हजारों पेड़ काटकर कौन लिख रहा है दिल्ली का डेथ वारंट


हाल के सालों में दिल्ली ने सबसे ज्यादा सुर्खियां अपने बेहद प्रदूषित होने के चलते बटोरी हैं। एक साल पहले दिल्ली के वातावरण में भयंकर रूप से धुएं की मोटी परत छा गई थी, तब कई दिनों तक दिल्ली वालों को सांस लेने तक में मुश्किल का सामना करना पड़ा था। केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, ग्रीन ट्रिब्यूनल से लेकर लेफ्टिनेंट गवर्नर तक ने इस समस्या से निजात के लिए उस समय बैठकों पर बैठकों का दौर चलाया था। इतनी भी दूर न जाएं तो अभी एक पखवाड़ा भी नहीं गुजरा जब दिल्ली के वातावरण में धूल की मोटी परत छा गई थी, जिससे निपटने के लिए  एमरजेंसी के तौर पर तीन दिनों के लिए राजधानी में सभी निर्माण कार्य रोक दिये गये थे। 
कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि प्रदूषण की बात चले और दिल्ली का जिक्र आ जाए तो बातें खत्म ही नहीं होतीं। राजधानी से निकलने वाले अखबारों में पूरे साल अकसर इस तरह की खबरें पढ़ने को मिलती हैं, ‘दिल्ली की हवा दुनिया में सबसे ज्यादा ज़हरीली है’, ‘दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है’, ‘दिल्ली की हवा अब सांस लेने लायक नहीं रही।’ इस तरह की सुर्खियों से रू-ब-रू रहने वाले किसी दिल्ली वाले को जब यह पता चलता है कि कुछ कालोनियों के पुन: विकास के नाम पर दिल्ली में हजारों पेड़ काटे जाने की इजाजत दे दी गई है तो सोचिए उसके दिल पर क्या गुजरती होगी? एकबारगी तो यकीन ही नहीं होता कि धुएं की भट्ठी बन चुकी राजधानी दिल्ली में इतने सारे पेड़ों को काटने की इजाजत भी दी जा सकती है? लेकिन सच यही है भले पिछले 5 सालों में दिल्ली में 400 फीसदी तक वायु प्रदूषण बढ़ा हो, लेकिन इसी दौरान 6 सालों में राजधानी में 52,000 छायादार पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई है।
किसी भी देश के वातावरण को शुद्ध रहने के लिए वहां 33 फीसदी फॉॅरेस्ट कवर होना ज़रूरी है यानी किसी भी देश के 33 फीसदी क्षेत्र में वनों या जंगलात का होना ज़रूरी है, वह भी घने जंगलों का। लेकिन दिल्ली का फॉरेस्ट कवर महज 11.88 फीसदी है। हालांकि दिल्ली के आसपास हालत और भी ज्यादा खराब है मसलन फरीदाबाद में महज 4.32 फीसदी फॉरेस्ट कवर है तो गौतम बुद्ध नगर यानी नोएडा में इससे भी कम महज 2.43 फीसदी ही हरियाली है। गाजियाबाद का और बुरा हाल है, यहां महज 1.89 फीसदी ही हरियाली है। क्या ऐसी विपरीत परिस्थितियों को झेल रही राजधानी में हज़ारों की तादाद में पेड़ों के काटने की कोई योजना पास की जा सकती है? जी, हां! नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन (एनबीसीसी) को 17,000 हरे पेड़ों को काटने की इजाजत उसके मुताबिक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नये पौधे लगाने की शर्त पर दी है। 
आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय दिल्ली की 7 कालोनियों जिनमें शामिल हैं- नैरोजी नगर, नेताजी नगर, सरोजनी नगर, श्रीनिवास पुरी, कस्तूरबा नगर, त्यागराज नगर और मुहम्मदपुर में पुन: विकास के नाम पर 17000 पेड़ों को काटने की इजाजत दी गई है। इन पेड़ों में 50 साल से लेकर 100 और 150 साल तक के पुराने, पीपल, नीम, गूलर जैसे पेड़ हैं। कम्ट्रोलर एवं ऑडिटर जनरल (कैग) के मुताबिक दिल्ली में जितनी आबादी है, उसके हिसाब से यहां 9 लाख पेड़ कम हैं। अगर 9 लाख पेड़ और हो जाएं तो दिल्ली के लोगों को सांस लेने में जो परेशानी होती है, वह खत्म हो जाए। मगर जो दिल्ली पहले से ही हरियाली के लिए यानी ग्रीन कवर के लिए इस कदर तरस रही है, उसी दिल्ली में शहरी विकास मंत्रालय को 17000 पेड़ों को काटने की इजाजत मिल जाना कितनी हैरानी की बात है। यह इजाजत कोई एक दिन में नहीं मिली, पिछले 5-6 सालों में अलग-अलग तरीके से अलग-अलग मौकों पर मिली है जिसमें अभी तक 4000 से ज्यादा पेड़ काट भी डाले गये हैं और 12000 से ज्यादा पेड़ अभी कटने बाकी हैं।
