ईनाम......

बहुत पुरानी बात है। यमन नामक मुल्क में तै नाम का एक बादशाह था। उसका बेटा था हातिम ताई। हातिम एक बेहद नेकदिल इंसान था। उसकी पूरी जिंदगी ही नेकियों और अच्छाइयों से भरी हुई थी। उसके जमाने में अरब में नौफि ल नामक एक बादशाह भी रहता था जो हातिम से मन ही मन दुश्मनी रखता था। एक बार नौफिल ने बहुत सारी फौज जमा की और हातिम पर चढ़ाई कर दी। हातिम ने विचार किया कि अगर वो लड़ाई करेगा तो बिना वजह बहुत से बेकसूर इंसान लड़ाई में मारे जाएंगे और इसका पाप भी उसे लगेगा। लोगों को खून-खराबे से बचाने और खुद पाप से बचने के लिए हातिम चुपचाप एक पहाड़ की गुफा में जा छुपा। जब नौफिल को हातिम के गायब होने का पता चला तो वो बहुत खुश हुआ और उसके सारे माल-असबाब व दौलत पर कब्ज़ा कर लिया। साथ ही ये मुनादी भी करवा दी कि जो कोई हातिम को पकड़वाने में मदद करेगा उसे पांच सौ अशरफियां इनाम में दी जाएंगी।कुछ दिनों के बाद एक बूढ़ा और एक बुढ़िया लकड़ियां इकट्ठी करने के लिए उसी गुफा के पास जा पहुंचे जहां हातिम छुपा हुआ था लेकिन उन्हें हातिम के वहां छुपे होने का पता नहीं था। तभी बुढ़िया के मन में एक ख्याल आया और उसने बूढ़े से कहा, ‘यदि हमारे दिन अच्छे होते तो हम कहीं न कहीं हातिम को देख लेते और उसे नौफिल के पास ले जाकर पांच सौ अशरफियां हासिल कर लेते। इससे हमारी जिंदगी आराम से कट जाती और बुढ़ापे में काम करने से बच जाते।’बूढ़े ने कहा, ‘हमारी किस्मत में तो लकड़ियां तोड़कर बेचना और उनके बदले रूखी-सूखी रोटियां खाकर पेट भरना ही लिखा है। हातिम हमारे हाथ क्यों आएगा और हमारी किस्मत क्यों बदलेगी?’ हातिम उन दोनों की बातें सुन रहा था। हातिम यह बातचीत सुनकर उनकी मदद करने के लिए बेचैन हो उठा और उसने खुद को बचाने के लिए छुपे रहने की बजाय उन गरीबों की मदद करने का फैसला कर लिया।
हातिम गुफा से बाहर आया और बोला, ‘ऐ नेक बुजुर्ग मैं हातिम हूं। मुझे नौफिल के पास ले चलो और पांच सौ अशर्फियां ईनाम में हासिल कर लो ताकि तुम्हारी ज़िंदगी आराम से कट सके।’ बूढ़े ने कहा कि ये हमारे लिए अच्छी बात होगी लेकिन नौफिल न जाने तेरे साथ कैसा सलूक करे। हो सकता है तुझे मार ही डाले। हातिम जैसे एक नेक इंसान के साथ मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकता। अगर ऐसा किया तो मरने के बाद खुदा को कैसे मुंह दिखाऊंगा ?हातिम ने कहा कि वो अपनी खुशी से ऐसा कर रहा है क्योंकि वो चाहता है कि उनकी जिंदगी और दौलत किसी की भलाई में इस्तेमाल हो सके लेकिन बूढ़ा तैयार नहीं हुआ। इस दौरान वहां कुछ और आदमी भी आ गए। जब उन्हें हातिम के वहां होने का पता चला तो वे हातिम को पकड़कर सीधे नौफिल के पास ले गए। बूढ़ा आदमी भी उनके पीछे-पीछे वहां चला गया। नौफिल ने उन आदमियों से पूछा कि हातिम को कौन पकड़कर लाया है? बूढ़े आदमी के सिवा सभी दावा करने लगे कि वो ही हातिम को पकड़ कर लाए हैं। बूढ़ा बेचारा तो दूर खड़ा हातिम के लिए आंसू बहा रहा था। वो कभी नहीं चाहता था कि हातिम पकड़ा जाए। तभी हातिम ने कहा कि इनमें से कोई मुझे पकड़कर नहीं लाया है। मुझे तो दूर खड़ा रो रहा वो गरीब बूढ़ा पकड़कर लाया है। आप जांच कर लें कि मैं ही हातिम हूं और अपने वायदे के अनुसार इस नेक बूढ़े आदमी को पांच सौ अशर्फियां ईनाम में दे दें।इस पर नौफिल ने बूढ़े से पूछा कि असली बात क्या है? क्या तुम ही हातिम को पकड़कर लाए हो? बूढ़े आदमी ने कहा, ‘सच तो ये है कि मेरी मदद करने के इरादे से हातिम खुद ही यहां आना चाहता था पर मैं ऐसा नहीं होने देना चाहता था। बाद में ये बदमाश वहां आ पहुंचे और इनाम के लालच में हातिम को पकड़ ले आए और आपके हवाले कर दिया।’’नौफिल सारी बातें समझ गया। उसे ये जानकर बड़ी हैरानी हुई कि इस दुनिया में हातिम जैसे इंसान भी मौजूद हैं। नौफिल ने हातिम के बारे में जो भी सुना था उससे बढ़कर ही पाया। उसने उन झूठे और मक्कार लोगों को पांच-पांच सौ अशफियां ईनाम में देने के बजाय पांच-पांच सौ जूते लगाने का हुक्म दिया। फिर इज्जत के साथ हातिम की सारी दौलत और माल-असबाब जिस पर उसने कब्जा कर लिया था वापस उसे लौटा दी। अपने मुल्क को लौटने से पहले अपने वायदे के मुताबिक नौफिल ने बूढ़े आदमी को भी पांच सौ अशफियां ईनाम में दीं। नौफिल ने बूढ़े आदमी को ये पांच सौ अशर्फियां हातिम की दौलत में से नहीं बल्कि अपने खजाने में से दिलवाईं। नौफिल में ये बदलाव भी हातिम जैसे नेकदिल इन्सान की अच्छाइयों के असर से ही मुमकिन हुआ होगा। सच ही कहा गया है कि नेक इन्सानों की सोहबत में बुरे लोगों को भी नेक बनते देर नहीं लगती। 

(सुमन सागर)