तत्काल ध्यान मांगते हैं कृषि के सरोकार

भारतीय किसान महासंघ के आह्वान पर देश भर में अनेक किसान संगठनों ने गांवबंदी का ऐलान कर दिया है। यह आन्दोलन 1 जून से शुरू होकर 10 जून तक चलेगा। इससे पहले किसान संगठनों द्वारा एकजुट होकर अलग-अलग मंचों पर किसानों के मामलों संबंधी विचार-विमर्श किया जाता रहा है। गत लम्बे समय से देश के अलग-अलग राज्यों और राजधानी दिल्ली में किसान संगठनों द्वारा निरन्तर धरने-प्रदर्शन किये जाते रहे हैं। महीनों तक दिल्ली में आन्दोलनकारियों ने डेरे भी लगाए रखे थे। केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के हितों की ओर ध्यान देने के आश्वासन भी दिए गए थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गत दिनों अलग-अलग स्थानों पर चुनाव रैलियों में किसानों की ज़िन्दगी बेहतर बनाने की बात की थी और यह भी कहा कि आगामी समय में सही योजनाबंदी करके कृषि उत्पादों के न सिर्फ उचित मूल्य ही निर्धारित किए जाएंगे अपितु उनकी आमदनी में भी वृद्धि की जाएगी। चुनावों के समय राज्य सरकारें भी किसानों के साथ ऐसे वायदे करती रही हैं। पंजाब मेें भी एक वर्ष पूर्व चुनावों में कांग्रेस ने किसानों के ऋण माफ करने की बात कही थी। उनसे इस संबंधी हलफनामों पर हस्ताक्षर भी करवाये गए थे। पंजाब सरकार ने गत समय के दौरान अढ़ाई एकड़ की मलकियत वाले छोटे किसानों को ऋणों से कुछ राहत देने के लिए कुछ कदम भी उठाए थे। अलग-अलग स्थानों पर समारोह करके किसानों के ऋणों संबंधी चैक बांटे गये थे। अब तक दिये गए चैकों की राशि 800 करोड़ से भी ऊपर हो चुकी है परन्तु ऋणों की जितनी बड़ी गठरी किसानों के सिर पर लदी हुई है यह राशि उसके मुकाबले में नाम-मात्र प्रतीत होती है। ऋणों का भुगतान न कर सकने के कारण परेशान हुए किसानों द्वारा आत्महत्याएं करने के समाचार लगातार आते रहे हैं। देश भर में अब तक 3 लाख 50 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की है जो एक ऐसा दुखांत है, जो कृषि के क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान की मांग करता है। सरकार की नीतियों के कारण अब तक गेहूं, चावल और कुछ अन्य फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किए जाते रहे हैं और इन जिन्सों का ठोस मंडीकरण भी होता रहा है। परन्तु इन फसलों के अलावा अन्य  हर तरह की सब्ज़ियों, फलों, अंडों तथा दूध आदि के मूल्यों संबंधी हमेशा अनिश्चितता बनी रही है। यही कारण है कि कभी सड़कों पर आलू फैंके जाते हैं और कभी टमाटर, प्याज और खीरे आदि की फसलों के मंडीकरण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जिस कारण किसानों की ये वस्तुएं मंडियों में खराब होने लगती हैं। गत कुछ महीनों के दौरान दूध के मूल्य लगातार कम किए गए हैं। किसान संगठनों की बड़ी मांगें हर तरह की फसलों सहित फल और सब्ज़ियों के लिए लाभदायक मूल्य निर्धारित करने की रही हैं। इसके साथ-साथ उनके द्वारा इन मूल्यों को कृषि की लागत कीमत से जोड़ने की मांग भी उठती रही है। इस संदर्भ में सभी किसान संगठनों ने कई वर्ष पूर्व डा. मनमोहन सिंह की सरकार के समय बनाये गये स्वामीनाथन आयोग के सुझावों पर अमल करने की भी सरकार को अपीलें की थीं। जिन फसलों के मूल्य सरकार निश्चित करती रही उनके मूल्यों संबंधी भी किसान ज्यादा संतुष्ट नहीं रहे। घाटे वाले दामों और कृषि उत्पादन के काम आने वाली अन्य वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण किसानों पर सहकारी बैंकों, आढ़तियों तथा व्यापारिक बैंकों के भारी ऋण चढ़े हुए हैं। किसान संगठन इन ऋणों का मुख्य कारण किसानों को उनकी उपज के उचित दाम न मिलना ही बताते हैं। चाहे चढ़े इस ऋण के अन्य कारण भी हो सकते हैं परन्तु इसका प्रमुख कारण किसानों की खराब होती आर्थिकता ही कही जा सकती है। आज भी भारत की बड़ी जनसंख्या का प्राथमिक आधार कृषि का धंधा ही है, जिसमें लगातार हर पक्ष से सही योजनाबंदी करने की मांग उठती रही है। जिस कारण किसानों को लगातार आन्दोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इस आन्दोलन के परिणाम क्या निकलेंगे और देश के नागरिकों को किस तरह की मुश्किलों से गुज़रना पड़ेगा इस संबंधी सही जायज़ा तो इस आन्दोलन के बाद ही लिया जा सकेगा। परन्तु यह आन्दोलन किसानों की खराब होती हालत की ओर सरकार का ध्यान केन्द्रित करने में अवश्य सफल होगा, जो आज के समय की ज़रूरत भी बन चुकी है। 

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द