धान की रोपाई में बाधा बनी मज़दूरों की कमी

जालन्धर, 20 जून (जसपाल सिंह): प्रदेश में धान की रोपाई पर लगाई गई सरकारी पाबंदी हटने के पहले दिन ही धान की रोपाई के काम में अचानक तेज़ी आई परंतु कई स्थानों पर किसानों की जल्दबाजी के बावजूद धान की रोपाई का काम शुरू नहीं हो सका। निर्धारित तिथि पर अचानक सभी किसानों द्वारा इकट्ठे धान की रोपाई के लिए तैयारी किए जाने के कारण किसानों को मज़दूरों की बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। शहरों के रेलवे स्टेशनों पर भी अजीब ही नज़ारा देखने को मिल रहा है और मज़दूरों की तलाश में स्टेशनों पर मज़दूरों की प्रतीक्षा करते किसानों को आम देखा जा रहा है। जब भी उत्तर प्रदेश, बिहार या उत्तराखंड आदि राज्यों से कोई रेलगाड़ी आती है तो किसान इन गाड़ियों की ओर एक उम्मीद की नज़र से देखते हैं और जैसे ही इन गाड़ियों से प्रवासी मज़दूर उतरते हैं तो किसान उनके पास भागते हैं। कई बार तो मज़दूरी की बात न बनने के कारण और पहले ही वहां से किसानों के साथ बात करके चले होने के कारण मज़दूरोें की स्टेशन पर पहुंचे किसानों के साथ बात सफल होती प्रतीत नहीं होती और किसानों को निराश ही वापिस लौटना पड़ता है परंतु कई बार उनकी बात बन जाती है और वह खुशी-खुशी मज़दूरों को साथ लेकर घर की ओर चले जाते हैं। सरकार व कृषि विभाग किसानों को धान की रोपाई के प्रति तैयार नहीं कर सकता और अभी भी अधिकतर किसानों द्वारा धान की हाथों से रोपाई को ही प्राथमिकता दी रही है, जिस कारण किसानों द्वारा धान की रोपाई के लिए खेत पहले ही तैयार कर लिए गए थे परंतु अब अचानक मज़दूर न मिलने के कारण वे मज़दूरों की तलाश में उधर-उधर भटक रहे हैं। सितम यह है कि निर्धारित तिथि पर धान की बुआई शुरू होने का पता मज़दूरों को भी लग गया है और अब वे किसानों से मनमज़र्ी की मज़दूरी वसूल रहे हैं और किसानों की मज़बूरी का लाभ भी उठा रहे हैं। जो मज़दूर विगत में 2 हज़ार से 2200 रुपए तक प्रति एकड़ रोपाई लेते थे आज वह अपने हिसाब से दाम तय करते हैं और इस बार तो शुरुआत ही उनके द्वारा 2800 रुपए प्रति एकड़ से की गई है और आने वाले समय में वह मोटी रकम मांगेंगे। यहीं बस नहीं इस बार मज़दूरों द्वारा किसानों की मज़बूरी को देखते हुए उन पर अपनी शर्तें भी थोंपी जाने लगी हैं। कई स्थानों पर तो मज़दूरों द्वारा स्पष्ट तौर पर किसानों के साथ यह बात तय की जा रही है कि बारिश या किसी अन्य कारणवश काम रुकने पर वे दिहाड़ी के  हिसाब से पैसे लेंगे। इसी प्रकार ‘लाल परी’ व मोबाइल फोन आदि की शर्तें भी किसानों से मनवाई जा रही हैं। वास्तव में धान की रोपाई के काम में पहले ही 10 दिन की देरी होने से किसानों को धान के मंडीकरण की चिंता सता रही है और दूसरा आलू व सब्ज़ियों की बिजाई का समय निकलने का डर भी उन्हें सता रहा है और ऐसे में वह महंगी मज़दूरी के बावजूद धान की रोपाई जल्द से जल्द करवाना चाहते हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा है कि सरकार द्वारा धान की रोपाई के लिए तारीख निर्धारित करने से किसानों की समस्याएं बढ़ गई हैं और वह महंगी मज़दूरी पर धान की रोपाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी तो शुरुआत में ही मज़दूरों द्वारा मनमर्जी की जाने लगी है तो आने वाले समय में तो हालात और गम्भीर होंगे। उन्होंने कहा कि किसानों को बिजली पूरी मिलती है कि नहीं यह भी आने वाले समय में पता चलेगा। कृषि विभाग पंजाब के निदेशक डा. जसबीर सिंह बैंस का कहना है कि किसानों ने सरकार का पानी बचाने के लिए की पहल को भारी समर्थन दिया है और मालवा क्षेत्र के कुछ भाग को छोड़कर अन्य स्थानों पर किसानों द्वारा धान की बिल्कुल भी रोपाई नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा किसानों को दालें व मक्की की काश्त के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है और उनकी कोशिश मक्की के तहत क्षेत्रफल बढ़ाने व बासमती के प्रति किसानों को जागरूक करने की है।