परेशानी का सबब बनती बढ़ती जनसंख्या

आज आप कहीं भी चले जाएं- आप बस स्टैंड, मॉल, रेलवे, अस्पताल, बैंक, बाज़ार, सिनेमा, सरकारी संस्थानों आदि पर हर जगह भीड़ का एक सैलाब देखने को मिलता है। यूं लगता है मानो सारी दुनिया यहां उमड़ पड़ी है। ‘भीड़’ और ‘लाईन’ हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बनती जा रही हैं। इसलिए विश्व जनसंख्या दिवस की अहमियत हमारे लिए जागरूकता दिवस के रूप में भी महत्वपूर्ण हो गई है। हर साल 11 जुलाई को बढ़ रही जनसंख्या और दरपेश आ रही मुश्किलों के प्रति जागरूक करने के लिए जनसंख्या दिवस पर सैमीनार लगाए जाते हैं। पर हमारा हाल यह है कि हम 3-जी, 4-जी मोबाइल फोन, फेसबुक, वट्सअप, गूगल, स्काइप, वाईवर, ए.सी., नई कार, बाईक, सी.सी.टी.वी. कैमरे और ऐपस के बारे में तो हर नई से नई जानकारी रखते हैं पर अपनी बढ़ती जनसंख्या और इसके भयानक परिणामों के प्रति बिल्कुल सजग नहीं हैं, जिस कारण हमारे देश की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है।  विश्व जनसंख्या दिवस वर्ष 1987 से मनाया जा रहा है। 11 जुलाई, 1987 में विश्व की जनसंख्या 5 अरब को पार कर गई थी। तब संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या वृद्धि को लेकर दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय लिया। तब से इस विशेष दिन को हर साल परिवार नियोजन का संकल्प लेने के दिन के रूप में याद किया जाने लगा। हर राष्ट्र में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि आज दुनिया के हर विकासशील और विकसित दोनों तरह के देश जनसंख्या विस्फ ोट से चिंतित हैं। विकासशील देश अपनी आबादी और जनसंख्या के बीच तालमेल बैठाने में माथ्थापच्ची कर रहे हैं, तो विकसित देश पलायन और रोज़गार की चाह में बाहर से आकर रहने वाले शरणार्थियों की वजह से परेशान हैं। विश्व जनसंख्या दिवस इसलिए भी मनाया जाना शुरू हुआ, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार बढ़ती जनसंख्या के कारण 60 मिलियन लोग बेकार घूम रहे हैं, बेरोज़गार हैं। सो इस दिन लोगों को बढ़ती जनसंख्या व कम होते रोज़गार के अवसरों के प्रति सचेत करने की एक मुहिम का आगाज़ किया 
गया था। पिछले 200 वर्षों में संसार की जनसंख्या में खासा इजाफा हुआ, जिसमें अकेले भारत व चीन का 37 प्रतिशत हिस्सा रहा और एशिया का 4.2 बिलियन जनसंख्या के साथ योगदान रहा। संसार की कुल जनसंख्या से तात्पर्य धरती पर जीवित लोगों की संख्या से है। संयुक्त राज्य गणना ब्यूरो के अनुसार संसार की कुल जनसंख्या 7.023 बिलियन हो चुकी है। जिस कारण से ज़िंदगियों और खाद्य पदार्थों की लगातार कमी में इजाफा हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या सही मायनों में पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है। संयुक्त राष्ट्र प्रोग्राम के अनुसार संसार भर में हर रोज़ 800 औरतें बच्चों को जन्म देने के दौरान अपनी जान से हाथ धो बैठती हैं, जिसका कारण कम उम्र, अनपढ़ता, लिंग जांच, भेदभाव, गरीबी आदि हैं।  जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया और अफ्रीका में जन्म दर के ऊंचे बने रहने से दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ती रहेगी। रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक 2050 के आस-पास वैश्विक जनसंख्या 9.3 अरब हो चुकी होगी। अगले 50 सालों में यह संख्या 10.1 अरब तक पहुंच जाएगी। इस दौरान भारत की जनसंख्या मध्यम रफ्तार से बढ़ती रहेगी। भारत बहुत जल्द दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। 2060 तक भारत की जनसंख्या 1.7 अरब होगी। चीन में जन्म दर काफ ी धीमी पड़ चुकी है। 2030 तक वहां की आबादी 1.4 अरब होने का अनुमान है। फि लहाल 39 अफ्रीकी देशों में जनसंख्या सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही है। अफ्रीकी महाद्वीप की आबादी  फिलहाल एक अरब है। 2100 तक यह बढ़कर तीन गुनी यानी 3.6 अरब हो चुकी होगी। अगर अफ्रीका का पिछड़ापन बरकरार रहा तो वहां विस्फ ोटक स्थिति होगी। एशिया में नौ, ओसियाना, ऑस्ट्रेलिया और उसके आस-पास के देशों के छह और लातिन अमरीका के चार देशों की आबादी दुनिया की जनसंख्या को बढ़ा रही है। रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक जनसंख्या बढ़ाने में पाकिस्तान, नाइजीरिया, फि लीपींस, इथोपिया, कांगो, तन्जानिया, सूडान, केन्या, यूगांडा, इराक, अफगानिस्तान, घाना, यमन, मोजाम्बिक और मेडागास्कर की बड़ी भूमिका होगी। इन देशों की वजह से वैश्विक जनसंख्या 75 फीसदी बढ़ेगी। भारत की जनसंख्या बीते एक दशक में 18.1 करोड़ बढ़कर अब 1.25 अरब हो गई है। जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में पुरुषों की संख्या अब 62.37 करोड़ और महिलाओं की संख्या 58.64 करोड़ है। इसलिए दो बच्चे, परिवार नियोजन, लड़का-लड़की में भेदभाव, लड़की की शिक्षा ज़रूरी, सही उम्र में शादी, लिंग अनुपात की जानकारी आदि विषयों के प्रति हमें अपनी नौजवान पीढ़ी को सचेत भी करना होगा, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या ने बहुत-सी भयानक और अनसुलझी समस्याओं को भी जन्म दिया है, जिनसे वक्त रहते निजात पाने में हम शुरू से विफल रहे हैं। जैसे बेरोज़गारी, अनपढ़ता, बढ़ती गरीबी, भुखमरी, अंधविश्वास और बेटे की चाह ने हमें कभी आगे बढ़ने ही नहीं दिया।