पंजाबी को मिलेगी प्राथमिकता : सिद्धू

चंडीगढ़, 1 जुलाई (अजायब सिंह औजला): पंजाब कला भवन चंडीगढ़ में आज पंजाबी मातृभाषा संबंधी चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा किए जा रहे भेदभाव के प्रति एक रोष भरी पंचायत एकत्रित हुई, जिसमें पंजाब के सांस्कृतिक मामलों व पर्यटन मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने चंडीगढ़ में पंजाबी मातृभाषा की प्रतिष्ठा पुन: हासिल करने के लिए जनलहर शुरू करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पंजाबी हमारी पहचान है और यदि इसे गंवा बैठे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं रहेगा इसलिए मातृभाषा का रुतबा बहाल करने के लिए आंदोलन शुरू करना पड़ेगा और चंडीगढ़ की इस लड़ाई में हर पंजाबी को कूदना पड़ेगा ताकि इसे बनता सम्मान मिले। सिद्धू ने इस अवसर पर पंजाबी मातृभाषा व पंजाबी भाषा के प्रति अपने लगाव का इज़हार करते हुए यह घोषणा भी की कि शहरों में साइन बोर्डों, स्थानीय निकाय विभाग के समूह कामकाज में पंजाबी को प्राथमिकता मिलेगी। चंडीगढ़ पंजाबी मंच द्वारा पंजाब कला परिषद् की अगुवाई में चंडीगढ़ प्रशासन में पंजाबी को सरकारी भाषा का रुतबा दिलाने के लिए बुलाई गई पंजाबी हितैषियों की पंचायत दौरान नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है और यहां पंजाबी मातृभाषा के साथ भेदभाव किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह खुद इस संघर्ष में उनके साथ खड़े हैं। सिद्धू ने दुनिया के कई देशों की उदाहरणें देते हुए बताया कि कोई भी देश कितनी भी तरक्की कर ले परंतु वहां के निवासियों ने मातृभाषा को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं किया। आज की पंचायत में मुख्य प्रवक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सतनाम माणक ने कहा कि हमें भाषाई गुलामियों की ज़ंज़ीरों में बांधा गया जिसे तोड़ना समय की मुख्य ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षा व प्रशासन की भाषा मातृभाष ही होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पंजाबी भाषा को रोज़गार की भाषा बनाने के लिए ज़रूरी है कि प्रशासनिक कामकाज केवल पंजाबी भाषा में हो। उन्होंने यह भी कहा कि देश राजनीतिक तौर पर आज़ाद हुआ परंतु भाषाई तौर पर देश आज भी गुलाम है। उन्होंने कहा कि हमारा देश विभिन्न सभ्यताओं व भाषाई भिन्नताओं वाला है जिस कारण हर क्षेत्र व प्रदेश की अपनी स्थानीय भाषा में कामकाज होना चाहिए। भाषा विशेषज्ञ डा. जोगा सिंह ने कहा कि भाषा वैज्ञानिक यह सिद्ध कर चुके हैं कि छोटा बच्चा सबसे आसान मातृभाषा में ही सीख सकता है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि अंग्रेज़ी भाषा को सरकारी भाषा बनाकर चंडीगढ़ प्रशासन स्थानीय लोगों के साथ भेदभाव करता है। पंजाब कला परिषद् के महासचिव डा. लखविंदर जौहल ने सभी मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा कि पंजाबी भाषा के मुद्दे की लड़ाई जीतने के लिए मिलकर प्रयास करने की ज़रूरत है। पंजाब कला परिषद् के चेयरपर्सन पद्मश्री डा. सुरजीत पात्र ने सम्बोधित करते हुए कहा कि वह किसी भी दूसरी भाषा का विरोध नहीं करते, बल्कि सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं परंतु मातृभाषा पंजाबी की कीमत पर किसी दूसरी भाषा को अपनाने का विरोध करते हैं। अंत में पंजाबी लेखक सभा चंडीगढ़ द्वारा बलकार सिद्धू ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त किया। इस पंचायत में सांसद डा. धर्मवीर गांधी, सिख स्टूडैंट फैडरेशन के अध्यक्ष करनैल सिंह पीरमुहम्मद, सी.पी.आई. के जोगिंदर दयाल, गुरनाम सिंह सिद्धू, मनजीत टिवाणा, नरिंदर नसरीन, स्वराज संधू, सिरी राम अर्श, डा. दीपक, मनमोहन सिंह, पंजाब साहित्य अकादमी की अध्यक्ष डा. सर्बजीत कौर सोहल, पंजाब कला परिषद् के मीडिया को-आर्डीनेटर निंदर घुगियाणवी के अलावा गायिका सुक्खी बराड़, भूपिंदर बब्बल, सुशील दुसांझ, दलजीत सिंह पलसौरा, मनमोहन सिंह दाऊं, कर्म सिंह वकील, डा. गुरमेल सिंह, बी.एस. मलिक, जी. मावी, सेवीरायत, सिमरनजीत ग्रेवाल आदि लेखकों, बुद्धिजीवियों, कवियों व समाज के अन्य क्षेत्रों की शख्सियतों ने भी शमूलियत की।