इंतज़ार और अभी, और अभी

इस देश के भाग्य में इंतज़ार लिख दिया गया है। हम सब हैं ही, अच्छे दिनों के आने की इंतज़ार की प्रतीक्षा सूची में। अभी खबर मिली है कि इस देश का लगभग हर सपना जीवी इन्सान बेहतर दिनों की तलाश में विदेश पलायन कर जाने की अंतहीन कतार में बरसों से खड़ा है। अगर ईमानदारी से इस कतार में खड़े होकर अमरीका में जाकर बसने का ग्रीन कार्ड प्राप्त करना है, तो इसमें एक सौ इक्यावन वर्ष लगेंगे। एक आदमी की औसत आयु निकालने वाले आंकड़ा शास्त्री उसे सत्तर बरस बताता है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक आम आदमी को इस देश से कानूनी तरीके से ग्रीन कार्ड को हासिल करने के लिए दो ज़िन्दगी ज़मा दस वर्ष चाहिए। अब बताइए, ‘भला कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक?’
इसलिए हर शहर में कबूतरबाज़ों के कुनबे पनपने लगे हैं। ये अपने अवैध पखों पर सवार करवा के इन दिवास्वप्नशील प्रतीक्षा ग्रस्त नौजवानों को विदेशी धरती तक पहुंचाते हैं। अपने विरसे का सब जमा जत्था बेचकर इन्हें इन अवैध पंखों पर सवारी मिलती है। उम्मीद उड़ान भर कर न्यूयार्क पहुंच जाने की होती है, लेकिन अभागा भगौड़ों की तरह टिम्बकट के जंगलों में उतार दिया जाता है। उम्मीद लक दक चमकदार बड़ी गाड़ियों, और ऊंचे फ्लैटों में जीने की होती है, तोहफा मिलता है तेल देशों में दोयम दर्जे की नागरिकता का या औरत हो तो शेखों के हरमो में यौन शोषण का। मर्द हो तो उनके दड़बो में कैद हो उनकी ठोकरों से लेकर कोड़ों के बरसने का। बेशक एक गुमनाम, दोयम दर्जे की ज़िन्दगी उसके इस प्रमाण के बाद उसका इंतज़ार करती है।  पलायन करने वाला डरे, तो चचा हंस कर उसे समझाते हैं कि ‘इस देश में तो तुम यह भी नहीं पाते। तुम्हें मिली है यहां सातवें दर्जे की नागरिकता की ज़िन्दगी, जिसमें रोटी, कपड़ा, मकान, रोजी रोजगार के वायदे हैं, जो नेताओं के भाषणों में से उभरते हैं और हवा में जुमले बन दम तोड़ देते हैं। हर सर को छत का वायदा बार-बार दोहराया जाता है, लेकिन भू-माफिया द्वारा खड़े किए गये बहु-मंज़िलें भवनों के पिछवाड़े दम तोड़ देता है।’
हम गये थे वहां उन दम तोड़ते सपनों की खोज खबर लेने,लेकिन वहां कोई राजू डफली वाला हमें दिल का हाल सुने दिल वाला गाकर नाचता हुआ दिखाई नहीं दिया।
जब मसीहाओं ने अपने दिल की जगह सोने की ईंटें लगा लीं, तो भला बताओ तुम्हारा हाल उन तक पहुंचेगा कैसे? तुम तो सात समुद्र पार के लोगों को अपना हाल सुनाने के लिए एक चरमराती हुई नौका में ठुस गये थे। तूफानी थपेड़ों का आघात न सह सकी, वह माल्टा के पास आगाध जल राशि में डूबी। लेकिन केवल एक बार नहीं। यहां बरमूडा त्रिकोण जैसे हम समुद्र में माल्टा उभरते हैं और नौजवानों से भरी नौकायें डूबती रहती हैं। लेकिन डूबते नौजवानों की हृदय विदारक चीखें कौन सुनता है? एक नौका डूबती है, और दूसरी नौका के लिए सपना जीते युवक कतार लगाये खड़े मिलते हैं। क्या हुआ जो सपने टूट गये? लोगों को तो इनके टूटने की आदत हो गई है।
जुमलेबाज़ नेता आज भी उन्हें बहलाते हैं, ‘हर पेट को रोटी, हर हाथ को काम’ और मिलेगा जीवन भर का आराम’ आराम तो नहीं मिला, हां, पीढ़ी दर पीढ़ी जीना हराम हो गया, काम के अधिकार को सुविधा केन्द्रों की बंद खिड़कियों के पीछे से नौकरशाहों के अट्टहास ने छीन लिया, और ‘पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब’ की शिक्षा के मौलिक अधिकार को अंग्रेज़ी शिक्षा की चमकदार दुकानों ने। आज भी देश की नब्बे प्रतिशत जनता इन दुकानों से वनवास भोग रही है। बताइए निरक्षरों भट्टाचायों का यह गट्ठर कबूतर बाज़ों का हाथ पकड़ विदेश बिकने के लिए क्यों न चला जाये? बेशक वहां ज़िन्दगी बन्धक है, लेकिन मोल तो अच्छा मिलता है। देश के मसीहा अपने नारों में इसकी चिंता करते हैं अरे देश से प्रतिभा पलायन रोको, क्योंकि यही तो हमारी प्राण शक्ति है।’ लेकिन यह प्राण शक्ति निर्जीव हो देश के हर कोने में कुकरमुतों की तरह उभर आये आईलैट्स संस्थानों में वीज़ा बैंडों की तलाश कर रही है। लड़कियों की संख्या इन अकादमियों में बढ़ गयी, क्योंकि वे बैंड हासिल करके एक के साथ एक ले जा सकेंगी।  एक स्वयं और एक उनका नकली दूल्हा, जिसे वह विदेश तक तस्कर कर परायी धरती पर लापता छोड़ देती है। मुट्ठी भर सिक्कों के बदले। लेकिन अब सुना है विदेशी धरती अपनी मुट्ठियां भींच रही है। नकली दूल्हों को तारणहार नहीं मिल रहे। इन्हें इंतज़ार करना होगा, अभी और उन एक रात की दुल्हनों के साथ जिन्हें प्रवासी भारतीय उनकी मांग पर इस धरती पर छोड़ गये, वे भी अपने दूल्हों की वापसी का अन्तहीन इंतज़ार करती हैं।
जी हां, इस अवैध तंत्र को छिन्न-भिन्न करने के लिए बन रहे हैं, सख्त कानून। धीरज रखें उनके लागू होने का इंतज़ार करें। सिर्फ इंतज़ार ही तो करना है। आपको इसकी आदत भी हो जानी चाहिए।