खजुराहो से कम नहीं है ओसियां का शिल्प वैभव

पश्चिम राजस्थान थार-मरुस्थल से आक्रान्त होने के बावजूद अपने वैभव व शिल्प कला से इतना समृद्ध है। यहां की कलात्मक धरोहरें आज भी विश्वविख्यात हैं। जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर, जैसलमेर रेल मार्ग पर बसा ‘ओसियां’ अपनी शिल्प कला से इतना भरपूर है कि यह राजस्थान में खजुराहो से कम नहीं आंका जाता है। ओसियां में दूर-दूर तक फैली कलाकृतियों एवं वास्तुशिल्प के दर्शन होते हैं। ओसिया न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी पश्चिम में जैनियों का सबसे बड़ा तीर्थ-र्स्थल भी माना जाता है। पश्चिमी राजस्थान के शासक आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक जैन धर्म के प्रचारक थे। यहां के सामन्त व शासक वैष्णव धर्म के उपासक थे, लेकिन धार्मिक सहिष्णुता से प्रभावित होकर इन शासकों ने जैन धर्म को भी राजाश्रय प्रदान किया था। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि ‘ओसियां’ नगर को भीमताल के तत्कालीन राजा भीमसेन के पुत्र उपलदेव ने उपकेशपुर पट्टन नाम से बसाया, जो कालान्तर में ओसियां के नाम से जाना जाने लगा। राजा उपलदेव ने यहां जैन धर्म का प्रचार किया व जैन मंदिरों का निर्माण करवाया। इनके मंत्री ऊहड़ ने महावीर जिनालय भी निर्मित करवाया। यहां के मंदिरों की पाषाण कला व वैभव सम्पन्नता को देखकर पता चलता है कि ओसिया एवं यहां के बने जैन मंदिर सातवीं शताब्दी के हैं। यहां के प्रचीन शिलालेखों में ओसियां के प्राचीन नाम उवसीस, उपकेशपुर, ओसा व उकेश भी रखे गये हैं। कहते हैं कि इस नगर के निवासी पूर्व में सच्चियाय माता को अपना आराध्य मानते थे, लेकिन सेठ रत्नप्रभ सूरि जैन धर्म में परिवर्तित हो गये व जैन मातावलम्बियों का नाम उकेशवाल पड़ गया जो बाद में ‘ओसवाल’ हो गया। तभी से ओसवाल लोग आज भी ओसियां को अपना उद्भव स्थल मानते हैं। 
शुरू से ही जैन व्यापारियों ने इस नगर की समृद्धि तथा मंदिर के संरक्षण पर पूरा ध्यान दिया। धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र  होने से यह क्षेत्र बारहवीं शताब्दी तक विभिन्न क्रियाकलापों का अध्ययन केन्द्र भी रहा। ओसियां में यूं तो मंदिरों की भरमार है, लेकिन उनकी पाषाण कला व उन पर उत्खनित विभिन्न चित्रों को देखकर आश्चर्य होता है कि उस वक्त के पाषाण कला में मर्मज्ञ हस्तशिल्पी पत्थरों को गढ़कर उनमें कितनी सजीवता भर देते थे कि आज भी इन मूर्तियों को देखकर ऐसा लगता है कि ये मूर्तियां मूक होकर भी बहुत कुछ कह देने में सक्षम हैं। समयकालीन वैष्णव तथा सूर्य मंदिर तो उपेक्षा के कारण जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं।  लेकिन महावीर मंदिर संरक्षण तथा जीर्णोद्धार करवाते रहने से आज भी पूर्णरूपेण सुरक्षित है। समय-समय पर ओसियां के वैभव को उजाड़ने में विदेशी आक्रमणों का भी हाथ रहा और लगभग बीसवीं सदी तक के प्रारम्भ तक यह उपेक्षित भी रहा। लेकिन ओसियां नगर के भग्नावशेषों को देखकर सहज ही इसकी सांस्कृतिक एवं कलात्मक गतिविधियों का आभास मिलता है। (क्रमश:)

—चेतन चौहान