गठबंधन की राजनीति को चाहिए एक सक्षम नेतृत्व

कर्नाटक में चुनावी सफलता और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव से उत्साहित विपक्ष 2019 के आम चुनावों की जीत के प्रति निश्चित दिख रहा है। यदि विपक्ष एक साथ रहता है, तो भाजपा नरेन्द्र्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में जीत नहीं पाएगी। पर सवाल यह है कि विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा? कांग्रेस, जो कि सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है, नेतृत्व के लिए अपने दावे को आगे करेगी लेकिन प्रधान मंत्री पद के लिए कई उम्मीदवार हैं। इन उम्मीदवारों में ममता बनर्जी, मायावती और चंद्रबाबू नायडू भी शामिल हैं। वह एक अलग परिदृश्य था जब जनता पार्टी ने आपातकाल के बाद 1977 में सरकार बनाई थी। मोरारजी देसाई जनता पार्टी सरकार का नेतृत्व करने के स्वाभाविक पसंद थे, जिसमें चरण सिंह, जगजीवन राम और एच एन बहुगुणा जैसे कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। जयप्रकाश नारायण जैसे नेता मार्गदर्शन करने के लिए वहां थे, लेकिन वह लंबे समय तक नहीं टिके और गुर्दे की परेशानी के बाद उनकी मृत्यु हो गई। इन नेताओं, विशेष रूप से चरण सिंह, जो तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री और प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के बीच खड़़े थे। आखिरकार, जनता पार्टी की सरकार दो साल से कम समय में ही गिर गई, और इंदिरा गांधी सत्ता में लौट आईं।वीपी सिंह सरकार  भी ज्यादा चल नहीं पाई। एक साल पूरा करने के पहले ही वह गिर गई। 1996 में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार भी नहीं चली। कहने का मतलब यह है कि भारत में गठबंधन ने बड़ी सफलता नहीं देखी है। हालांकि मनमोहन सिंह की सरकार ने अच्छा काम किया और दूसरा कार्यकाल प्राप्त हुआ, लेकिन दूसरे में भ्रष्टाचार और कई मोर्चों पर विफलता से बाधित हो गया। इसलिए, कांग्रेस को 2014 के आम चुनाव में हार मिली और वह केवल 44 सीटें पा सकी, जबकि भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया। नरेन्द्र्र मोदी सरकार के कार्यकाल के चार साल पूरे हो चुके हैं। उनकी सरकार का प्रदर्शन खराब रहा है। वह भ्रष्टाचार में फंस गयी है। धर्म-निरपेक्षता और सामाजिक शांति पर भी खतरा मंडरा रहा है। मोदी ने लम्बे वादे किए लेकिन शायद ही कोई भी पूरा कर सके। नोटबंदी को भ्रष्टाचार खत्म करने के एक मास्टर स्ट्रोक के रूप में प्रदशित किया गया था, लेकिन यह राजनीतिक और कॉर्पोरेट अभिजात वर्ग के बीच भ्रष्टाचार को सुविधाजनक बनाने वाला साबित हुआ, जबकि मध्य और मजदूर वर्गों पर कहर बरपा गया। विजय माल्या और नीरव मोदी से जुड़े बैंक घोटाले ने भाजपा सरकार की छवि को खराब कर दिया है। आगामी आम चुनाव मोदी के लिए आसान नहीं रहा। वर्तमान समय में कांग्रेस स्वयं नरेन्द्र्र मोदी को पराजित नहीं कर सकती, इसलिए विपक्षी एकता की आवश्यकता है, जिसने राज्य स्तर के चुनावों और उप-चुनावों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। क्या यह आम चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन करेगा? मान लें, संयुक्त विपक्ष बहुमत प्राप्त करता है, तो यह दृश्य भयभीत करने वाला भी हो सकता है। यह एक आश्चर्य की बात होगी यदि विपक्षी एकता लंबे समय तक चल जाये, जैसा कि पिछला अनुभव कहता है। इसका अर्थ है कि फिर चुनाव हाेंगे और तब क्या होगा यह कहना इस समय मुश्किल है। आदर्श स्थिति पूर्ण ध्रुवीकरण है जिसमें दो पक्ष वैकल्पिक रूप से भारत पर शासन करते हैं। इसलिए कांग्रेस को खुद को सुधारना है। इसकी पूरे देश में मौजूदगी है, जबकि भाजपा के पास अभी भी नहीं है। या तो राहुल गांधी या परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति को इसे एक गतिशील नेतृत्व देना है। वास्तव में वंशीय शासन के दिन खत्म हो गए हैं और कांग्रेस को नए नेतृत्व को विकसित करना है। कांग्रेस पार्टी में उज्ज्वल नेताओं की कोई कमी नहीं है। उन्हें दबाने के बजाए बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए। पर फिलहाल तो कांग्रेस अकेले दम भाजपा को नहीं हरा सकती। विपक्षी एकता ही यह काम कर सकती है, लेकिन विपक्षी एकता यह काम सफलतापूर्वक कर सके, इसके लिए उसके पास एक सक्षम नेतृत्व चाहिए, जिसके पास राजनीतिक सूझबूझ हो। (संवाद)