गन्ना उत्पादक किसानों को राहत

केन्द्र सरकार द्वारा गन्ना किसानों के लिए 8500 करोड़ के पैकेज को स्वीकृति देने से गन्ना उत्पादकों को कुछ राहत का एहसास होगा। गत कई वर्षों से मिलों द्वारा गन्ने की अदायगियां किसानों को बहुत पिछड़ कर की जाती रही हैं। देश भर में आज भी गन्ने का मिलों की ओर 22 हज़ार करोड़ रुपए बकाया रहता है। गन्ना आवश्यक वस्तुएं अधिनियम में शामिल होने के कारण इसके मूल्य सरकार द्वारा निश्चित किए जाते हैं। मिल मालिक लम्बे समय से यह शिकायत करते आए हैं कि गन्ने का निश्चित किया गया मूल्य चीनी के लागत मूल्य से काफी अधिक होने के कारण मिलें आर्थिक संकट में फंसी हुई हैं। ऐसे हालात में उनको अदायगी में मुश्किलें हमेशा आती हैं। एक तरफ सरकार लगातार ये योजनाएं बनाती आ रही है कि किसानों को गेहूं और धान के फसली चक्र से निकाला जाना आवश्यक है, दूसरी तरफ गन्ने की पूरी अदायगी न होने के कारण गन्ना उत्पादक निराश दिखाई दे रहे हैं। पंजाब में इस समय 16 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 9 सहकारी और 7 निजी क्षेत्र में हैं। एक-आधी मिल के अलावा अन्य सभी मिलों की ओर किसानों के करोड़ों रुपए बकाया हैं। इस वर्ष देश भर में गन्ने का उत्पादन अधिक हुआ है। गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक उत्तर प्रदेश है। महाराष्ट्र तथा कर्नाटक बाद में आते हैं। इन सभी राज्यों में मिलों की ओर से किसानों को खरीदे गन्ने की बहुत कम अदायगी की गई है। इस बात को देखते हुए पहले केन्द्र सरकार द्वारा मिलों को पांच रुपए 50 पैसे प्रति क्ंिवटल गन्ने के मूल्य पर सहायता देने का ऐलान किया गया था और इस योजना के तहत सरकार ने 1540 करोड़ रुपए दिए थे। भारत दुनिया भर में चीनी का दूसरा बड़ा उत्पादक है। चीनी के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में मूल्य भारत के मुकाबले कम होने के कारण देश में से इसका निर्यात भी नहीं हो रहा। इसलिए सरकार द्वारा यह भी प्रयास किया जा रहा है कि चीनी का बफर स्टॉक और बढ़ाया जाये। इसके लिए सभी चीनी मिलों के साथ विचार-विमर्श करके उनको बफर स्टॉक बढ़ाने के लिए कहा गया है। जिसकी सांभ-सम्भाल के लिए सरकार मिलों को अदायगी करेगी। केन्द्र की ओर से चीनी मिलों के लिए घोषित किए गए नए पैकेज से पंजाब के किसानों को भी पौने 900 करोड़ रुपए की राहत मिलने की उम्मीद की जा रही है। किसान की कृषि उपज का मामला इसलिए भी बेहद गम्भीर है कि यदि किसी फसल का उत्पादन कम होता है तो उसकी कीमत बढ़ जाती है। यदि उत्पादन अधिक होता है तो कीमत में बड़ी गिरावट आ जाती है। इसमें संतुलन बनाने के लिए सरकार को बड़े प्रयास करने की आवश्यकता पड़ती है। सरकार की ओर से दिए गए नये पैकेज से इस क्षेत्र में किसानों को राहत तो अवश्य मिलेगी, परन्तु उनकी जितनी बड़ी बकाया राशि मिलों की ओर पड़ी है उसको देखते हुए आगामी समय में केन्द्र सरकार को और भी गम्भीर प्रयासों और योजनाएं बनाने की आवश्यकता होगी। पंजाब की चीनी मिलों की पिराई क्षमता तो पहले ही बहुत कम है। अधिक फसल होने से किसानों की और भी सांसें रुक जाती हैं। इस बार छिलाई की मज़दूरी की दरें बढ़ने ने भी किसानों की चिंताओं में वृद्धि की थी। जहां तक सरकारी मिलों का संबंध है इनकी पिराई की क्षमता इसलिए बेहद कम है क्योंकि इनमें नई और आधुनिक मशीनरी नहीं लगाई गई। पुरानी मशीनरी से पिराई की क्षमता बढ़ाई जा सकना मुश्किल है। पंजाब सरकार के लिए आगामी समय में यह भी चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है कि वह इन मिलों की पिराई क्षमता को बढ़ाने के लिए क्या प्रयास करे, क्योंकि राज्य में गत लम्बे समय से इस बात की भी चर्चा होती रही है कि कृषि में फसली विभिन्नता लाने की ज़रूरत है। पंजाब में धान की काश्त से भूमि निचले जल का स्तर नीचे जाने के कारण भी चिंता व्यक्त की जा रही है। इसलिए आगामी समय में उन फसलों को ही उत्साहित किया जाना चाहिए, जिनके लिए पानी की ज़रूरत कम पड़े। इस समूचे घटनाक्रम के लिए कृषि के क्षेत्र में बड़ी योजनाबंदी और क्रांतिकारी बदलाव लाने की आवश्यकता होगी ताकि किसानों को आगामी समय में अपने फसलों के उचित मूल्य मिलने के साथ-साथ उनकी अदायगी भी समय पर की जा सके। केन्द्र की ओर से दी इस बड़ी राहत को इसलिए भी अस्थायी कहा जा सकता है कि क्योंकि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस योजनाबंदी नहीं हुई, जिससे किसानों में इस धंधे के प्रति उत्साह को बरकरार रखा जा सके। 

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द