सोशल मीडिया का बढ़ता दुरुपयोग

मीडिया लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। इस अहम अंग ने समय-समय पर समाज को जागरूक करने का कार्य किया है। प्राचीन काल से ही समाज का एक वर्ग ऐसा होता था जो सरकार और समाज के बीच एक कड़ी का काम करता था। वर्तमान में सोशल मीडिया ने सभी के लिए दरवाजे खोल दिए हैं कि सभी लोग अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया, आलोचना, प्रशंसा, ज्ञान और अपने विचार सबके सामने रख सकें। इसमें सबसे ज्यादा सहूलियत यही है कि अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए किसी तरह के इंतजार की जरूरत नहीं है। एक क्लिक  और अपने विचार सबके साथ सांझा हो जाते हैं। तमाम खूबियों के बावजूद भी अपने कुछ लोगों के अभद्र भाषा व गालियों, अभद्र तस्वीरों व एक-दूसरे को निम्नतर आंकने के चलते सोशल मीडिया लगातार सुर्खियों में रहता है। क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी का कतई ये मतलब नहीं है कि किसी पर भी कोई इल्जाम लगा दें या दोषारोपण करें और उसे गन्दी गालियां दें। परन्तु वर्तमान में यह बहुत देखने को मिल रहा है। अपनी निजी शत्रुता निभाने को कई लोग ऐसा आचरण पेश कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि सोशल मीडिया पर सिर्फ गंदगी है, यहां पर बहुत-सी जानकारियां, साहित्य, अपनों की सूचना भी मिलती है। कुछ वर्ष पूर्व सोशल मीडिया वर्तमान की अपेक्षा ज्यादा भरोसेमंद व स्वच्छ मंच था, मिस्र की महिला का उदाहरण आता है, जिसने एक दिन सोशल मीडिया पर तत्कालीन सरकार के खिलाफ सिर्फ एक संदेश से एक बड़े वर्ग को एक कर दिया था। उस महिला ने सिर्फ इतना कहा था कि सरकार के खिलाफ मैं चौक पर जा रही हूं। क्या आप लोग भी आ रहे हैं, देखते ही देखते हज़ारों लोग उस जगह पर एकत्र हो गए और तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष को हटना पड़ा। तो ये है सोशल मीडिया की ताकत। अपने देश के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो विचारधारा के स्तर पर ये कई खेमों में बंटा नज़र आता है और प्रत्येक वर्ग स्वयं को सही व दूसरे को शंका की निगाह से ही देखता है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व मनोरंजक स्तरों पर सबकी अलग-अलग राय है। परन्तु यह कहना गलत न होगा कि कुछ विशेष समूह सिर्फ और सिर्फ वैमनस्य फैलाने में ही लगे रहते हैं। धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए अलग-अलग लोग कोशिश करते रहते हैं। दरअसल हमारा देश प्रारम्भ से ही नायक प्रधान रहा है। हर देश काल में प्रत्येक समाज को नायक की ज़रूरत महसूस हुई है। बिना किसी हीरो के मानों हम अधूरे से हैं। अच्छी बात है सबके अपने-अपने आदर्श होते हैं, नायक होते हैं, नेता-अभिनेता, खिलाड़ी, बिजनैसमैन कोई भी किसी का नायक हो सकता है। तो परेशानी क्या है? दरअसल परेशानी का सबब ये नायक नहीं होते हैं और न ही विचारधारा। क्योंकि सबकी अपनी अलग-अलग राय हो सकती है और इसके अनुयायी भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। समाज में बिखराव या मतभेद तब होता है जब अपने आदर्श को सही बताने के लिए उसकी खूबियां नहीं बल्कि विरोधी के ऊपर लांछन लगाए जाते हैं। ये निन्दा अलग-अलग तरह की होती है और जिसके समर्थक ज्यादा, उसका पलड़ा भारी होता है। अपने विचार सबके सामने रखना सबकी इच्छा होती है। पहले भी पाठक सम्पादक के नाम पत्रों द्वारा अपने उद्गार पाठकों के सामने रखते थे। अब भी रखते हैं। समाचार पत्रों में सम्पादक होते हैं, जो पढ़-लिखकर, लम्बे अनुभवों से गुजर कर यहां तक पहुंचते हैं, तो उनका विवेक, ज्ञान और अनुभव इन पत्रों को सम्पादित कर जनता के सामने रखते हैं, परन्तु सोशल मीडिया में ऐसा कुछ है नहीं, जो कुछ शब्दों को फिल्टर कर सके या डिलीट कर सके। इस ओर कुछ अवश्य सोचना चाहिए ताकि कुछ शब्दों को की-बोर्ड टाईप ही न कर पाए। वर्तमान में जब युवा आबादी ज्यादा है और इस मीडिया से अधिकांश युवा जुड़े भी हैं तो ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि कुछ न कुछ कठोर नियम तो बनाने ही होंगे जिससे ये मंच मात्र अनुचित भाषा, द्वेष व आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित न रह जाए। हर क्षेत्र की अपनी बाध्यताएं, सीमाएं, नियम-कानून होते हैं। ऐसे में इस क्षेत्र को ही इतनी आज़ादी क्यों? देश में अपनों के लिए, अपने नेताओं, अपने नायकों, मित्रों के लिए गंदी जुबान का प्रयोग क्यों? क्या कोई नियम बनाकर इसे रोका नहीं जा सकता?