भारतीय नेत्रहीन टीम के गौरवशाली खिलाड़ी हैं अश्वनी कुमार

अश्वनी बचपन से ही आंखों से नेत्रहीन हैं लेकिन उन्होंने अपने हुनर और आत्मिक दृष्टि से शिक्षा और खेलों के क्षेत्र में ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं कि आज उनकी उपलब्धियों पर गर्व किए बिना नहीं रहा जा सकता। अश्वनी का जन्म 1 जनवरी, 1999 को हरियाणा प्रांत के शहर करनाल के मोहल्ला रविदासपुरा में पिता कृष्ण लाल के घर माता अल्का देवी की कोख से हुआ। अश्वनी ने जन्म लिया तो बच्चे के तौर-तरीकों से पता चला कि उसको आंखों से दिखाई नहीं देता है। माता-पिता ने घर में गरीबी होने के बावजूद भी बच्चे के उपचार में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन आखिर डाक्टरों ने यह कह दिया कि अब अश्वनी का अगला उपचार होना मुश्किल है और हो सकता है कि प्राकृतिक तौर पर उसकी दृष्टि वापस आ जाए और ऐसा हुआ भी कि जब अश्वनी ने बचपन में पैर रखा तो थोड़ा दिखाई देने लगा।माता-पिता को आशा हुई कि उनके लाडले की दृष्टि पूरी तरह वापिस आ जाएगी और घर में एक बार फिर से गायब हुई खुशियां वापिस आ गईर्ं और अश्वनी 4 वर्ष का था कि दीवाली वाले दिन वह माता-पिता के साथ पूजा कर रहा था कि उनको लगा कि उसकी रोशनी आ रही है और यह सच था और उसके बाद अश्वनी कुमार को फिर से दिखाई नहीं दिया और वह आज तक नेत्रहीन है। माता-पिता और उनके मामा जी ने उसका साथ ही नहीं दिया अपितु उसकी आंखें बनकर उसकी ज़िन्दगी को आगे चलाने लगे। वर्ष 2004 में उनको उत्तराखंड के जाने-माने शहर देहरादून में राष्ट्रीय नेत्रहीन स्कूल में दाखिल करवा दिया, जहां अश्वनी ने शिक्षा के क्षेत्र में पहला कदम रखा। वर्ष 2015 में उसी नेत्रहीन स्कूल में भारतीय ब्लाइंड टीम के सहायक कोच श्री नरेश नियाल स्कूल में नेत्रहीन खिलाड़ियों को खेलों के क्षेत्र में तैयार करने के लिए आए, जो अश्वनी के लिए सोने पर सुहागा साबित हुए, क्योंकि अश्वनी को नेत्रहीन होने के बावजूद भी खेलने-कूदने का बहुत शौक था और उनके हौसले को बल मिला। कोच नरेश सिंह नियाल ने स्कूल के विद्यार्थियों को बड़ी मेहनत से तराशाना शुरू किया, जिनमें से अश्वनी भी एक थे और आज अश्वनी खेलों के क्षेत्र में भी एक अहम स्थान रखते हैं और खेलों के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों का श्रेय भी वह अपने कोच नरेश सिंह नियाल को ही देते हैं। वर्ष 2016, 2017, 2018 में अश्वनी लगातार नेत्रहीन फुटबॉल टीम में नैशनल स्तर तक लगातार खेले और उन्होंने लगातार खेलते हुए अपने स्कूल का नाम भी रोशन किया। वर्ष 2018 में ही उन्होंने नार्थ ईस्ट ब्लाइंड टूर्नामैंट भी खेला और उसी वर्ष ही वह टोक्यो (जापान) में भारतीय ब्लाइंड फुटबॉल टीम में खेलने गये, जहां उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन से भारतीय टीम को जीत दिलाई। अश्वनी कुमार ने नेत्रहीनों की ब्रेल लिपी के द्वारा देहरादून से ही 10+2 की पढ़ाई पूरी की और आजकल वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में बी.ए. भाग-द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी हैं लेकिन उनकी यादें हमेशा अपने देहरादून नेत्रहीन स्कूल से और अपने कोच नरेश सिंह नियाल से जुड़ी रही हैं। वह लगातार अपने कोच नरेश सिंह नियाल से खेल कला के गुर सीख रहे हैं।