स्वच्छ पेयजल पर बढ़ता संकट

पंजाब में भूमिगत पानी का स्तर निरन्तर नीचे होते जाने, और प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता ने पानी के संकट को एक बार फिर चर्चाओं में ला दिया है। एक ओर पंजाब में भूमिगत पानी की समस्या है, तो दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश में स्थिति यह हो गई है कि ज़िला शिमला में पेयजल की कमी की समस्या से निपटने के लिए सेना की सहायता लेनी पड़ रही है। पंजाब में पानी के संकट की तहरीर में एक पृष्ठ नदियों और नहरों के पानी के निरन्तर प्रदूषित एवं दूषित होते जाने का भी है। प्रदेश के उद्योगों का विषाक्त पानी और सीवरेज का अधितर पानी बिना ट्रीट किए नदियों में डाला जाता है, तो स्वाभाविक रूप से नदियों में प्रदूषण का बढ़ना लाज़िमी हो जाता है। इससे एक ओर जहां नदियों/नहरों के पानी को उपकरणों के ज़रिये शुद्ध करके पेयजल हेतु प्रयुक्त किये जाने की योजना खटाई में पड़ी है, वहीं नदियों के भीतर जलचर जीव-जन्तुओं के मारे जाने से पर्यावरण पर संकट और गहरा हुआ है। प्रदेश में नदियों-नहरों में बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण की स्थिति कितनी गम्भीर है, इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पर्यावरण मंत्री को यह हिदायत जारी करनी पड़ी है कि प्रदेश की सभी औद्योगिक इकाइयों की ओर से छोड़े जाने वाले दूषित पानी की विधिवत् रूप से जांच कराई जाए। इस संदर्भ में एक और चिन्ताजनक पक्ष यह है कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की स्थिति शहरी क्षेत्रों से कहीं अधिक गम्भीर है। पंजाब के दूरवर्ती अनेक गांवों में आज भी लोगों के लिए पेयजल के मुख्य स्रोत कुएं हैं जबकि भीषण गर्मी और लू-लहर के कारण कुएं,नहरें एवं अन्य जल-स्रोत सूख गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला पानी इतना दूषित है कि कई बीमारियों को पैदा करने का कारण बनता है। इस स्थिति को बदलने के लिए पंजाब की सरकारें समय-समय पर यत्न करती रहती हैं। पंजाब में एक समय सतलुज और ब्यास के पानी को खींच कर शहरों में ट्रीट कर पेयजल हेतु प्रयुक्त किये जाने की योजनाएं बनी थीं, परन्तु ये योजनाएं पानी के प्रदूषण की भांति, मार्ग में ही कहीं अटक गईं। वर्तमान में भी प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार की मदद से प्रदेश के 563 गांवों में स्वच्छ पेय-जल की आपूर्ति हेतु 540 करोड़ रुपए की योजना तैयार की है। इस योजना का आधार विश्व बैंक की योजनाओं से तैयार होता है। प्रदेश की सरकार ने एक ऐसे जल ट्रीटमैंट प्लांट के स्थापन की घोषणा भी की है जो पंजाब की नदियों-नहरों में से प्रदूषित हो चुके पानी को स्वस्थ एवं स्वच्छ कर सकेगा। इस पानी की जांच हेतु इसी प्लांट के अन्तर्गत एक विशेष प्रयोगशाला भी स्थापित होगी। इस योजना का बड़ा लाभ पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, अमृतसर और गुरदासपुर आदि ज़िलों को होगा। तत्पश्चात इस परियोजना का विस्तार भी हो सकता है। सरकार की ओर से इस दिशा में अन्य भी कई प्रकार के पग उठाये जाते रहे हैं, परन्तु इस धरातल पर खेद की बात यह है कि प्रशासन और सरकारी मशीनरी की लापरवाही एवं राजनीतिक इच्छा-शक्ति की दुर्बलता के कारण इस मोर्चे पर पिछले पांच-छह दशकों की निरन्तर उद्यमशीलता के बावजूद कभी कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई। हम समझते हैं कि जीवन जीने के लिए शुद्ध हवा की ही भांति शुद्ध पेयजल भी उतना ही ज़रूरी एवं आवश्यक तत्व है। पानी के बिना प्राणी मात्र एवं जीव-जन्तुओं का जीवन सम्भव नहीं, और पानी धरती पर से निरन्तर दूर होता जा रहा है। यहां तक कि वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने पानी को भविष्य में युद्धों का कारण बनने की भविष्यवाणी भी की है। पंजाब में स्थिति यह है कि यदि तत्काल रूप से ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता के साथ निदान हेतु पग न उठाये गये तो पंजाब के लाखों लोगों खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को गम्भीर संकट का सामना करना पड़ा सकता है। प्रदेश की नदियों-नहरों को जिस प्रकार औद्योगिक इकाइयों, सीवरेज प्रणाली और गंदे नालों के पानी द्वारा प्रदृषित किया जा रहा है, उससे स्वास्थ्य के धरातल पर प्रदेश का भविष्य कदापि उज्जवल प्रतीत नहीं होता। औद्योगिक इकाइयों की दबंगता का आलम यह है कि इन्हें किसी न किसी धरातल पर राजनीतिक संरक्षण हासिल है। कहीं ये इकाइयां राजनीतिक दलों को चंदा देती हैं, और कहीं राजनीतिक नेताओं की इन इकाइयों में भागीदारी और रिश्तेदारी जुड़ी है। इसी कारण हमेशा छोटी-मोटी मछलियां तो प्रदूषण नियंत्रण विभागों के जाल में फंस भी जाती हैं, परन्तु बड़े-बड़े मगरमच्छ कोहराम भी मचाते हैं, और फिर गुर्राते भी हैं। हम समझते हैं कि सरकारों एवं प्रदूषण नियंत्रण से सम्बद्ध विभागों को इस दुरावस्था के विरुद्ध कभी न कभी तो जागृत एवं सक्रिय होना ही पड़ेगा। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का भी सवाल है। अब भी यदि सभी सम्बद्ध क्षेत्र नहीं सम्भले, तो पंजाब की भावी नसलें कई तरह के रोगों का शिकार होने लगेंगी। चाहे जैसी भी सख्ती करनी पड़े, औद्योगिक इकाइयों के व्यर्थ पानी को स्वच्छ-स्वस्थ करके ही नदियों में डालना होगा। गंदे नालों के पानी को नदियों की ओर जाने से रोकना होगा। कम से कम सीवरेज के पानी को नदियों में जाने से तो हर हाल में नियंत्रित करना होगा। अपनी ही सन्तानों के भविष्य को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए, राजनीतिक हितों से ऊपर उठ कर, नदियों, नहरों एवं पेयजल के अन्य स्रोतों को स्वच्छ, शुद्ध बनाये रखने के लिए प्रयास करने होंगे। ऐसे यत्न जितनी शीघ्र किए जाएंगे, उतना ही पंजाब और पंजाब के लोगों के हित में होगा।