इतने बड़े पैमाने पर दिल्ली में हरे पेड़ों के काटे जाने की योजना से जब आम लोग भड़क उठे और इस आदेश के विरुद्ध आंदोलन पर उतर आए तो शहरी विकास मंत्रालय के मंत्री हरदीप सिंह पुरी बहुत मासूमियत से कहते हैं कुछ लोग जिनमें कुछ एनजीओ शामिल हैं और दिल्ली सरकार भी, दरअसल ये लोगों को गलत सूचनाएं देकर भड़का रहे हैं। सिर्फ  14000 पेड़ काटे जाने हैं और उसके बदले में 10 गुना पेड़ भी लगाए जाने हैं। एनबीसीसी के सीएमडी अनूप कुमार मित्तल भी कह रहे हैं कि बस 14031 पेड़ ही तो काटे जाने हैं, साथ ही 6834 पेड़ बचा लिए जाएंगे तथा 1213 पेड़ों को ट्रांसप्लांट कर दिया जायेगा। मतलब उन्हें उखाड़कर दूसरी जगह लगा दिया जायेगा। यह कितनी हैरानी की बात है कि बड़े-बड़े अधिकारी हरे पेड़ काटने का विरोध करने वालों को फटकारते हुए बड़ी मासूमियत से कहते हैं कि महज 14000 ही पेड़ काटे जाने हैं, जबकि ये लोग 16000 से लेकर 17000 बताते हैं। सोचिए जिस दिल्ली में जरा सी ठंड बढ़ते ही सांस लेना मुश्किल हो जाता है, जिस दिल्ली में दीपावली के आसपास एक हफ्ते तक सांस लेना दूभर हो जाता है, जिस दिल्ली में हर साल वायु प्रदूषण के चलते 5000 से ज्यादा लोग दम तोड़ते हैं, 3000 से ज्यादा उड़ानें रद्द होती हैं, उस दिल्ली में एक-एक पेड़ का कितना महत्व होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक एक 50 साल पुराना पेड़ जो कि 16 वर्ग फीट के दायरे में फैला है, वह हर दिन 140 किलो तक ऑक्सीजन बनाता है जबकि इन पेड़ों के काटने के एवज में जो पौधे लगाए जाएंगे और जिनमें से 10 फीसदी के बचे रहने की भी उम्मीद नहीं होती, वैसे एक-एक हजार पौधे मिलकर भी न तो किसी एक पेड़ के बराबर ऑक्सीजन पैदा कर सकते हैं और न ही छाया दे सकते हैं। ये पौधे धूल-मिट्टी फांककर दिल्ली के वातावरण को साफ  भी नहीं बना सकते हैं। किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि एनबीसीसी की यह भोली दलील कि हम काटे गए पेड़ों की जगह 10 गुना पेड़ लगाएंगे, वैसे ही है जैसे किसी मल्टीनेशनल कंपनी से कहा जाए कि वह अपने 5 सीनियर मैनेजरों को निकालकर उनकी जगह 50 लड़कों को भर्ती कर ले। सवाल है क्या ये लड़के इन सीनियर मैनेजरों की कमी पूरी कर सकते हैं? 
इस पूरे खेल में हैरानी की बात यह है कि पता ही नहीं चलता कि राजधानी में इतने ज्यादा पेड़ों को काटने का आदेश देकर कौन दिल्ली का डेथ वारंट लिख रहा है? क्योंकि दिल्ली सरकार और उसके मंत्री जहां खुद पेड़ों की इस कटाई का विरोध करते हुए कहते हैं कि वे इसके खिलाफ  चिपको जैसा आंदोलन करेंगे, वहीं केन्द्र में मंत्री हरदीप सिंह पुरी इसे दिल्ली सरकार की इजाजत बता रहे हैं तो भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी पेड़ों के काटने का आदेश दिए जाने का ठीकरा दिल्ली सरकार के ही सिर फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। 
हालांकि कालोनियों के पुनर्विकास की योजना केंद्र की है और दिल्ली हाईकोर्ट में उसी को सफाई देनी पड़ रही है कि इतने पेड़ कटने से जो वातावरण बिगड़ेगा उसका ज़िम्मेदार कौन होगा? इसलिए जाहिर है कि असली अपराधी या इतने बड़े पैमाने पर पेड़ काटने की मंशा केंद्र सरकार की है। वही दिल्ली की आबादी के लिए डेथ वारंट लिख रहा है। जिसे फिलहाल तो दिल्ली हाईकोर्ट ने आगामी 4 जुलाई तक के लिए रोक दिया है लेकिन देखते हैं आगे क्या होता है?
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर