माफिया गिरोहों का दु:साहस

गत दिनों घटी दो गम्भीर घटनाओं ने एक बार फिर से चिरकाल से चल रहे रेत-बजरी के अवैध धंधे को नश्र कर दिया है। अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार के समय इस मामले पर उसकी बेहद आलोचना होती रही थी। परन्तु तत्कालीन सरकार, प्रशासन तथा पुलिस के संरक्षण से यह धंधा चलता रहा, जिसने राज्य के खज़ाने को बड़ा नुक्सान पहुंचाया। उस समय अन्य भी अनेक तरह के काले धंधे करने वाले माफिया गिरोह मज़बूत होते गए। उस समय हर कोई जानता था कि इस तरह के अवैध धंधे नीचे से लेकर ऊपर तक मिलीभगत से चल रहे हैं परन्तु किसी की भी परवाह न करते हुए यह सब कुछ बेख़ौफ होकर चलता रहा। जिस कारण तत्कालीन सरकार की छवि को बड़ी चोट पहुंची थी।विधानसभा चुनावों के दौरान विपक्षी पार्टियों ने जहां इस घटनाक्रम का पूरा राजनीतिक लाभ उठाया था वहीं बार-बार यह भी दावा किया था कि वह अवैध धंधों खास तौर पर रेत-बजरी की अवैध खुदाई और बिक्री के धंधे को हर हाल में समाप्त करेंगे, जिससे आम लोगों को भी राहत मिलेगी और नई सरकार की छवि भी ठीक होगी। वह जनहितों को समर्पित होकर राज्य के लिए बेहतरीन कार्य कर सकेगी। परन्तु राज्य में नई सरकार के बनने के बाद यह गोरख-धंधा और भी उलझा दिखाई देता है। इससे संबंधित माफिया कायम रहा और धीरे-धीरे बदले हुए सरकारी तंत्र को भी यह रास आना शुरू हो गया। शुरू से ही इसके मंत्रियों तथा कार्यकर्ताओं पर मिलीभगत के दोष लगने लगे। चाहे मुख्यमंत्री द्वारा भी इस तरह के माफिया को खुलेआम नश्र किया गया परन्तु निचले स्तर पर स्थिति नहीं बदली, क्योंकि समर्पित तथा इमानदार होकर इसको बदलने के लिए गम्भीर प्रयास नहीं किए गए। यदि अब तक भी इस काले धंधे को खत्म नहीं किया जा सका तो सरकार पर अंगुली उठना स्वाभाविक है। इस माफिया के अपने नए आकाओं के कारण हौसले इतने बढ़ गए हैं कि उन्होंने किसी भी व्यक्ति की परवाह करनी छोड़ दी है। गत दिनों मोहाली के निकट वन विभाग के एक अधिकारी तथा कुछ अन्य कर्मचारियों को रात के समय माफिया को ऐसा करने से रोकने का बड़ा खमियाज़ा भुगतना पड़ा। उनमें से अधिकतर आज इस माफिया के शिकार हुए अस्पतालों में पड़े हैं। ऐसा कुछ ही रूपनगर के दरिया के निकट एक गांव में हुआ, जहां इस धंधे को सामने लाने के लिए गए आम आदमी पार्टी के विधायक तथा उसके सुरक्षा कर्मियों की बुरी तरह मारपीट की गई। इन घटनाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस मामले संबंधी स्थिति कितनी गम्भीर हो गई है और यह भी कि समय की सरकार इसके बारे में कितनी चिंतित है? चाहे इन घटनाओं से संबंधित दोषियों को गिरफ्तार तो कर लिया गया है और उन पर मुकद्दमे भी चलाये जाएंगे, परन्तु इतनी ़खतरनाक स्थिति में सरकार की यह कार्रवाई आटे में नमक के समान ही है। 
नि:संदेह इस मोर्चे पर सरकार बुरी तरह असफल हुई दिखाई देती है, जिस तरह के हाव-भाव यह प्रगट कर रही है, उससे भी प्रतीत होता है कि स्थिति में ज्यादा बदलाव होने वाला नहीं है। आज चाहे अकाली दल-भाजपा के नेता राज्यपाल को मिल कर इस संबंधी ज्ञापन दे रहे हैं और अपनी चिंता का प्रगटावा कर रहे हैं परन्तु इस मामले पर वह पहले स्वयं भी बुरी तरह बदनाम हो चुके हैं। उनके ऐसे ज्ञापन महज़ ड्रामा ही प्रतीत होते हैं। इस कारण यह है कि जितनी बड़ी समस्या यह बन गई है उतनी बड़ी प्रतिबद्धता राजनीतिज्ञों तथा समय की सरकारों में इससे निपटने के लिए दिखाई नहीं देती, जिस कारण सुलझने की बजाय यह मामला और भी पेचीदा तथा गम्भीर बन गया है। इस सब कुछ से आम लोगों में पुन: बड़े स्तर पर निराशा पैदा होती जा रही है।
-बरजिन्दर सिंह हमदर्द