दिव्यांग होकर भी क्रिकेट में धूम मचाता है अमनप्रीत सिंह
अमनदीप सिंह बचपन से ही बाईं टांग से पोलियो का शिकार हैं। लेकिन वह दिव्यांग होकर भी क्रिकेट के मैदान में धूम मचाता है और पंजाब की दिव्यांग क्रिकेट टीम के वह एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं और बतौर बल्लेबाज़ के तौर पर जाने जाते हैं। अमनप्रीत का जन्म बठिंडा के गांव अबलू में 21 जनवरी, 1987 को पिता बलदेव सिंह घुम्मन के घर माता मनजीत कौर की कोख सेहुआ। अमनप्रीत को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था और इसलिए खेल के प्रति उनकी लगन और जुनून के आगे उसकी दिव्यांगता ने घुटने टेक दिए और वह बचपन से ही अपने साथियों के साथ गांव में ही क्रिकेट की टीम बनाकर खेलने लगा। चाहे कि वह दिव्यांग था, लेकिन वह आम खिलाड़ियों की तरह ही खेलते। नि:संदेह उनको आम खिलाड़ियों के साथ खेलने के लिए बड़ी मुश्किलें भी आती लेकिन उनके साहस और जज्बे ने कभी उनको डगमगाने नहीं दिया और वह निरन्तर खेलते ही गये। वर्ष 2014 में मुंबई में दिव्यांग खिलाड़ियों के क्रिकेट टीम के लिए ट्रायल लिए गए, जहां अमनप्रीत भी ट्रायल देने के लिए गये और पहली बार उनको पुणे में हरियाणा प्रांत की टीम की ओर से खेलने का मौका मिला और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वह क्रिकेट के क्षेत्र में लगातार उपलब्धियां हासिल करते गये। अमनप्रीत ने अब तक कई दर्जनों के करीब नैशनल स्तर के क्रिकेट टूर्नामैंट खेले हैं और अपनी अच्छी खेल कला का प्रदर्शन किया है। मुंबई, कलकत्ता, अजमेर, पानीपत, दिल्ली, करनाल और कई शहरों में वह लगातार खेल रहे हैं। अमनप्रीत क्रिकेट खेलने के साथ-साथ कविता लिखने और अच्छा साहित्य पढ़ने का भी शौक रखते हैं। अमनप्रीत सिंह ने बताया कि बी.ए., बी.ई.एड, एम.ए. आर्ट एण्ड क्राफ्ट साथ में करने के साथ-साथ पी.जी.डी.सी.ए. और दो बार पंजाब राज्य अध्यापक योग्यता टैस्ट भी दे चुके हैं और कोई नौकरी नहीं मिली। अमनप्रीत कहते हैं कि सरकारों ने, खास करके पंजाब की मौजूदा व पूर्व सरकारों ने खिलाड़ियों की कोई सार नहीं ली और उन सहित पंजाब के सारे खिलाड़ी निराशा के आलम से गुजर रहे हैं। और तो और इतना पढ़ने के बावजूद और दिव्यांग होते हुए भी सरकार ने नौकरी नहीं दी।निश्चित रूप में यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और खेलों के क्षेत्र में बड़ी-बीड़ी ढींगें हांकने वाली पंजाब सरकार इन तीनों पक्षों से ही बुरी तरह पिछड़ चुकी है। इसलिए आज पंजाब का नौजवान खेलों के प्रति रुख करने की बजाय निराश होकर नशों के दलदल में पड़ रहा है। खैर, अमनप्रीत सिंह के हौंसले की दाद देनी बनती है।
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