खतरे में पड़ सकती है बेनामी संपत्तियों की कुर्की

नई दिल्ली, 3 जून (भाषा): सरकार बेनामी संपत्तियों के मामलों के निपटान के लिए नया कानून बनाने के डेढ़ साल बाद भी अभी इन मामलों की सुनवाई के लिए विनिर्दिष्ट न्यायिक प्राधिकरण का गठन ही नहीं कर पाई है। इससे करोड़ों रुपए मूल्य की 780 से अधिक सम्पत्तियों की कुर्की की कार्रवाई की वैधता निकट भविष्य में खतरे में पड़ सकती है। मौजूदा सरकार ने बेनामी संपत्ति लेनदेन कानून (1988) को संशोधित और मज़बूत कर उसे एक नवम्बर 2016 से लागू किया। उसी महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कालेधन से निपटने के लिए नोटबंदी जैसे बड़े कदम की घोषणा की थी। इस कानून की धारा सात के तहत सात साल तक के कड़े कारावास व संपत्ति के बाज़ार मूल्य के 25 प्रतिशत तक जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून के तहत सरकार को तीन सदस्य वाला एक निर्णायक प्राधिकार गठित किया जाना है जो आयकर विभाग द्वारा इस कानून के तहत की जाने वाली कुर्की की वैधता का फैसला करेगा। लेकिन बीते डेढ़ साल में ऐसा कोई प्राधिकार गठित नहीं किया गया है। सरकार इस तरह के मामले तदर्थ आधार पर निपटा रही है और फौरी तौर पर इसका जिम्मा मनी लांड्रिंग निरोधक कानून (पीएमएलए) के निर्णायक प्राधिकार को दे रखा है। यह प्राधिकार पहले ही काम के बोझ से दबा है। सरकार इस तरह के मामले तदर्थ आधार पर निपटा रही है और फौरी तौर पर इसका जिम्मा मनी लांड्रिंग निरोधक कानून (पी.एम.एल.ए) के निर्णायक प्राधिकार को दे रखा है। यह प्राधिकार पहले ही काम के बोझ से दबा है। पीटीआई भाषा को मिले आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार कर विभाग ने इस तरह के 860 से अधिक मामलों को अंतिम रूप देकर निर्णायक प्राधिकार के पास भेजा है। इनमें से केवल 80 पर ही फैसला किया जा सका है। करोड़ों रुपए मूल्य की संपत्तियों की कुर्की के 780 मामले अब भी लंबित हैं। ये मामले कई नामचीन लोगों , राजनेताओं व अधिकारियों आदि से जुड़े हैं। इस प्राधिकार ने भी सरकार को नोटिस दे रखा है।