समानता तो दूर, मृतक भी भेदभाव के शिकार

पूरी दुनिया में कहीं न कहीं सड़क दुर्घटनाएं, आपराधिक घटनाएं, आतंकी कहर आदि हो ही जाते हैं, पर लगता है जो लोग भारत में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का शिकार होते हैं उनके लिए कोई न्याय नहीं, कोई समानता नहीं। राजनीतिक मजबूरी अथवा कभी-कभी मानवीय संवेदना के आधार पर उन परिवारों की सहायता की जाती है जो ऐसी अभागी दुर्घटनाओं में प्राण खो बैठते हैं या गंभीर घायल हो जाते हैं। हालिया घटनाक्रम में पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में खूब हिंसा हुई, आगजनी की गई, लोग मारे गए, जख्मी भी हुए और विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ममता सरकार ने हर मृतक के परिवार को दो-दो लाख रुपये मुआवजा भी दिया है। वैसे यह मुआवजा शब्द बड़ा घटिया और दुखी परिवारों के साथ मजाक है। इससे पहले उत्तर प्रदेश के काशीपुर में जब मानव रहित रेलवे फाटक पर स्कूल के बच्चों की गाड़़ी का हादसा हुआ तब आनन-फानन में ही मुख्यमंत्री जी ने हर परिवार को दो लाख प्रति मृतक देने की घोषणा करके मानो बहुत बड़ी दरियादिली दिखाई हो। जानकारी है कि रेलवे ने भी दो-दो लाख रुपये प्रति मृतक के परिवार को दिए। अब जरा आगे चलें। वाराणसी में निर्माणाधीन पुल गिर गया। बहुत हृदयविदारक घटना थी, जिसे टी.वी. चैनलों पर देखकर पत्थर दिल भी रोए। उनकी क्या हालत होगी जिनके स्वजन मौत के मुंह में चले गए। सरकारी विडंबना कहिए कि वहां भी झटपट मुख्यमंत्री जी ने पांच लाख प्रति मृतक देने की घोषणा कर दी और घायलों की स्थिति के अनुसार पचास हजार रुपये दिए जाने की बात कही। पता नहीं अभी तक उन परिवारों को यह तथाकथित मुआवजा मिला या नहीं। पंजाब में भी जब किसी किसान की मौत हो जाए तो सरकार नोटों की थैली खोलती है। सवाल यह है कि अगर आत्महत्या को मजबूर हो चुके व्यक्ति के परिवार को यहां अनुग्रह राशि के नाम पर धन बांटना है तो पहले क्यों नहीं बांट दिया जाता? यहां भी कोई एक मापदंड नहीं। समय, राजनीतिक आवश्यकता और कितना बड़ा आंदोलन हो रहा है, उसी आधार पर यह सहायता राशि दी जाती है। जिस पंजाब में पिछली सरकार के उप-मुख्यमंत्री कबड्डी के मैच में झलक दिखाकर मुस्कुराकर अपनी अदाओं से कुछ पलों के लिए दर्शकों का दिल जीतने वाले अभिनेता-अभिनेत्री को दो-दो करोड़ रुपये दे देते थे उसी पंजाब में कफन में मिट्टी बने कर्ज के बोझ तले दबे मजबूरों को इतनी राशि पिछली सरकार अगर बांट देती तो बेचारे गरीबी से मजबूर मौत के आगोश में आश्रय न लेते। 
सीमा पर शहादत का जाम पीकर जो सैनिक तिरंगे में लिपटे अनन्त यात्रा के लिए घरों में आते हैं उनको आज तक कभी करोड़ों देने का समाचार देश ने नहीं सुना। उत्तर प्रदेश में ही एक एडवोकेट गुंडों का शिकार हो गया। वहां मुख्यमंत्री जी ने संभवत: मृतक की सामाजिक पद-प्रतिष्ठा देखकर बीस लाख की मदद दे दी। दिल्ली की एक दुर्घटना में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एक करोड़ रुपया दे दिया। जम्मू-कश्मीर में आतंक की काली छाया फैली है। हमारी सेनाओं ने भारत सरकार के निर्देशानुसार ही ऑल आउट का निर्णय लिया। ऑलआउट अर्थात कोई भी आतंकवादी, देश का दुश्मन हथियार लेकर निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला देश में न रहे। अब इसे दुर्भाग्य कहें या सरकारी अदूरदर्शिता अथवा तुष्टिकरण। एक महीने के लिए ऑलआउट रोक दिया। तीन दिन में ही सैनिक भी शहीद हुए, बैंक भी लूटा गया और पाकिस्तानी गोलाबारी में पांच नागरिक मारे गए। क्या एक समान नीति बनाकर जिसके लिए पंजाब में भी बार-बार मांग की गई, यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि जो सरकारी तंत्र की लापरवाही, अयोग्यता से मारे जाएं, आतंकवाद का शिकार हो जाएं, वाराणसी जैसी घटना में मौत के मुंह में धकेले जाएं, उनका पूरा योगक्षेम सरकार संभाले। पंजाब में भी आतंकवाद के काले दौर में पीड़ित परिवारों को दस किलो आटा दिलवाने के लिए भी लंबा संघर्ष करना पड़ा था। जो पलायन करने को मजबूर ग्रामवासी थे उन्हें भी लावारिस बनाकर छोड़ दिया। जिन घरों के सभी पुरुष सदस्य मार दिए गए उनके लिए भी वही तराजू रखी गई जिससे न रोटी मिल सकती थी न इज्जत का जीवन। नौकरी देने में भी कुछ परिवारों को राजनीतिक परिचय और पद का लाभ देते हुए पी.सी.एस., पी.पी.एस. बना दिया।  देश की यह दर्द भरी आवाज अगर सरकारें सुनें तो पहले यह व्यवस्था की जाए कि पूरे देश में कहीं भी सड़क और रेलवे दुर्घटना, वाराणसी जैसी दुर्घटना और अपराधियों, आतंकियों के हाथों निर्दोष नागरिकों की मौत की घटना-दुर्घटना हो जाए तो सबको एक सी सहायता मिले। राहत और पुनर्वास विभाग तो भारत सरकार समेत हर प्रांत की सरकारों में है, पर कौन किस आधार पर यह राहत देता है, आज तक तय नहीं हो सका। इसे आप किस संवैधानिक समानता का नाम देंगे कि जिंदा लोगों को तो समानता मिलती नहीं, मृतकों की लाशें भी समानता के लिए तरसती हुई पंचतत्व में विलीन होती हैं। शांति पाठ और शांति समागम तो उनके लिए किए जाते हैं, पर उनको शांति कभी नहीं मिलती होगी क्योंकि उनकी मौत का कारण आतंक, अव्यवस्था और देश के अनियंत्रित अपराधी बनते हैं। उनका दुर्भाग्य यह भी रहता है कि वे उच्च पद, प्रतिष्ठा और राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले नहीं जो उनके परिवारों की देखभाल सरकार करे।