भय.....

एक संन्यासी अपने शिष्य के साथ घने जंगल में जा रहे थे। संन्यासी ने शिष्य से पूछा—‘जंगल में किसी प्रकार का भय तो नहीं?’ शिष्य ने कोई उत्तर नहीं दिया। सूर्यास्त होने के बाद संन्यासी शौच के लिए चले गए। शिष्य ने उनका झोला खोला तो देखा कि उसमें स्वर्ण मुद्राएं हैं। 
संन्यासी वापस आए तो शिष्य ने मुस्कराकर कहा—‘गुरुदेव! अब कोई भय नहीं है। भय को मैंने कुएं में फेंक दिया।’ संन्यासी ने झोला देखा। उनका मोह भंग हो गया। उन्होंने मुस्कराकर कहा—तुम जैसे शिष्य ही गुरु की पवित्रता के प्रहरी होते हैं।

—पुष्पेश कुमार पुष्प