अयोध्या से रामेश्वरम तक रामायण के 108 तीर्थ

भगवान वाल्मीकि की रामायण, गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस, जयदेव की प्रसन्न राघव, स्कन्ध, पद्म और वामन पुराण आदि ने भगवान राम द्वारा जिस-जिस धरती के कण-कण पर पग रखा, वही तीर्थ हो गए। हमारे देश में कई अवतारों के 108 तीर्थ माने जाते हैं। जैसे वैष्णव 108 तीर्थ, शैव 108 तीर्थ, उसी प्रकार रामायण के भी 109 तीर्थ माने जाते हैं, जिनका उल्लेख महर्षि व्यास ने भी किया। अयोध्या से इन तीर्थों का आरम्भ कहा जाता है। गोस्वामी तुलसी दास ने अयोध्या का वर्णन करते हुए कहा कि—बंदौ अवधपुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।। अयोध्या में भगवान राम का बाल्यकाल ही सामने आता है। इसके पश्चात् ताड़का वध और मारीच को घायल करने वाले स्थल को महर्षि विश्वामित्र का आश्रम ही साक्षी बना। मिथिला में भगवान राम का भगवती सीता से विवाह हुआ। उसे भी भगवान राम के चरण स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम यहां भगवन राम के उन्हीं तीर्थों का उल्लेख करेंगे जिनके बारे में जन-साधारण बहुत कुछ जानता है। गोस्वामी तुलसी दास ने गीतावली में लिखा है कि जहां-जहां भगवान राम के चरण पड़े, वहीं-वहीं पवित्र, पुनीत, कल्याणकारी और सभी सुखों का वरदान देने वाले तीर्थ विराजमान हुए। वह लिखते हैं —‘राम चरन अभिराम कामप्रद तीर्थराज विराजै’। अयोध्या की यात्रा अब बहुत सुगम हो गई है। किसी वाहन से रामलला के दर्शन करने के लिए अयोध्या जाया जा सकता है। रेल मार्ग से लखनऊ-फैज़ाबाद-मुगलसराय आदि  से जुड़ा है। लखनऊ से गया 135 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। भगवन राम जब 14 वर्ष के वनवास पर अयोध्या से निकले, तब तीर्थों की शृंखला ही आरम्भ हो गई। सरयू नदी को पार किया, गंगा नदी से भी आगे निकले, निशाद राज और ऋषि भारद्वाज के आश्रम से होते हुए वह गोदावरी नदी के समीप पंचवटी में जाकर रहने लगे। स्कंद पुराण के अनुसार जो पंचवटी का रूप-स्वरूप बताया गया है, उसमें इस स्थान पर पूर्व में पीपल, उत्तर में बिल्व, पश्चिम में बरगद (वट), दक्षिण में आंवला तथा अग्निकोण में अशोक के वृक्ष एक साथ मौजूद थे। कुछ अन्य ग्रंथ कहते हैं कि पंचवटी का वह स्थान पांच वट वृक्षों के बीच में हुआ करता था, बिल्कुल वैसे ही जैसे हावड़ा (कोलकाता) के समीप ‘भोटैनीकल’ गार्डन में एक कई तनों वाला एक विशालकाय वट वृक्ष है। पंचवटी पर ही लंकेश की बहन सरूपनखा की नासिका लक्ष्मण द्वारा काटी गई कही जाती है। इसीलिए गोदावरी नदी के दूसरे तट पर नासिक नाम का नगर बसा है। इस नगर में महाकुम्भ का पर्व भी हर 12 वर्ष के पश्चात् सन्तों-महापुरुषों के दर्शन करने का सुअवसर प्रदान करता है। पंचवटी से ही लंकापति रावण ने भगवती सीता का हरण किया था। इसके पश्चात् भगवान राम और लक्ष्मण भगवती सीता की तलाश में जिन स्थानों से होकर रामेश्वरम तक पहुंचे, रास्ते में जटायू के वीरगति को प्राप्त होने वाला स्थान, बाली वध और किष्किंदा से उस पर्वत तक जहां से बजरंगबली हनुमान ने सागर पर से लंका की ओर पहुंचने वाली छलांग लगाई। रामेश्वरम कन्याकुमारी के समीप वह स्थान है जहां से राम सेतू बनाकर भगवान राम की सेना लंका पर चढ़ाई करने के लिए पहुंची थी। रामेश्वरम के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पूर्व यहीं बालू का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा-अर्चना की। भगवान राम के नाम से ही राम शंकर को ही रामेश्वरम कहा गया है। इस स्थान पर एक विशाल मंदिर का निर्माण हुआ जिसके निर्माण में लगभग 400 साल लगे कहे जाते हैं। यह लगभग 600 वर्ग फुट में निर्मित है। अब वहां तक पहुंचने के बहुत से साधन हो चुके हैं। चेन्नई से मदुरै होते हुए रामेश्वरम तक रेल मार्ग से भी जाया जा सकता है। चेन्नई और मदुरै से टैक्सियां और बसें भी मिलती हैं। मदुरै से लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां रहने, खाने के सभी साधन उपलब्ध हैं। वहां से कन्याकुमारी भी जाया जा सकता है। रामेश्वरम में सागर में पत्थर भी तैरते देखे जा सकते हैं। रामसेतू की जानकारी की अमरीका के नासा ने भी पुष्टि की थी। भगवान राम से संबंधित 108 तीर्थों के जिस व्यक्ति ने जीवन में एक बार दर्शन कर लिए, वह सभी प्रकार के संताप और पाप से मुक्त हो जाता है।

—दीपक जालन्धरी