समुद्र में समाता एक गांव किवालिना

अमरीका में अलास्का का गांव किवालिना लगातार समुद्र में समाता जा रहा है। आर्कटिक सर्कल से 83 मील की दूरी पर चुक्सी सागर में स्थित इस गांव के बारे में वैज्ञानिकों ने भी भविष्यवाणी कर दी है कि साल 2025 तक इसका अस्तित्व मिट जायेगा। समुद्र से 6 से 10 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस गांव की बर्फ  के पिघलने का सिलसिला लगातार जारी है। कहा जाता है कि पहले यहां 250 फीट यानी 76 मीटर ऊंची बर्फ  की परत थी जो अब घटकर 100 फीट यानी 30 मीटर तक रह गई है। ग्लोबल वार्मिंग और मौसम में आने वाले बदलाव के चलते पिछले दो सालों से बर्फ  और ज्यादा तेजी से पिघल रही है। यूनाइटिड जनगणना ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस गांव का कुल क्षेत्रफ ल 3.9 स्क्वेयर मील है जिसमें 1.9 स्क्वेयर मील यानी 4.9 किलोमीटर भूभाग पर बर्फ  और 2.0 वर्ग मील पर पानी ही पानी है। साल 1920 में इस गांव में पहली बार जनगणना हुई थी, साल 2000 में हुई जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 377 थी। इस क्षेत्र का यह एक अकेला ऐसा गांव है जहां के लोग व्हेल मछली का शिकार किया करते थे, लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो उन्होंने आखिरी व्हेल का शिकार 20 साल पहले किया था, उसके बाद उन्हें आज तक कोई व्हेल नहीं मिली। यहां रहने वाले लोग सालों से गिगनेटिक व्हेल के शिकार से ही अपनी आजीविका चलाते रहे हैं। बर्फ  के पिघलने के कारण अब उन्हें सील भी उपलब्ध नहीं हो पाती जिसके कारण उनके सामने आजीविका की भी बड़ी समस्या है। कहा जाता है पहले यह गांव किवालिना लगून के उत्तरी भाग में स्थित था लेकिन सन् 1900 में इसके स्थान में परिवर्तन किया गया। यहां के लोगों को रेंडियर पालन के लिए प्रशिक्षित किया गया और उन्हें आजीविका के लिए रेंडियर उपलब्ध कराये गये। 1960 में यहां एक हवाई पट्टी का निर्माण किया गया ताकि लोगों को यहां से बाहर जाकर आजीविका के नये साधन तलाशने में मदद मिले। धीरे-धीरे यहां सुविधाएं उपलब्ध करायी गईं। 1970 में यहां स्कूल बनाया गया और लोगों के लिए बिजली की व्यवस्था की गई। साल 2014 में जब यहां का एकमात्र पुराना स्टोर जलकर खाक हो गया तो उसके स्थान पर जुलाई 2015 में महीनों की मेहनत के बाद एक नया स्टोर बनाया गया। इस छोटे और उपेक्षित गांव में सड़क मार्ग द्वारा नहीं जाया जा सकता। 85 घरों के इस गांव में सुविधाओं के नाम पर केवल दो वाटर टैंक, एक पोस्ट ऑफि स, हवाई पट्टी और सबसे बड़ी बिल्ंिडग में स्थित एक सरकारी स्कूल है। अधिकतर इमारतों में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। लोगों को अपना कूड़ा और गंदगी का निपटारा स्वयं करना पड़ता है। साल 2014 की नेशनल ओशियेनिक एंड एटमोसफेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट के अनुसार तेजी से बढ़ने वाले तापमान के कारण यहां बर्फ  लगातार पिघल रही है। बर्फ  पिघलने से पानी के नीचे बने गहरे गड्ढे में स्थित पानी सूर्य की किरणों को अपने भीतर समाहित कर लेता है जिसके कारण उसमें पैदा हुई गर्मी बर्फ  को और तेजी से पिघला देती है। यही वजह है कि यहां गर्मी का मौसम अधिक लंबा हो रहा है। इस गांव के किनारों का बर्र्फीला हिस्सा पिघलकर पानी में तबदील हो रहा है। साल के 3 से 5 महीने तक गर्मी के मौसम में बर्फ  तेज गति से पिघलती है। इसके अलावा पिछले 10 सालों में इस गांव के लोगों को समुद्री तूफानों का भी सामना बार-बार करना पड़ा है।  आज अगर यह द्वीप अस्तित्व में है तो इसकी वजह इसके पास स्थित कोरल रीफ  है जिससे यह समुद्र के कहर से कुछ हद तक बचा हुआ है लेकिन बदलते पर्यावरण के कारण उस समुद्री दीवार पर भी बुरा असर पड़ा है और अब वह इस द्वीप की सुरक्षा करने में समर्थ नहीं रह गई है। इतना ही नहीं इस द्वीप की एकमात्र हवाई पट्टी ने भी काम करना बंद कर दिया है। इस द्वीप को बचाने के लिए कुल मिलाकर जितनी भी कोशिशें हो रही हैं वे लगातार बेकार साबित हो रही हैं। यहां के लोग दूसरी जगह तो बसना चाहते हैं लेकिन वो कहां जाएंगे इसको लेकर अभी उनके पास कोई योजना नहीं है। इस गांव को अमरीकी सरकार द्वारा पिछले कई दशकों से विस्थापित करने की योजना बनायी जा रही हैं लेकिन इतनी बड़ी आबादी को एक साथ विस्थापित करने के लिए पैसे की कमी का हवाला दिया जाता रहा है। यहां के लोग सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं। लेकिन हाल फि लहाल तक किसी के पास उनकी इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। विस्थापित होकर किवालिना के दक्षिण से एक मील दूर जाकर बसने की व्यवस्था का चयन करने की बावत यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उनके लिए क्या यह एक स्थायी विकल्प है? किवालिना के लोग अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंता में हैं और उनके लिए यह एक बड़ी समस्या है। साल 2015 में अल जजीरा चैनल द्वारा इस द्वीप की खस्ता हाल स्थिति पर एक डाक्यूमैंट्री का प्रसारण किया गया था, लेकिन न तो यहां के लोग और न ही यहां की अमरीकी सरकार इसके लिए कुछ कर पा रही है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर