ट्रम्प-किम मुलाकात : परमाणु हथियारों को तिलांजलि देना विश्व शान्ति के लिए ज़रूरी

उत्तर कोरिया के दूत किम योंग चौल ने जब व्हाईट हाऊस के ओवल आफिस में अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोपियो को मिलने के दो दिन बाद वाशिंगटन डीसी में डोनाल्ड ट्रम्प के साथ 80 मिनट तक मुलाकात की तो अगले दिन ही अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 12 जून को दोनों देशों में होने वाली शिखर वार्ता की पुष्टि कर दी। एक बार इस मुलाकात के ट्रम्प द्वारा रद्द किए जाने के बाद पुन: स्वीकार करने पर दुनिया भर के जागरूक लोगों के चेहरों पर छाई उदासी पुन: खुशी में बदल गई। दुनिया अमरीका और उत्तर कोरिया के बीच खींचतान को खत्म होता देखना चाहती है, क्योंकि इसी में ही सबका भला है। कुछ बातें विचारणीय भी होती हैं। ध्यान दें, कुछ वर्ष पूर्व जब पूछलतारा और धरती एक दिशा की ओर आ रहे थे तो दुनिया भर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की जान मुट्ठी में आ गई थी कि यदि दोनों टकरा जाते हैं तो क्या होगा। परन्तु बिल्कुल उसी समय पर आकर जब पूछलतारे ने अपनी दिशा बदली तो इन वैज्ञानिकों ने सुख की सांस ली। बिल्कुल ऐसे हालात ही बन गए थे जब अमरीका और उत्तर कोरिया आमने-सामने थे। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे और अमरीका अपने प्रभुत्व कायम रखने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था। यह दोनों प्रमुख एक-दूसरे की ओर शब्दों के अग्नि बाण दाग रहे थे, तो दुनिया सहम से सिकुड़ गई थी। यह सत्य है कि यह दोनों देश तीसरा विश्व युद्ध छिड़ने के द्वार से पीछे लौटे हैं। शुक्र है युद्ध टल गया है परन्तु इसके पीछे क्या कारण है कि किसी की बात न सुनने वाला कोरियाई तानाशाह अचानक क्यों ऐड़ी पर घूम गया है। और दूसरी तरफ आंखें निकाल कर डराने वाले अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प किम की प्रशंसा करने लगे। चाहे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की उपस्थिति में 12 जून की मुलाकात के तयशुदा एजेंडे के तहत उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु अड्डे नष्ट कर दिए थे परन्तु परमाणु हथियारों के बारे में कुछ नहीं कहा। वैसे यह बात विचारणीय है कि उत्तर कोरिया का यह तानाशाह किम जोंग उन इतना क्यों बदला है? इसके बारे में चीन की यूनिवर्सिटी ऑफ साईंस एण्ड न्यूक्लीयर टैक्नोलॉजी ने हाल ही में उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के बदलने का जो राज बताया है, उसके अनुसार जब मजबूरियों ने मनमर्जियां करने वाले बादशाह के हाथ बांधे तो ऐसा स्वीकार करना जोंग के लिए आवश्यक भी हो गया था। सबसे बड़ी बात यह थी कि पिछले लम्बे अर्से से संयुक्त राष्ट्र तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश के बहिष्कार का सामना कर रहे उत्तर कोरिया की आर्थिक हालत लगातार खराब होती जा रही थी। जरा अनुमान करके देखें कि 50 वर्षों से दक्षिण कोरिया के साथ दुश्मनी बनाये रखने वाले उत्तर कोरिया की क्या मजबूरी थी कि दोनों देशों के सैनिक सीमा पर मून जेई इन, किम जोंग उन के साथ आलिंग्नबद्ध हो गये और दुश्मनी त्याग कर मित्रता की सीढ़ियां चढ़ने लगे। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जो कभी जोंग को मूर्ख कहते थे, वह उनकी प्रशंसा के पुल बांधने लगे। अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषक इस बात को स्वीकार करते हैं कि हालात ने किम जोंग को पांव पीछे उठाने के लिए मजबूर किया है।  चीन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा अहम खुलासा किया है  वह यह है कि 3 दिसम्बर, 2017 की दोपहर को जब उत्तर कोरिया के इस तानाशाह ने छठा 50 किलो टन के थर्मो न्यूक्लीयर हथियार अर्थात् हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया तो कोरिया में त्राहि मच गई थी। क्योंकि जिस सुरंग में गहरे गड्ढे खोदकर विस्फोट किया गया था उससे न सिर्फ परमाणु कार्यक्रम चलाने वाली सुरंग ही तबाह हो गई अपितु विज्ञान से संबंधित 200 कोरियाई लोगों का मारे जाना और डेढ़ से अधिक का घायल होना किम योंग की कमर तोड़ने के समान था। जब उत्तर कोरिया ने गत वर्ष सितम्बर में अंतिम बम विस्फोट किया था तो चीन के माहिर वैज्ञानिकों के अनुसार धरती में यह इतना बड़ा विस्फोट था कि इसकी धमक चीन और रूस तक भी भूकम्प की तीव्रता की तरह 6.3 रिएक्टर स्केल पर मापी गई थी। इस तबाही ने उत्तर कोरिया को भीतर से तोड़ दिया था और किम जोंग चाहते थे कि मित्रता का कोई भी अवसर किसी के साथ भी किसी भी कार्य के लिए मिले, तो वह व्यर्थ नहीं जाने देंगे।
कल तक अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प किम जोंग उन को बहुत बुरे शब्दों से सम्बोधित करते थे अब वह उनकी प्रशंसा करने लगे हैं। ‘जंग लगी कि लगी’ की स्थिति को बदलकर मोहब्बत की सीढ़ियां चढ़ने लगे। दोनों देश अमरीका और उत्तर कोरिया दुनिया के शांतिप्रिय चेहरों की रौनक वापिस लाने में प्रयासरत हो गए हैं। आज सिंगापुर में दुनिया की ऐतिहासिक विश्व शांति वार्ता के मुद्दे पर मुलाकात हो रही है। यह वही स्थान है, जहां 2015 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ताईवान के राष्ट्रपति जिंग जियू मिले थे। 1949 में अलग हुए देशों के दोनों राष्ट्रपतियों की यह पहली मुलाकात थी।  यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि आखिर बड़े से बड़े मामले भी सिर जोड़कर ही हल होते हैं। बीजिंग और रूस ने उत्तर कोरिया को इस बातचीत के लिए प्रेरित किया था। क्योंकि दोनों देश उत्तर कोरिया के पड़ोसी हैं और कोरिया प्रायद्वीप की स्थिरता तथा शांति बनाये रखने के लिए यह वार्ता ही एकमात्र हल हो सकती थी। इसलिए आज की मुलाकात के बाद क्या परिणाम निकलते हैं, विश्व के लोग जिस शांति की ओर उत्सुकता और उम्मीद से देख रहे हैं, उसको कितना फल मिलेगा यह समय ही बतायेगा, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि मून और किम की तरह ट्रम्प और किम भी जोरदार आलिंग्नबद्ध होने का माहौल बना लेंगे।