ट्रम्प- किम मुलाकात : युगांतकारी होंगे इस मुलाकात के परिणाम 

वाकई इसे सदी की सबसे महत्वूर्ण और ऐतिहासिक मुलाकात कहा जाए या नहीं इस पर दो राय हो सकती है किंतु इसके युगांतकारी होने से इन्कार करना कठिन है। सिंगापुर के सेंटोसा द्वीप और इसका कापेला रिजॉर्ट अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन के बीच सफल बातचीत का गवाह बना और यह किसी दृष्टि से सामान्य घटना नहीं है। पूरे विश्व ने बातचीत के सफल होने से राहत की सांस ली है। तात्कालिक मुद्दा यही था कि किम नाभिकीय निरस्त्रीकरण के लिए हामी भर दें और ट्रम्प उत्तर कोरिया को नष्ट करने के अपने घोषित इरादे से पीछे हट जाएं। ये दोनों परिणाम आ गए। ऐसी उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी कि केवल 90 मिनट की बातचीत का इतना बड़ा परिणाम निकल आएगा। कुछ महीने पहले तक दोनों नेता एक दूसरे के लिए जिस भाषा का प्रयोग कर रहे थे, जिस तरह तमाम चेतावनियों के बावजूद किम लगातार नाभिकीय परीक्षण एवं मिसाइलों का प्रक्षेपण कर रहे थे उसमें कौन सोच सकता था कि उनका हृदय परिवर्तन होगा और वे शांति स्थापना के पथ पर चल देंगे। आप इसे चमत्कार कहिए या कुछ और अभी जो हो गया है, वह एक सच्चाई है। ऐसी सच्चाई जिसके लिए पिछले साढ़े छ: दशकों में ड्वाइट आइजनहॉवर (1953) से लेकर बराक ओबामा (2016) तक अमरीका के 11 राष्ट्रपतियों ने कोशिश की, पर सफल नहीं हुए। इस दृष्टि से देखें तो अमरीका में ट्रम्प इतिहास पुरुष बन गए हैं। उनका आलोचक अमरीकी मीडिया भी इसे अब तक की सबसे बड़ी सफलता के रुप में पेश कर रहा है। जिस शांति के दस्तावेज पर हस्ताक्षर हुए उसके अनुसार उत्तर कोरिया जल्द ही नाभिकीय हथियारों को खत्म करने की प्रक्रिया पर काम शुरू कर देगा। इसके बदले में उसने अमरीका से दक्षिण कोरिया के साथ सैनिक अभ्यास न करने तथा उत्तर कोरिया की सुरक्षा की गारंटी ली है। ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार में कोरियाई प्रायद्वीप से अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का वायदा किया था। उन्होंने कहा भी कि मैं अपने सैनिकों को स्वदेश बुलाना चाहता हूं। इससे धन भी बचेगा और क्षेत्र में शांति का माहौल बनेगा। इस समय वहां अमरीका के करीब 30 हजार सैनिक हैं। अगर समझौता सफल हो गया तो फिर उन सैनिकों के रहने की जरुरत खत्म हो जाएगी।  एक साझा पत्रकार वार्ता हुई और बाद में ट्रम्प ने अकेले पत्रकार वार्ता की। साझा पत्रकार वार्ता में ट्रम्प ने कहा कि वे और किम मिलकर बड़ी समस्या को हल करेंगे। किम ने कहा कि दुनिया एक बड़े बदलाव को देखेगी। हमने अतीत को छोड़ने का फैसला किया है। यहां तक पहुंचना आसान नहीं रहा। पुरानी मान्यताओं ने रोड़ा अटकाने की कोशिश की। लेकिन हम इससे उबरे और आज यहां हैं। अगर इस समझौते को कुछ विश्लेषक ऐतिहासिक कह रहे हैं तो वे भी गलत नहीं है। किम जोंग उन ने अपने सात वर्ष के शासन में 89 मिसाइल और 6 नाभिकीय परीक्षण किए हैं। ट्रम्प के पद संभालने के बाद प्योंगयांग ने पहला बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च किया। यह किम की ओर से ट्रम्प का स्वागत था। अमरीका के सहयोगी देश जापान के पास से 4 मिसाइल लॉन्च की गई। 