भुखमरी की समस्या से जूझ रहा है हमारा देश

भुखमरी के मामले में भारत की स्थिति गम्भीर है। ‘ग्लोबल हंगर इंडैक्स 2017’ के आंकड़ों को देखें तो भारत 119 देशों की सूची में 100वें स्थान पर है। ताजा रैंकिंग के मुताबिक भूख से जूझ रहे देशों के मामले में भारत उत्तर कोरिया, बंगलादेश यहां तक कि इराक से भी पीछे है। भारत के पड़ोसी देशों में से अधिकतर की रैंकिंग उससे बेहतर है, इनमें चीन सबसे आगे है जो 29वें स्थान पर है। उसके बाद नेपाल 72वें, म्यांमार 77वें, श्रीलंका 84वें, बंगलादेश 88वें, पाकिस्तान 106वें और अफ़गानिस्तान 107वें स्थान पर है। हर रोज़ भारत में तीन हज़ार बच्चे भूख व भूख के कारण हुई कमज़ोरी से मर जाते हैं। इन हालातों में जब हमें अपने हिन्दोस्तान को भूख जैसे दानव के खूनी पंजों से बचाना चाहिए, वहीं हम ‘डिज़ीटल इंडिया’, ‘अतुल्य भारत’, ‘विकास में वृद्धि’ और आधुनिकता के अध-नंगे वस्त्र पहन कर जश्न मनाने में व्यस्त हैं। व इन्सान जिसे भर पेट खाना नसीब नहीं होता उसके लिए चाहे चांद पर पहुंचा जाए, चाहे हम आधुनिक मिसाइलों का निर्माण करें, चाहे रोबट बनाएं या लग्जरी गाड़ियां, उसके लिए तो सब मिट्टी हैं क्योंकि उसके लिए तो दो वक्त की रोटी ज़रूरी होती है। मंगल ग्रह पर अपना यान भेजने वाले भारत देश के सामने आज भूख सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। जबकि भारत में सबसे अधिक अनाज, सब्ज़ियों व फलों का उत्पादन होता है जोकि प्रत्येक की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त है। लेकिन हमारी माननीय सरकारों की बदौलत 40 प्रतिशत फल व सब्ज़ियां खेतों से ग्राहकों तक पहुंचते या यूं कहें गोदामों में पड़े-पड़े सड़ जाती हैं। जबकि 20 प्रतिशत अनाज भी इसी आग की भेंट चढ़ जाता है। बेहद शर्मनाक बात है कि देश के कुछ धनाढ्य जहां करोड़ों-अरबों के घोटाले करके, देश की सम्पत्ति हड़प कर विदेशों में भाग जाते हैं, वहीं देश का किसान ऋण के बोझ तले दब कर आत्महत्या कर रहा है। गरीब भूख से दम तोड़ता है। ये अमीर धार्मिक स्थलों पर सोना-चांदी चढ़ाते हैं, भगवान को दूध का अभिषेक करवाते हैं लेकिन किसी भूखे को रोटी देना अपनी आन-बान और शान के खिलाफ समझते हैं। इसी की ताज़ा मिसाल है कि पिछले दिनों झारखंड में एक महिला भूख से तड़पती रही, परन्तु किसी ने उसे रोटी का एक निवाला तक नहीं दिया और फिर दो-तीन दिन मौत से लड़ते हुए आखिरकार वह दम तोड़ गई। उस देश में जहां दुनिया के सबसे अमीर लोग रहते हैं वहां जहां लोग शादी पर लाखों रुपए उड़ा देते हैं परन्तु भूखे बच्चों को खाना तक नसीब नहीं होता। क्या सच में भूख से लड़ना हमारे बस की बात नहीं। अगर हम सभी अनाज की बर्बादी न करके उसे किसी ज़रूरतमंद को दे दें तो शायद भूखमरी से मरते लोगों की संख्या व उनका दर्द काफी हद तक कम किया जा सकता है। पिछले दिनों बुंदेलखंड के बांदा में भूख से हुई मौत पर सर्वे किया तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। सर्वेक्षण के मुताबिक 108 गांवों के 53 प्रतिशत परिवार या तो अनाज से वंचित हैं या फिर दूध से। वहीं बुंदेलखंड का हर पांचवां परिवार सप्ताह में एक दिन भूखा सोने को मजबूर है।  ग्लोबल हंगर इंडेक्स  की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में भुखमरी का शिकार होने वाले लोगों का एक चौथाई हिस्सा अकेले भारत में है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हर रोज़ भारत में 18 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। हालांकि भूखमरी के हालातों से निपटने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं चलाई हुई हैं। लेकिन ये योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित हैं।  भारत में हर वर्ष दो करोड़ 10 लाख टन गेहूं बर्बाद हो जाता है। वर्ष 2010-2015 में 26 हज़ार टन गेहूं फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ गया। इसी तरह खुले में रखा अनाज या तो बारिश में भीग कर खराब हो जाता है, या खुद उस पर पानी डाल कर उसे खराब कर दिया जाता है। या फिर उस अनाज को चूहे खा जाते हैं, लेकिन गरीब अनाज के दाने को तरसते हुए दम तोड़ देता है। आज महंगाई की कमर तोड़ती ऊंचाइयां व सस्ते नशे ने भूखे बेरोज़गार लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। लेकिन समाज के ठेकेदार और सरकारें अपने मखमली गलियारों में छिपे हुए हैं, उनको गरीब, भूखे और बेरोज़गार लोगों की कोई चिंता नहीं।