जात-पात तथा भेदभाव ‘डेरावाद’ को कर रहा है प्रफुल्लित

अमृतसर, 17 जून : गांवों में जात-पात तथा भेदभाव के कारण अस्तित्व में आए बड़ी संख्या में गुरुद्वारा साहिबान में नियुक्त ग्रंथियों की तरसयोग्य हालत भी सिख सिद्धान्तों का बड़ा हनन कर रही है। चाहे शिरोमणि कमेटी द्वारा वर्तमान हालात के मद्देनज़र ‘एक गांव एक गुरुद्वारा’ मुहिम शुरू हुई है, परन्तु ज्यादातर कमेटी सदस्यों की ढीली कार्यप्रणाली तथा मतों की राजनीति के कारण शुरू किए गए उक्त प्रशंसनीय प्रयासों को फिलहार भरपूर समर्थन मिलता नज़र नहीं आ रहा। सिख धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार गुरु साहिबान द्वारा जात-पात तथा भेदभाव का खात्मा करते समूची मानवता को आध्यात्मिक तथा रूहानियत की विद्या प्रदान करने के मकसद तहत धर्मशालाएं बनाई गई थीं, जिन्होंने बाद में गुरुद्वारों का रूप धारण कर लिया, परन्तु वर्तमान दौर में गुरु साहिबान के उपदेशों को दर-किनार करते जात-पात के आधार पर गुरुद्वारे साहिबान निर्मित किए जा रहे हैं, जिसके हो रहे विस्तार को रोकने के लिए कोई ठोस रणनीति तो क्या अपितु मतों तथा निजी लाभ के खातिर चल रहे ऐसे प्रचलन को और बढ़ावा दिया जा रहा है। जात-पात के आधार पर गांवों में गुरुद्वारों की बढ़ौत्तरी कोई शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि इन गुरुद्वारों में सूझवान ग्रंथी सिखों की कमी के अतिरिक्त बहुत सारे गुरु घरों में ग्रंथी सिंह ही नहीं हैं, जिससे गुर मर्यादा की घोर उल्लंघना भी हो रही है। अच्छे तथा सूझवान ग्रंथी सिखों की कमी के चलते नौजवान पीढ़ी सिख धर्म से दूर हो रही है। सिख विद्वानों के अनुसार गांवों में जात-पात के कट्टरपन की नींव पर निर्मित किए गए गुरुद्वारों में प्रबंधक कमेटियों द्वारा इमारतों पर तो लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, परन्तु जब बारी ग्रंथी सिहों की नियुक्ति की आती है तो प्रति महीना 500-700 रुपए वेतन लेने वाले ऐसे व्यक्ति की तलाश की जाती है, जो वज़ीरी की सेवा के साथ-साथ गुरुद्वारे में चौकीदारी भी करे। इस दौरान ग्रंथी सिख को अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए प्रतिदिन सुबह शाम हाथ में दूध वाला बर्तन पकड़कर गजा (दूध परसादे की उगाही) करने पर अमावस-संग्रांद पर संगत द्वारा चढ़ाया जाने वाला नाममात्र आटा देने की मंजूरी दी जाती है। ऐसे थोड़े से मान भत्ते में किसी गुरुद्वारे को सूझवान ग्रंथी सिख मिलने की आशा नहीं की जा सकती है, जिसके अच्छे किरदार से खास करके नौजवान पीढ़ी प्रभावित हो सके। वहीं यदि आर्थिक स्थिति की बात की जाए तो वर्तमान समय के महंगे दौर में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों द्वारा दिए जाने वाले उक्त मान भत्ते से ग्रंथियों का जीवन निर्वाह बेहद मुश्किल होता है, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी अपने बच्चों को भविष्य में गुरु घर का वज़ीर बनाने के लिए तैयार नहीं है जबकि विद्वान ग्रंथी सिखों की कमी पर पैदा किए इन हालातों में अक्सर ही गुरुद्वारों में चोरी जैसी घटनाएं भी सामने आती हैं, जिससे समूह ग्रंथियों का अक्स भी खराब होता है।