवाह को रोकने , नियंत्रित करने , उससे जल विद्युत बनाने जैसे कार्यों का विरोध कर रहे हैं ।  गंगा की पवित्रता को बनाए रखने की उनकी चिंता एकदम उचित ही है क्योंकि जिस गति से गंगा में प्रदूषण बढ़ा है, उससे तो वह मोक्षदायिनी की बजाय रोगदायिनी ही बनने जा रही है। आज समय की मांग है कि गंगा को हर हाल में पावन रखा जाए। उसके जल को खेतों तक जाने दिया जाए। ज़रूरत से ज्यादा पानी रोका न जाए व नई पीढ़ी को भी उसके महत्त्व से परिचित कराया जाए । अस्तु , गंगा दशहरा कैसे भी मनाएं, पर आज के दिन दान करना न भूलें। इसे तिलादि के रूप में करें , धार्मिक दृष्टि से करें , आत्मिक सुख के लिए करें यश फिर जरुरतमंदों की सहायता के लिये, हर दृष्टि से यह दान गंगा दशहरे पर आपको लाभ ही पंहुचाएगा । 

-घनश्याम बादल
-मो. 9412903681