5 अगस्त, 2017 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मत्ति से उत्तर कोरिया पर नए प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रस्ताव परित कर दिया। उसी महीने जापान के ऊपर से एक और मिसाइल दागा। अमरीका आग बबूला हुआ फिर भी उत्तर कोरिया ने सबसे शक्तिशाली और छठे हाइड्रोजन बम के सफल परीक्षण का दावा कर दिया। उस समय को याद कीजिए जब सिंतबर 2017 में ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने पहले संबोधन में कहा था कि उत्तर कोरिया को अमरीका पूरी तरह तबाह कर देगा। किम ने जवाब में ट्रम्प को मानसिक रूप से कमजोर बताया और कहा कि यह शख्स अमरीका को आग में झोंक देगा। इसके बाद ट्रम्प ने कहा  कि किम ऐसा पागल है जो अपने लोगों की परवाह नहीं करता है। इस बार इस पागल को सबक जरूर सिखाया जाएगा। इस बयान के कुछ ही दिनों के अंदर उत्तर कोरिया ने अपने ह्वॉसॉन्ग-15 अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल के सफल परीक्षण की घोषणा की। इस मिसाइल की जद में पूरा अमरीका था। जापान, दक्षिण कोरिया और अमरीका का गुआम सैन्य अड्डा उत्तर कोरिया की मिसाइलों की जद में काफी पहले आ गया था। इसका जवाब 22 दिसंबर 2017 को फिर सुरक्षा परिषद के माध्यम से कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के रुप में दिया गया। नौबत यहां तक आ गई कि किम ने नए साल पर अपने संबोधन में कहा कि उनकी टेबल पर न्यूक्लियर बटन है। जिसके जवाब में ट्रम्प ने कह दिया कि उनकी टेबल पर बहुत बड़ा और शक्तिशाली न्यूक्लियर बटन है और उनका बटन काम भी करता है। इसके पहले किसी ने नाभिकीय हमले की धमकी और प्रतिधमकी इस तरह सुनी नहीं थी। इस पूरी पृष्ठभूमि से सिंगापुर समझौते का विश्लेशण करिए तो इसका महत्व आसानी से समझ में आ जाता है। तत्काल हम कह सकते हैं कि किम-ट्रम्प सहमति से नाभिकीय युद्ध का मंडराता खतरा खत्म हो गया है। इसका एक दूसरा पहलू भी है। वह है कोरियाई द्वीप की लंबी तनावपूर्ण जटिलता। 1953 में दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के बीच युद्ध खत्म हुआ था। यह युद्ध 3 वर्ष तक चला था।   इसमें 9 लाख सैनिकों सहित कुल 25 लाख लोग मारे गए थे। सोचिए, कितनी भयावह स्थिति रही होगी। हालांकि युद्ध रुक गया था लेकिन उसके अंत की घोषणा नहीं हुई थी। इसके बाद से उत्तर कोरिया और अमरीका में बातचीत बंद थी। 1954 में कोरिया समस्या के समाधान के लिए जेनेवा सम्मेलन हुआ जिसमें तब का सोवियत संघ, चीन, अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल था। उस समय अमरीका के राष्ट्रपति आइजनहॉवर थे। वह शीतयुद्ध का काल था। अमरीका उसके साथी यूरोपीय देश एवं सोवियत संघ के बीच यूं ही तनातनी थी। चीन में भी कम्युनिस्ट क्रांति हो चुकी थी। कहा जाता है कि अमरीकी विदेश मंत्री जॉन फॉस्टर डलेस ने काफी कड़ा रुख अपनाया। हालांकि यह अमरीका की नीति थी जिसके तहत उन्होंने चीन के साथ सीधे बात करने से मना कर दिया था। तो परिणाम कुछ नहीं निकला। उसके बाद से जितनी भी कोशिशें हुईं सब नाकाम रहीं। इस नाते देखें तो यह परिवर्तन ऐतिहासिक है। किंतु अभी समझौते का अमल में आना शेष है। ट्रम्प ने एकल पत्रकार वार्ता में कहा कि अभी उत्तर कोरिया से प्रतिंबंध नहीं हटेंगे। यानी जब तक पूर्ण नाभिकीय निरस्त्रीकरण नहीं हो जाता तथा मिसाइल परीक्षण साइट बंद नहीं होता, प्रतिबंध जारी रहेगा। किम स्वयं इसके लिए तैयार हैं। हां, इसमें समय लगेगा। ट्रम्प का यह कथन भविष्य की संभावनाओं को साफ  कर देता है कि कोई भी युद्ध कर सकता है लेकिन शांति स्थापित करने के लिए साहस चाहिए। हालांकि जब किम ने शांति के लिए बड़ा दिल दिखाया है भले इसके कारण कुछ भी हों तो उस पर लागू प्रतिबंधों में ढील की शुरुआत होनी चाहिए। यही न्यायपूर्ण होगा। 

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