मौत का पर्याय बना निपाह वायरस

केरल के कोझिकोड जिले में रहस्यमय और बेहद घातक निपाह विषाणु की चपेट में आकर 10 लोगों की मौत हो गई और छह की हालत नाजुक बनी हुई है। इस विषाणु की चपेट में आए 25 रोगियों को विशेष निगरानी के लिए आईसीयू में रखा गया है। इस वायरस की चपेट में आकर सबसे ज्यादा पीड़ा पहुंचाने वाली करुणाजनक मौत नर्स लिनी पुथुसेरी की हुई। यह नर्स निपाह से पीड़ित रोगियों की सेवा में अपनी जान जोखिम में डालकर लगी हुई थी। इस नाते उसने अपने पुनीत दायित्व का निर्वहन करते हुए मानवता के तकाजे को अहमियत दी। लिनी कोझिकोड के पेराबंरा तालुक अस्पताल में काम करते हुए निपाह की चपेट में आ गई थी। लिनी को इस घातक वायरस की चपेट में आने का अनुभव हुआ तो वह समझ गई कि अब उसके प्राण निकलने वाले हैं। लिहाजा उसने बहरीन में रहने वाले अपने पति को एक दर्दभरी चिट्ठी में मलायम भाषा में लिखा, ‘ मैं अंतिम सफ र पर हूं, लगता नहीं है कि मैं अब कभी तुमसे मिल पाऊंगी। बच्चों का ध्यान रखना और इन्हें अपने साथ खाड़ी ले जाना। ‘हालांकि इस पत्र के लिखे जाने के बाद और लिनी की मौत होने के दो दिन पहले ही उसका पति सजीश भारत आ गया था। केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने इस मृत्यु को अतुलनीय बलिदान माना है।  एड्स, हैपेटाईटिस-बी, स्वाइन-फ्लू, बर्ड-फ्लू और इबोला के बाद अब निपाह वायरस वैश्विक आपदा के रूप में पेश आ रहा है। क्योंकि यह संक्रामक बीमारी है, इसलिए दुनियाभर में आसानी से फैल सकती है। निपाह विषाणु से पीड़ित सबसे पहले रोगी मलेशिया के कोपुंग सुंगई निपाह में मिले थे। यह संक्रमण सबसे पहले घरेलू सुअरों में देखा गया, लेकिन बाद में इन्सानों में फैल गया। इस दौरान यहां निपाह की चपेट में आकर 250 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। यह विषाणु निपाह क्षेत्र में मिला था, इसलिए इसका नाम ‘निपाह वायरस रखा गया। 2004 में बांग्लादेश में इस वायरस ने इन्सानों पर हमला बोल दिया। इसी समय 2001 से 2007 के बीच भारत के पश्चिम बंगाल में भी इस विषाणु ने घुसपैठ कर ली। इसका असर उन्हीं इलाकों में देखा गया जो भारत की सीमा से सटे हुए थे। दोनों ही साल इसके 71-71 मरीज देखने में आए थे, जिनमें से 50 की मौत हो गई थी। यह रोग संक्रमक है, इसलिए एक इन्सान से दूसरे इन्सान में आसानी से फैल जाता है। यह सीधे मनुष्य के मस्तिष्क पर हमला करता है। इसके द्वारा हमला बोलते ही इसके लक्षण सांस लेने में तकलीफ , तेज बुखार, जलन, चक्कर और भटकाव के रूप में दिखाई देने लगते हैं। यदि इस बीमारी को तुरंत काबू में लेने के उपाय नहीं किए गए तो 48 घंटे के भीतर व्यक्ति कोमा में चला जाता है और फि र उसका इलाज असंभव हो जाता है। नतीजतन रोगी की मृत्यु हो जाती है। इस रोग की जान लेने की क्षमता 75 प्रतिशत से 100 प्रतिशत के बीच है। इस वायरस की खासियत यह भी है कि इसमें अनुकूलन की क्षमता बेहिसाब होती है। नतीजतन यह एच-1 और एन-1 विषाणु की तरह पर्यावरण के हिसाब से खुद को ढाल लेता है। इस कारण दवाओं से यह निष्क्रिय तो हो जाता है, लेकिन मरता नहीं है। लिहाजा भविष्य में इसके फिर से शरीर में सक्रिय होने के खतरे बने रहते हैं। केरल में यह फ्रूट बैट्स की वजह से फैला है। यह टेरोपस जीनस प्रजाति के चमगादड़ में मिलता है। इसके जूठे फ ल या सब्ज़ी मनुष्य, मवेशी या जंगली जानवर खा लें तो ये सब निपाह वायरस की चपेट में आ जाते हैं। केरल में इसके जूठे खजूर खाने से कोझिकोड के लोग जानलेवा निपाह विषाणु की गिरफ्त में आकर जान गंवा बैठे। जबकि लिनी की मौत रोगियों से संक्रमित हुए विषाणु से हुई। पुणे के राष्ट्रीय विषाणु संस्थान (नेशनल वीरोलॉजी इंस्टीट्यूट) ने रोगियों की रक्त जांच के बाद इस वायरस की पुष्टि की है। यह वायरस सिंगापुर के लोगों को भी अपनी चपेट में ले चुका है। फ्रूट बैट्स से ही भारत व अन्य देशों में इबोला वायरस फैला था। निपाह या इबोला वायरस से पीड़ित रोगों का अभी पर्याप्त इलाज संभव नहीं हुआ है। निपाह पर नियंत्रण के लिए रिबावायरिन दवा दी जाती है। यदि शुरुआती लक्षणों के सामने आते ही रोग पकड़ में आ जाता है, तब तो एक बार इसका इलाज संभव है, अन्यथा रोगी को बचाना मुश्किल है। यह बीमारी यदि फैलती चली जाए तो महामारी का रूप भी धारण कर लेती है। जिन पेड़ों या उसके आसपास के पेड़ों पर चमगादड़ों का निवास हो तो उन पेड़ों से नीचे गिरे जूठे फ ल खाने से बचना चाहिए। क्योंकि चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक वैश्विक उपलब्धियों के बावजूद निपाह जैसे प्राण घातक चुनौतियों से निपटना संभव नहीं हो पा रहा है।      निपाह वायरस की पहचान हुए भी दो दशक से ज्यादा का समय हो चुका है। बावजूद न तो इसके उपचार की कारगर दवाएं बनाई जा सकी हैं और न ही ऐसा टीका बन पाया है, जो इस बीमारी को पनपने ही न दे । इन कारणों के चलते फि लहाल इन जानलेवा वायरसों से बचने के उपाय सावधानी बरतना ही है।   

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