किस तरह के रहे मोदी सरकार के चार साल ?

नरेन्द्र मोदी सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं और उसे अपने आपको साबित करने के लिए सिर्फ  एक साल ही बचा है। इन चार सालों की उपलब्धियों को यदि हम खुद मोदी जी के चश्मे से देखें, तो पाएंगे कि उन्होंने बैंकों में उन करोड़ों लोगों के खाते खुलवा दिए, जो बैंकों का हिस्सा होने की सोच भी नहीं सकते थे। उनका एक दावा देश के सभी गांवों का विद्युतीकरण करवा देना है। 
वैसे यह योजना पहले से ही चल रही थी और मोदी जी के कार्यकाल में 18 हजार गांवों को बिजली से जोड़ा गया, जबकि देश में 2 लाख से भी ज्यादा गांव हैं। यानी उनके कार्यकाल के पहले ही 91 प्रतिशत गांव बिजली से जुड़ चुके थे, शेष 18 फीसदी गांवों को उनके कार्यकाल में जोड़ा गया। इसके अतिरिक्त उनका एक दावा करोड़ों गरीबों को मुफ्त एलपीजी कनैक्शन प्रदान करना है। वे प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की भी चर्चा करते हैं, जिसके तहत करोड़ों को कर्ज दिए गए, ताकि वे अपने-अपने रोजगारों को बढ़ा सकें। इन दावों की क्या हकीकत है, इसका सोशल ऑडिट से ही पता चलेगा। यदि इन दावों को आंशिक रूप से मान भी लिया जाय, तो यह कहने में कोई गलत बयानी नहीं होगी कि जिन कारणों से मोदी जी को सत्ता मिली थी, उनमें सबसे प्रमुख कारण लोगों का भ्रष्टाचार के खिलाफ  आक्रोश था। लोगों को लग रहा था कि मोदी जी खुद परिवार वाले व्यक्ति नहीं हैं और इसलिए वे भ्रष्ट नहीं हो सकते और उनको भ्रष्ट भी नहीं बनाया जा सकता है। ‘ न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का उनका वायदा लोगों को भा गया था। ‘ बहुत हुआ अब भ्रष्टाचार, अबकी बार मोदी सरकार’ के नारे पर लोग मुग्ध थे। लेकिन सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार न केवल जारी है, बल्कि यह बढ़ भी गया है। मोदी जी द्वारा बार-बार यह कहने से कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार नहीं हो रहा है, लोग भ्रष्टाचार की मार से नहीं बच पा रहे। अभी हाल ही में दिल्ली के एक थाने में भाजपा के ही एक पूर्व विधायक के बेटे और पोते की पुलिस ने इसलिए पिटाई कर दी, क्योंकि बिना घूस दिए ही वह अपनी जब्त स्कूटर वहां से ले जाना चाहता था। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार पहले से भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है। दिल्ली में केजरीवाल की सरकार का भय जब तक रहा, यहां विभिन्न विभागों में भ्रष्टाचार वास्तव में बहुत कम हो गया था। लेकिन मोदी जी की सरकार ने केजरीवाल सरकार की शक्तियां छीन उसे पंगु बना दिया और फि र पहले की ही तरह भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया। एक तरह से मोदी जी केजरीवाल को यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि ‘न भ्रष्टाचार रोकूंगा, और न ही तुम्हें भ्रष्टाचार रोकने दूंगा’। मोदी जी का एक और नारा था, ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’। लेकिन यह नारा भी पिछले चार सालों में गलत साबित हुआ है। महंगाई लगातार बढ़ रही है और महंगाई वहां ज्यादा बढ़ी है, जहां सरकार का हस्तक्षेप है या जहां सरकार द्वारा सेवाएं दी जा रही हैं। मेट्रो का किराया इतना बढ़ा दिया गया कि उससे चलने वाले लोगों की संख्या ही घट गई और किराया बढ़ाकर घाटा कम करने का इरादा भी शायद पूरा नहीं हो। रेल किराये में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है और पूरा रेल महकमा धीमा पड़ा हुआ है। इस समय ट्रेनें जितना लेट चल रही हैं, उतना शायद ही पिछले 25 साल के इतिहास में कभी लेट चली हों। मोदी जी का एक नारा था कि हम सरकार को छोटा करेंगे और प्रशासन को अधिकतम बना देंगे। सरकार छोटी हुई हो, ऐसा लगता तो नहीं, लेकिन सरकार के मंत्रालयों के काम अवश्य धीमें पड़ गए हैं। भारतीय बाबूशाही कभी भी तेज नहीं रही, लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद इसकी सुस्ती और भी बढ़ गई है। अनिर्णय का माहौल और भी बढ़ गया है, भले ही राजनीतिक प्रशासन के स्तर पर मोदी जी तेज निर्णय लेने का दावा करते रहे हैं। इन चार सालाें के दौरान देश में सामाजिक सौहार्द में भारी गिरावट आई है। देश की आबादी का 14 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा है। 16 फीसदी आबादी वाला दलित समुदाय भी अपने आपको असुरक्षित और उपेक्षित महसूस कर रहा है, जबकि प्रधानमंत्री भीम धुन का कोई भी मौका नहीं चूकते हैं। लेकिन उनका भीम धुन दलितों के किसी काम का नहीं है। दलितों पर आक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। उनको मिलने वाले आरक्षण को भी तरह-तरह के नये नियमों के द्वारा कमजोर किया जा रहा है और सबसे बड़ी बात है कि सरकारी विभागों में लाखों सीटें खाली हैं, लेकिन उनको भरने के लिए भर्ती अभियान चलाया नहीं जा रहा है। ठेके को बढ़ावा दिया जा रहा है और उन ठेकों में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं। इससे भी बदतर हालत यह है कि ठेके में भी भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। अभी कुछ महीने पहले ही एसएससी से होने वाली नियुक्तियों में भारी भ्रष्टाचार के मामले सामने आए थे।
इन भ्रष्टाचारों के कारण युवकों में भारी रोष है। मोदी जी ने स्किल्ड इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे अंग्रेजी जुमलों वाली अनेक योजनाएं चला रखी हैं। लेकिन उनसे देश के रोजगार पटल पर कोई असर नहीं दिखाई पड़ रहा है। अमरीकी नीतियों के कारण आईटी सेक्टर कमजोर पड़ रहा है और आने वाले दिनों में यह और भी कमजोर हो सकता है। देश के हज़ारों इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं और हज़ारों ने बंद होने के आवेदन दे रखे हैं। अब उन्हें छात्र नहीं मिलते, क्योंकि इंजीनिरिंग पढ़ने के बाद भी उनको काम नहीं मिलता। जले पर नमक छिड़कते हुए मोदी के लोग उन्हें पकौड़ों की दुकान खोलने की सलाह दे डालते हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर वे पकौड़े की दुकान खोलेंगे, तो फि र उनका क्या होगा, जो पहले से ही पकौड़ा बेच रहे हैं। मोदी की सरकार के गठन के चार साल बाद आज अर्थतंत्र ध्वस्त-सा दिखाई दे रहा है। वित्तीय व्यवस्था चरमर्रा गई है। बैंकों की हालत नाजुक हो गई है। उनकी विश्वसनीयता भी गिरती जा रही है और जिनके पैसे बैंकों में जमा हैं, वे भयभीत हैं और उनमें से अनेक अब नोट अपने पास रख रहे हैं, जिसके कारण बैंकों में भी नोटों की किल्लत और उसके कारण खाली एटीएम की तस्वीरें आने लगती हैं। कुल मिलाकर आज देश की स्थिति ठीक नहीं है। (संवाद)