किसानों की मांगों की तरफ ध्यान दें सरकारें

कुछ दिन पूर्व से देश भर में 172 के लगभग किसान संगठनों द्वारा अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन शुरू किया गया था। गत लम्बे समय से किसान संगठन किसानों की आर्थिकता को सुधारने के लिए संघर्षशील हैं। कई स्तरों पर राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के साथ उनकी बातचीत भी चलती रही है। किसान राज्यों में भी और दिल्ली में भी धरने तथा रोष प्रदर्शन करते रहे हैं। उनके मुख्य मुद्दों में किसानों के ऋण खत्म करना और जिन्सों पर लाभदायक मूल्य निर्धारित करना शामिल हैं। केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं तथा धान के खरीद मूल्य का ऐलान भी किया जाता है। इन फसलों के मंडीकरण के प्रबंध भी किये जाते हैं, परन्तु किसानों द्वारा इन फसलों तथा फल-सब्ज़ियों सहित अन्य फसलों के दाम लागत मूल्य से जोड़ने की मांग पर भी ज़ोर दिया जा रहा है। चाहे गन्ना और दालों के दाम भी सरकार की ओर से घोषित किए जाते हैं परन्तु फिर भी इनका सही ढंग से मंडीकरण नहीं होता। अनेक बार सब्ज़ियों तथा फलों का अधिक उत्पादक होने के कारण भी इनके मूल्यों में भारी गिरावट आ जाती है, जिससे किसानों की आर्थिकता पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। अनेक बार प्रकृति का बड़ा प्रकोप भी किसानों के लिए खतरनाक बन जाता है। 
चाहे केन्द्र सरकार ने फसल बीमा योजना की शुरुआत भी की थी। पंजाब सहित कुछ राज्यों ने इस योजना को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि इन राज्यों के अनुसार यह किसानों के लिए लाभदायक नहीं थी। समूचे रूप में यह योजना अभी संतोषजनक ढंग से मुकम्मल नहीं की जा सकी। देश की जनसंख्या के अनुसार देश को अलग-अलग ढंगों से अनाज के रख-रखाव की भी ज़रूरत है। केन्द्र सरकार की तरफ से हर नागरिक के लिए भोजन के अधिकार पर मोहर लगाई गई है। परन्तु इन सभी कोशिशों के बावजूद बड़े रूप में किसानों की आर्थिक तंगी और मुश्किलें कम नहीं हुईं। आज किसानों पर चढ़े अनेक तरह के ऋणों का ऐसा बड़ा मामला सामने आ चुका है जिसका हल आसानी से निकाला जा सकना मुश्किल है। ऐसी पृष्ठ- भूमि में ही किसानों द्वारा 10 दिनों के लिए शुरू किए गए आन्दोलन को देखा जा सकता है, परन्तु व्यवहारिक रूप में इसके शुरू होने से बेहद मुश्किलें सामने आईं, खास तौर पर छोटे-बड़े शहरों की मंडियों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ा। नागरिकों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दूध तथा अन्य खराब होने वाली वस्तुओं और सब्ज़ियों, फलों की सम्भाल बेहद मुश्किल बन गई, खास तौर पर दुग्ध उत्पादकों के लिए तो एक बड़ा संकट उत्पन्न हो गया था, जिस कारण समूचे समाज में तनाव पैदा होना भी शुरू हो गया था। आपस में कशमकश और लड़ाई-झगड़े बढ़ने लगे, जिसको किसानों के बड़े वर्ग और उनसे संबंधित यूनियनों ने भी महसूस किया। लम्बे सोच-विचार के बाद पंजाब की किसान यूनियनों द्वारा इस शुरू किए गए आन्दोलन से सामने आई मुश्किलों को भांपते हुए इसको समाप्त करने का ऐलान किया गया है। किसान प्रतिनिधियों ने बताया है कि दस दिनों के लिए शुरू किए आन्दोलन को पहले ही खत्म करने का फैसला कुछ कारणों से लेना पड़ा है, क्योंकि शुरू किए गए इस शांतिपूर्ण आन्दोलन में बड़ी गड़बड़ पैदा होने का संदेह बनता जा रहा था। पंजाब के बड़े शहरों में किसानों, आढ़तियों तथा अन्य वर्गों में टकराव पैदा होने लगा था, जो गम्भीर रूप धारण करता जा रहा था। इसके साथ ही दुग्ध उत्पादकों के लिए लम्बे समय तक दूध की सम्भाल करना बेहद मुश्किल था, जिस कारण हर तरफ से नुक्सान होने लगा था। 
जहां हम किसान संगठनों द्वारा अपना आन्दोलन वापिस लेने पर संतोष व्यक्त करते हैं, वहीं केन्द्र और राज्य सरकार से यह अपील भी करते हैं कि वह आगामी समय में पूरी तत्परता से किसानों को दरपेश कठिनाइयों के प्रति ऐसा कदम उठाने के लिए तत्पर हों, जो उनकी मुश्किलों को कम करे और किसानों की आथिर्कता को प्रोत्साहन देने में सहायक हों। पंजाब सरकार द्वारा स्थापित किए पंजाब कृषि आयोग द्वारा कृषि नीति का मसौदा तैयार किया गया है, जिसमें इस धंधे से संबंधित अनेक समस्याओं के हल भी सुझाए गए हैं और किसानों की आर्थिकता को नियमबद्ध करने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं। इस आयोग की रिपोर्ट पर पूरी गम्भीरता से विस्तृत विचार-विमर्श किए जाने की आवश्यकता है ताकि इसको आधार बना कर पैदा हुए गम्भीर मामलों का कोई हल निकाला जा सके।
-बरजिन्दर सिंह हमदर्द