उप-चुनावों के नतीजे  :  क्या भाजपा शासन के अंत की शुरुआत हो गई है ?

इस बार 10 विधानसभा और 4 लोकसभा क्षेत्रों के चुनाव हो रहे थे। ये चुनाव क्षेत्र देश के 10 राज्यों में फैले हुए थे। इन उप-चुनावों में भाजपा को भारी हार का सामना करना पड़ा। उसके हाथ सिर्फ  एक लोकसभा और एक विधानसभा की सीट ही लगी। वह इस बात के लिए संतोष कर सकती है कि उसकी एक सहयोगी पार्टी को नगालैंड की सीट हाथ लगी। लेकिन उसके लिए सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि उसे 10 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ  एक पर ही विजय हासिल हुई। वह क्षेत्र उत्तराखंड में है, लेकिन झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और मेघालय में उसके उम्मीदवार हार गए। पश्चिम बंगाल तो वह जीतने के लिए लड़ नहीं रही थी। उसका उद्देश्य वहां दूसरे नंबर की पार्टी बनना था और वह बन भी गई, लेकिन अन्य राज्यों में उसकी बुरी गति हुई है। सबसे महत्वपूर्ण राज्य उसके लिए उत्तर प्रदेश था, जहां एक लोकसभा और एक विधानसभा के उप-चुनाव हो रहे थे। दोनों सीटों पर पहले उसके ही उम्मीदवार थे। दोनों सीटों पर उसे संयुक्त विपक्ष का सामना करना पड़ रहा था और दोनों जगह उसकी हार हो गई। सबसे बड़ा झटका उसको उत्तर प्रदेश से ही मिला है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा में शानदार सफलता पाने के कारण ही उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त हुआ था। अपने सहयोगी अपना दल के साथ उसने कुल 80 में से 73 सीटों पर चुनाव जीत लिए थे। 71 सीटों पर तो उसने अपने चिन्ह पर ही चुनाव जीते थे। उत्तर प्रदेश में जिस तरह विपक्ष एकजुट हो रहा है, वह भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि संयुक्त विपक्ष के कारण उसके लिए आगामी लोकसभा चुनाव में 10 सीटों पर जीत पाना भी कठिन हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश के बनारस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते हैं। संयुक्त विपक्ष के सामने उसकी जीत भी बनारस में संदिग्ध हो जाएगी। उत्तर प्रदेश के बाद भाजपा को झारखंड में भी करारा झटका लगा है। वहां दो सीटों के लिए उप-चुनाव हो रहे थे। दो में से एक पर पहले भाजपा के विधायक थे और दूसरी सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक थे। भाजपा दोनों सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। वह दोनों सीटों पर हार गई। एक सीट पर तो वह तीसरे स्थान पर चली गई। जिस सीट पर वह तीसरे स्थान पर गई, वह झामुमो के विधायक को कोयला चोरी के मामले में हुई सजा के कारण खाली हुई थी। कोयला चोर के उस अपराधी की पत्नी झामुमो की उम्मीदवार थी और वह जीत गई। झारखंड की 14 सीटों में से 12 पर इस समय भाजपा का ही कब्ज़ा है। वहां उसकी हालत जिस तरह से खराब हो रही है, उसे देखते हुए लोकसभा चुनाव में भी उसे झटका लगना स्वाभाविक है। महाराष्ट्र से भी भाजपा को बहुत उम्मीदें हैं। पिछली लोकसभा का चुनाव उसने शिवसेना के साथ मिलकर लड़ा था और उसे शानदार सफलता मिली थी। विधानसभा का चुनाव वह अकेली लड़ी और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। शिवसेना को उसने करारी शिकस्त दी, लेकिन बहुमत का आंकड़ा पाने के लिए उसे शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। अब शिवसेना से उसकी नहीं पट रही है। शिवसेना उसका जूनियर पार्टनर बनकर रहने के लिए अब तैयार नहीं है और उसने घोषणा कर रखी है अगला लोकसभा चुनाव वह भाजपा के साथ गठबंधन करके नहीं लड़ेगी। उसने उस घोषणा को इस बार के उप-चुनाव में अमली जामा पहना भी डाला। शिवसेना ने विधानसभा के उप-चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन की घोषणा कर डाली। भाजपा ने डरकर उस क्षेत्र से अपना उम्मीदवार ही नहीं उतारा और कांग्रेस का उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत गया। पालघर लोकसभा क्षेत्र से शिवसेना ने अपना उम्मीदवार भी खड़ा कर दिया। वह भाजपा से हार गया है, लेकिन शिवसेना को लगता है कि निर्वाचन आयोग की सहायता से बेईमानी कर भाजपा ने वह सीट हासिल की। भाजपा उम्मीदवार की जीत 29 हजार वोटों से हुई है और शिवसेना को लगता है कि उसके समर्थक मतदाताओं को मशीनें खराब कर वोट ही नहीं देने दिया गया। भाजपा द्वारा मतदाताओं को रुपया बांटने का वीडियो बनाकर शिवसेना के लोग आयोग के पास पहुंचे थे और चाहते थे कि वह कार्रवाई करे, लेकिन आयोग ने भाजपा के खिलाफ  कार्रवाई नहीं की और इसके लिए शिवसेना भाजपा और निर्वाचन आयोग को गाली गलौज पर उतर आई है। यदि भाजपा का शिवसेना के साथ गठबंधन नहीं हुआ, तो आबादी और लोकसभा की सीटों के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य में भी भाजपा की सीटें घट सकती हैं। कर्नाटक में तो कांग्रेस और जनता दल(एस) की गठबंधन सरकार बन गई है और कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि कुमारस्वामी अगले पांच साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रहेंगे। जाहिर है, आगामी लोकसभा चुनाव में इन दोनों पार्टियों का मिलकर लड़ना लगभग तय है। इस समय वहां की 28 में से 17 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस और जनता दल (एस) के मिलकर चुनाव लड़ने से भाजपा को एक एक सीट निकालने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भाजपा को लोकसभा की सीटों का जितना नुकसान होगा, उतने की भरपाई वह त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड जैसे राज्यों में जीतकर नहीं सकती। भाजपा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि नरेन्द्र मोदी का जादू अब लोगों पर नहीं चल रहा है। उनकी कथनी और करनी का अंतर देश की जनता देख चुकी है। वे भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ  बोलकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते थे, लेकिन भ्रष्ट लोगों को वह पार्टी में शामिल कर रहे हैं और भले खुद परिवारवादी अथवा जातिवादी नहीं हों, लेकिन वे पार्टी के अंदर परिवारवाद और जातिवाद को फलने-फूलने दे रहे हैं। वे अपने भाषणों में गलतबयानी भी खूब करते हैं और पकड़े भी जाते हैं। इन सबके कारण उनका जादू कमजोर हो रहा है। मोदी के जादू के कमजोर होने और विपक्षी एकता की संभावना बढ़ने के साथ ही केन्द्र में भाजपा शासन के अंत की शुरुआत शायद हो चुकी है। (संवाद)