तारामंडल......

आकाश तारों से भरा पड़ा है परन्तु थोड़ा ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि उनके कुछ समूह बने हुए हैं। इन समूहों को उनकी विभिन्न शक्लों से पहचाना जा सकता है। सभी स्थानों और सभी कालों के लोग उन्हें देखते आ रहे हैं। समूहों में उन्हें जो शक्ल दिखाई, उन्होंने उनका वही नाम रख लिया। इन विभिन्न आकृतियों को ही तारा मंडल कहते हैं। ऐसा विश्वास है कि पहले पहल दजला और फरात नदियों के आस-पास रहने वाले बेबीलोनिया के लोगों ने इन समूहों के विभिन्न नाम रखे और इसके बाद समय-समय पर ग्रीक और रोमानियों ने अपने वीर योद्धाओं के नाम पर इन तारा समूहों के नाम बदले। आज जो नाम भारत में प्रचलित है, उनका भारतीय ज्योतिष से संबंध है। सम्भवत: उनकी गति और विभिन्न अवसरों पर दिखाई देने के कारण ऐसा किया गया। हमरे देश में मेष, वृष, कुम्भ, मिथुन, सिंह, तुला, वृश्चिक और सप्तर्षि आदि नाम प्रचलित हैं। यह तारामंडल सब दिन दिखाई नहीं देते। ऐसा सम्भवत: इसलिए होता है कि कुछ स्वयं एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं। जैसे सप्तर्षि ध्रुव तारे की परिक्रमा करते दिखाई देते हैं। परन्तु ऐसा इसलिए प्रतीत है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती, इसलिए आकाश विपरीत दिशा में घूमता हुआ लगता है। तारों के संबंध में अनेक कहानियां बनीं। कह नहीं सकते कि उनमें से कितनी सच हैं और कितनी कल्पना मात्र। परन्तु आकाश में एक तारा आज भी ऐसा है, जिसके संबंध में सैकड़ों हज़ारों सालों से जो कुछ कहा जाता जा रहा है, सच है। वह ध्रुव तारा है। ध्रुव का अर्थ बतलाता है कि वह अपने स्थान पर अटल है। 

—राम प्रकाश शर्मा
मो. 90419-19382