समय के साथ शिक्षित युवाओं का भविष्य!

लगता है मान्य नेताओं के आशीर्वाद से मेरे सुपुत्र का भविष्य उज्जवल है। उसकी एम.बी.ए. की पढ़ाई व्यर्थ नहीं जायेगी। उसे कहीं अच्छी जॉब मिले या न मिले, लेकिन उसे रोटी के लाले नहीं पड़ेंगे। वैसे भी हम भारतीय ‘रूखी-सूखी खा गोपाला’ में विश्वास रखते हैं। हम उन नेताओं का धन्यवाद करते रहते हैं, जिनके सरकार में बैठे होने से हमें उनके मिठास-पूर्ण भाषणों का प्रसाद मिलता रहता है। हमने अंतिम गांव तक बिजली की व्यवस्था कर दी है। उनके इस कहने के भाव से हम समझ जाते हैं कि कुछ बिजली के खंभे वहां गाड़ दिये गये हैं,उनमें तार डालने का कार्य आगामी दस वर्षों में पूर्ण हो जायेगा। भैया, राजनीति का खेल अब सत्ता पाने का खेल बन गया है। राजनेताओं की बाणी से लगने लगता है कि अब ‘मर्यादाओं’ का युग अंतिम चरण पर है। खैर! भटकना आदमी की फितरत है। मैं भी भटक जाता हूं। बात अपने सुपुत्र के उज्जवल भविष्य की कर रहा था। किसी नेता ने परामर्श दिया है कि भैया अब युवक जॉब-वॉब का झंझट म पालें, पान की दुकान खोल लें। पान बेचेंगे तो चूना लगाने का हुनर सीख जायेंगे। नेता जी बिना पान की दुकान खोले ही देश को चूना लगाने का हुनर पा चुके हैं देश को निरन्तर चूना लगाते रहते हैं। अब तो देश भी चूना लगवाने का आदी हो चुका है। उफ तक नहीं करता! चुनाव के समय सत्ता-पक्ष और विपक्ष सभी में चूना लगाने वाले नेताओं का ही दबदबा रहता है। चित्त भी उनकी, पट भी उनकी, वाला मामला है। मेरा बेटा चूना लगाने में प्रवीण हो पायेगा या नहीं, मैं अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं। अगर सीख गया तो कल को देश को चूना लगाने का ढंग भी सीख जायेगा।
एक दूसरे नेता जी का परामर्श है कि बेरोज़गार नवयुवकों को पकौड़े तलने एवं उन्हें बेचने का धंधा अपना लेना चाहिए। धंधा तो धंधा ही होता है। पूरा देश व्यवसायिक बाज़ार बन चुका है। नेता लोग भी देश को एक व्यवसाय की तरह चला रहे हैं। मेरा एम.बी.ए. सुपुत्र भी इस व्यवसाय में उतर सकता है। जब नेता लोग देश को पकौड़े की तरह तलकर मज़े से खा रहे हैं, तो पकौड़ा व्यवसाय का भविष्य उज्जवल ही होगा। लेकिन डर लगता है कि कहीं पकौड़े तलने वाले और बेचने वालों की संख्या पकौड़े खरीदने और खाने वालों से अधिक न हो जाये। आज निष्काम भाव से देश की सेवा करने वालों से अधिक उन नेताओं की संख्या हो चुकी है, जो देश को अपनी निजी जायदाद मानते हैं और मनमाने ढंग से राज-काज करने का लाइसैंस लिए हुए हैं। एक अन्य व्यवसायी धर्मगुरु का विचार है कि युवक खाद्य प्रसंस्करण में निवेश करके वैश्विक दौड़ में शामिल हो सकते हैं। इसके लिए खिचड़ी पकाने एवं खिचड़ी परोसने का बिजनेस अपनाया जा सकता है। शाही खिचड़ी का हर कोई दीवाना रहता है।  सत्ता-सुख की खिचड़ी में भ्रष्टाचार की छौंक लगाई जाती है और आज हर छोटा-बड़ा नेता, साधु-संन्यासी और प्रशासनिक कर्मचारी ऐसी खिचड़ी का सुख पाने के लिए चूहा-दौड़ में शामिल है। चालाकियों और जुमलेबाजी का स्वर्ण युग चल रहा है। मेरा सुपुत्र किस व्यवसाय में उतरना चाहेगा और कितना समय के साथ चल पायेगा, कह नहीं सकता। मैं तो उसके उज्जवल भविष्य की कामना ही कर सकता हूं। हमारे धीर-गम्भीर नेताओं का आशीर्वाद भी शिक्षित युवाओं के साथ है। आमीन!


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