क्या हैं सफलता के मूल मंत्र ?

आज का युग बदलाव का युग है। जीवन में प्रत्येक व्यक्ति की एक ‘पहचान’ होनी आवश्यक है। नर हो अथवा नारी, आत्मनिर्भरता समय की मांग है। आत्मनिर्भर बनने के लिए हमें अपने कुछ लक्ष्य निर्धारित करने पड़ते हैं। ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को किसी न किसी विशिष्ट गुण से नवाज़ा है। प्रकृति पर नज़र डालें तो प्रत्येक जाति के फूल-पौधे एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। रंग-आकार, विशेषता में सर्वथा भिन्न। इसी प्रकार मानव जाति में निश्चय ही गुणों का इज़ाफा परिश्रम, प्रयास द्वारा किया जाता है किन्तु ईश्वर द्वारा प्रदत्त गुणों का अपना एक अलग स्थान है। कोई संगीत विद्या में प्रवीण है तो कोई तकनीकी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की काबलियत रखता है। इसलिए लक्ष्य निर्धारित करने से पहले गहन पूर्वालोकन करें। जो कार्य हम करने जा रहे हैं इसमें कितनी रुचि रखते हैं, कितना समय, किस तरह निकालना है, कितना परिश्रम होना चाहिए। अपनी दैनिक दिनचर्या व अतिरिक्त समय को सारणीबद्ध कर एक समय-प्रणाली बनाएं। एक बार समय-सारणी बना लें तो दूसरा कदम है अनुशासन। एक बार समय निर्धारित कर लिया तो पूरी कोशिश होनी चाहिए कि उस पर कड़ाई से पालन करें। एक-एक पल के महत्त्व को समझें। धैर्य व संयम से काम लें। कोई भी कार्य सहज नहीं होता, परिश्रम ही उसे सहज बनाता है। आज का कार्य कल पर कभी न टालें। भूत, भविष्य पर विचार न करते हुए सिर्फ आज पर ही ध्यान दें। कभी भी कोई कार्य दौड़ते-भागते, हड़बड़ाते हुए जल्दबाज़ी में मत करें। मन में सकारात्मक भाव लाएं कि अमुक कार्य मैं करने जा रहा हूं, मैं इसमें पूरी ईमानदारी व सत्यनिष्ठा से अपना शत-प्रतिशत दूंगा व अवश्य इसमें सफल होकर दिखाऊंगा। सोच का जीवन पर गहरा असर पड़ता है। कहा भी है ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’। असफल व्यक्ति यदि सकारात्मक रवैया अपनाए रखे तो एक दिन सफलता निश्चित रूप से ही उसके कदम चूमेगी। इसके विपरीत जो व्यक्ति पहले ही पराजय के भाव से त्रस्त हो, वह जीवन की जंग जीतना तो दूर, लड़ने से पहले ही हार जाएगा। जब एक बार लक्ष्य निर्धारित करके उस पर कार्य करना आरम्भ कर दिया तो परिस्थितियों, विपरीत परिस्थितियों, लोगों की आलोचना, हतोत्साहित करना इन सब चीज़ों को चुनौतियों की तरह स्वीकार करना चाहिए। सफलता की राह कभी भी आसान नहीं होती। अक्सर हम जिन सफल लोगों से प्रभावित होते हैं उनके जीवन के उस जुझारू पक्ष की अनदेखी कर जाते हैं, जिनसे निरन्तर संघर्ष करते हुए वे स्वयं को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाने में सक्षम हुए। लोग चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं मगर सलाम का असली हकदार तो वो दीया है जो साहस के तेल से, ओज की बाती बना, अंधेरों से लड़ने का साहस रखता है। यदि हम साधन सम्पन्न होते हुए आसानी से सफलता अर्जित कर लें तो इसमें बड़प्पन की कोई बात नहीं। वास्तविक सफलता तो वही है जो हम साधनों के अभाव में ज़िन्दगी के तजुर्बे हासिल करते हुए प्राप्त करते हैं। ऐसी सफलता हमें सहज बनाए रखने में सहायक सिद्ध होती है व अपेक्षाकृत टिकाऊ भी होती है। जिस वस्तु को मेहनत से प्राप्त किया जाए वह हमारे लिए अनमोल होती है, उसे बड़े ही यत्न से सहेज कर रखते हैं हम। एक बात और याद रखनी चाहिए कर्म व भाग्य में से हमेशा सदैव कर्म को प्रधान मानना चाहिए। श्रीमद्भगवद गीता में भी कहा गया है ‘कर्मण्ये-वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म पर ही हमारा अधिकार है, फल पर कदापि नहीं। तो किस कारण भयभीत हों? जो अपने हाथ में वह करें, जो हमारे हाथ में है ही नहीं उस पर व्यर्थ विचार कर अपनी आंतरिक ऊर्जा क्यों नष्ट करें? एक बात और याद रखें। जीवन निरन्तर चलता एक युद्ध है। इस युद्ध में हम सभी को भाग लेना पड़ता है। स्वयं ही शस्त्र उठाने होते हैं व स्वयं ही परिस्थितियों को अनुकूल बनाना पड़ता है। प्रेरणा जीवन में अवश्य ऊर्जा का संचार करती है। प्रेरणास्रोत से प्रेरणा ग्रहण कर स्वयं अपने मार्ग निर्धारित करने पड़ते हैं। जीवन-पथ पर एकाकी ही आगे बढ़ना पड़ता है। मार्ग में बिछे कांटों की चुभन स्वीकार करनी पड़ती है, मार्ग के अवरोधों से दो-चार होना पड़ता है। कई बार असफलताएं तोड़ती भी हैं, मगर हर हार को प्रेरणा बनाकर दुगनी शक्ति से प्रयास में जुट जाना चाहिए। अंतत:
मिलेंगी मंज़िलें तुझे, 
ज़रा-सा हौसला तो रख
पत्थरों से फूटे धार, 
झरने का जिगर तो रख
कटाक्ष बना ले प्रेरणा,
 उपहास से न हो विकल
लक्ष्य तक पहुंचेगा तू, 
चलता चल, बस चलता चल।

-मो. 99143-42271