देश की मौद्रिक व्यवस्था ‘कुछ न समझे खुदा करे कोई ’

रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपनी छ: सदस्यीय मौद्रिक कमेटी से विचार-विमर्श के बाद अपनी नई मौद्रिक नीति की घोषणा कर दी है। इससे पहले देश की मौद्रिक नीति दोहरा लक्ष्य साध रही थी। पहला देश में निवेश बढ़ा कर विकास दर को बढ़ाना और दूसरा देश में मूल्य नियंत्रण। लेकिन अब देश की स्थिति यह बन गई है कि महंगाई ने हर घर द्वार पर दस्तक दे दी है। रिज़र्व बैंक विशेषज्ञ यह बताते हैं कि पिछले दिनों मूल्य सूचकांक ने फिर बढ़त दिखानी शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में अंतर्राष्ट्रीय मंडियों में कच्चा तेल और पैट्रोलियम उत्पाद और महंगे हो जाने के कारण महंगाई और बेलगाम होगी, मूल्क सूचकांक बढ़ेगा। मोदी शासन की पहली पारी का यह आखिरी चुनाव प्रचार वर्ष है, इसलिए आम आदमी को महंगाई के बोझ तले अब संत्रस्त होते देखने का संकट मोल वह नहीं ले सकती। इसलिए इस नई मौद्रिक नीति का लक्ष्य केवल मूल्य नियंत्रण रखा गया है। इसीलिए मौद्रिक नीति ने तरलता संकुचन का रास्ता अपनाया है। मोदी शासन में पहली बार रिज़र्व बैंक ने अपना रैपो रेट छ: प्रतिशत से बढ़ा कर 6.25 प्रतिशत कर दिया है। इसका अर्थ यह कि अब वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अपनी प्रतिभूतियां केन्द्रीय बैंक को बेचना महंगा हो जाएगा। इससे उनके तरलता भंडार बढ़ाने कम हो जाएंगे। उन्हें अपने ऋण देने की प्रक्रिया को संकुचित करना होगा। निवेशक के लिए कज़र् दरें महंगी हो जाएंगी। इस आदेश का तत्काल असर बड़े राष्ट्रीयकृत बैंकों पर पड़ा है। उन्होंने अपने ऋणियों के लिए कर्ज़े महंगे कर दिए हैं, ऋण वापिसी की मासिक भुगतान किस्त भी महंगी हो गई। इसका असर स्पष्ट है निवेशकों द्वारा अपनी ऋण मांग को उसकी बढ़ती लागत के कारण घटाया जाएगा। रिज़र्व बैंक को उम्मीद है कि इस बढ़ती लागत से निवेशक निरुत्साह नहीं होंगे। लेकिन देश में घटती मांग और मंदी की अवस्था से निवेशक पहले ही निरुत्साहित हैं, अब महंगा ऋण उन्हें और निराश करेगा। दूसरी ओर मौद्रिक नीति महंगाई पर भी नियंत्रण नहीं कर पाएगी। महंगे ऋण ने आटो क्षेत्र और आवास ऋणों के क्षेत्र को पस्त कर ही दिया। उधर पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर नियन्त्रण करने के लिए न केन्द्रीय सरकार अपनी एक्साइज और न ही राज्य सरकारें अपने वैट घटाने के लिए तैयार हैं। वे अपनी मुनाफाखोरी कम नहीं करेगी, क्योंकि उनका राजस्व घटता है और उनका तर्क है कि इससे आम लोगों के लिए चलाये जा रहे उनके विकास कार्य रुक जाएंगे। ये विकार्स कार्य अगर भ्रष्टाचार की दलदल से बाहर आ गये, तो अपने सुपरिणाम समय अन्तराल के बाद दिखाते हैं, जबकि लोगों की तत्काल ज़रूरत महंगाई नियन्त्रण और उनके बजट का संतुलित रहना है। यह पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों के बारे में इन सररकारों द्वारा कोई विवेकपूर्ण और साहसी फैसला न ले पाने के कारण सम्भव नहीं। कम से कम पैट्रोलियम कीमतों को राष्ट्रव्यापी जी.एस.टी. के अधीन ला कर यह फैसला किया जा सकता था, लेकिन सरकार अपना वित्तीय घाटा बढ़ने के डर से यह कदम उठाने के लिए तैयार नहीं। बताइए इस उद्यमहीन नीति के कारण सरकार महंगाई नियंत्रित करने के लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकेगी? लेकिन रैपो रेट बढ़ा कर और कज़र्े महंगे करके भी सरकार अपने निवेशकों द्वारा निवेश बढ़ा देने की उम्मीद लगाये बैठी है। इसके लिए अभी अपने नये फैसले में सभी लघु और कुटीर उद्योगों का जिनमें जी.एस.टी. देने वाले और न दे सकने वाले दोनों तरह के उद्योग शामिल रहेंगे, को दिये ऋणों के मृत खाते बनने की अवधि नब्बे दिन से बढ़ा कर एक सौ अस्सी दिन कर दी है। पिछले दिनों में देश के अरबपतियों के लाखों, करोड़ के मृत खातों ने राष्ट्रीय बैंक को भारी घाटा दे उनके अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर दिया।  लघु और कुटीर उद्योगों की मृत खातों की राशि भी पंजाब और हरियाणा के लिए बढ़ती जा रही है। पंजाब में 2016-17 में 6455 करोड़ के मृत खाते थे जो बढ़ कर 2017-18 में 6791 करोड़ हो गये। इसी अवधि के लिए हरियाणा के मृत खाते 3549 करोड़ थे जो बढ़कर 5480 करोड़ हो गये। हरियाणा में औद्योगिक विकास तेजी से हो रहा है, इसलिए यहां मृत बैंकिंग खातों की राशि बढ़ना और भी चिंताजनक है।  अब उर्जित पटेल साहिब ने लघु और कुटीर उद्योगों को तीन महीने की जगह छ: महीने की क्षमा अवधि देकर और जी.एस.टी. न देने वाले उद्योगों को भी इसमें शामिल करके इन मृत खातों में और भी वृद्धि करने की ज़मीन तैयार कर दी है। यह ज़मीन किसी नई लघु और कुटीर उद्योग क्रांति का बिरवा फूटने नहीं देगी।