खतरनाक भी हो सकता है पीलिया

पीलिया बरसात एवं ग्रीष्म के मौसम में कभी भी किसी को भी हो सकता है। यह मुख्यत: लीवर के संक्रमित होने से होता है। इसको लेकर अंधविश्वास एवं भ्रांतियां अधिक हैं।
हर शहर व कस्बे में झाड़ फूंक एवं टोटके या नुस्खे देने वाले  ऐसे अनेक मिल जाते हैं पर यह पीलिया खानपान में सावधानी बरतने पर अपनी अवधि के दौरान शरीर पर पीला रंग दिखाकर अपने आप ठीक हो जाता है। फिर भी पीलिया की स्थिति में डाक्टर को दिखाना, दवा व सलाह लेना उचित होता है अन्यथा यह खतरनाक भी हो सकता है।
लक्षण : किसी को पीलिया होने पर उसका सर्वांग पीला-पीला हो जाता है। सबसे हले उसकी आंखें पीली-पीली सी दिखती हैं, फिर नाखून, दांत, त्वचा, जीभ सबमें पीलापन नज़र आने लगता है। वह जिस बिस्तर में सोता है जो रूमाल व कपड़ा उपयोग करता है, वह भी पीलापन लिए नज़र आता है। उसका पेशाब व मल भी पीला हो जाता है।
पीलिया के आरम्भ होने पर उसके मल का शुरुआती रंग सफेद होता है जो बाद में पीला होने लगता है। पीड़ित को हाथ-पैर में मदर्द होता है। ज्वर चढ़ जाता है। अधिक प्यास लगती है एवं इंद्रियां निर्बल हो जाती हैं। वह उठने-बैठने से भी लाचार हो जाता है। कोई सहारा लेकर वह ऐसा कर पाता है। पेट में दर्द, डकार व भूख न लगने की शिकायत करता है।
यह अधिकतर लीवर संक्रमण की स्थिति में होता है। यह बैक्टीरिया व वायरस के माध्यम से होता है जो खुले में रखे खाद्य या पेय पदार्थों के माध्यम से फैलता है। यह गंदे व संक्रमित पानी के माध्यम से भी होता है। मक्खियां व कीड़े इसके संवाहक हैं। 
यह नवजात शिशु को भी होता है, पर उसका कारण बाहरी या संक्रमण न होकर दूसरा होता है। यह पित्त नली में रुकावट से भी हो सकता है और शराब की अधिकता के कारण भी होता है। कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण भी यह होता है, जबकि कुछ बच्चों को मिट्टी खाने के कारण लीवर के संक्रमित होने से होता है। 
इसका किसी को दूसरी बार प्रकट होना अत्यधिक खतरनाक होता है। यह तीव्र हो जाने पर पित्तवाहिनी, आमाशय, तिल्ली, पित्ताशय व पेय आदि शरीरांगों की कार्य विधि में रुकावट डालता है।
बचाव से परहेज ज़रूरी : पीलिया हो जाने पर बचाव में परहेज अधिक महत्व रखता है। गरिष्ठ वस्तुएं जैसे मैदे व उड़द की दाल से बचें। पेट में जलन करने वाले पदार्थ न खाएं। तली-भुनी व तेल-घी वाली वस्तुएं न खाएं। तेज मिर्च-मसाला व लाल मिर्च से बचें। मांसाहार व धूम्रपान पूरा छोड़ दें। खोवा, मिठाई  जैसी भारी वस्तुएं न खाएं। शक्कर, चीनी, गुड़ का भी उपयोग न करें। अधिक श्रम न कर आराम करें।
क्या खाएं : साफ उबला पानी पीयें या मिनरल वाटर लें। नारियल पानी, जामुन का रस, गन्ने का रस, जौं का पानी, शुद्ध शहद आदि जैसा पेय लें। मट्ठे में नमक, जीरा डालकर लें। हल्का, सादा, सुपाच्य, गर्म व कम भोजन करें। काली मिर्च, नमक, नींबू, भुने हुए चने लाभदायी हैं।
अरहर की दाल, मूंग की दाल, खिचड़ी, दलिया, गेहूं, चावल जौ वस्तुएं खाद्य पदार्थ में हों। लौकी, करेला, मूली, गोभी, मीठा नींबू, संतरा, आम, मौसमी, अरबी, आलू, पालक, पपीता, शकरकंद, जिमिकंद, बादाम, चकुंदर, मिसरी, पिप्ल चूर्ण ले सकते हैं।
भ्रांतियां : पीलिया को लेकर अंधविश्वास, नुस्खेबाजी, टोटके, झाड़-फूंक आदि प्रचलित हैं, पर इसमें दम नहीं है। भ्रांतियों में पीली दाल खाने, हल्दी का उपयोगह करने, पीला कपड़ा पहनने से, घर में छौंक देने आदि से रोका जाता है। 
धारणा यह है कि ऐसा करने से पीलिया बढ़ता है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। यह अपनी अवधि पूरी कर अपने आप ठीक हो सकता है।
खान-पान, परहेज पर ध्यान देना ज़रूरी है। दाल, प्रोटीन का श्रेष्ठ माध्यम है। उड़द दाल को छोड़ कोई भी दाल खाने से उसका प्रोटीन लीवर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को ठीक करता है एवं उसकी कार्य-क्षमता बढ़ाता है, अतएव यह अवश्य खानी चाहिए। (स्वास्थ्य दर्पण)
—सीतेश कुमार द्विवेदी