यादों को संभालना भी एक कला है

यादों को संभालना भी एक कला है, इनके बिना जीवन नीरस सा लगता है। मीठी और प्यार भरी यादें मानव के जीवन में एक तरह का अनोखा रंग भरती हैं। इनके द्वारा हम एक बार फिर बचपन, जवानी और बुढ़ापे की लम्बी यात्रा को अलग-अलग तरीकों से देख सकते हैं। यह हमारे जीवन को तरोताजा रखने में मदद करती हैं। कई लोग तो यादों के सहारे ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। यह भी सहारा बनकर साथ देती हैं। कई बार जीवन में कुछ कड़वी यादें भी गहरी छाप छोड़ जाती हैं। इनको भूलने में ही भलाई है, क्योंकि अगर यह जीवन का हिस्सा बन जाए तो परेशानी का कारण बन जाती हैं। डिजीटल युग में यादों को संभालना बहुत आसान हो गया है। याद रखने के लिए यह न भूलो कि तस्वीरें कब और कहां खींची गई। निजी एलबम भी बनाई जा सकती हैं, जिसको हम देख सकते हैं। पहले जन्मदिन और शादी आदि में बड़ी-बड़ी एलबम बनाई जाती थी, जिसको एक जगह से दूसरी जगह पर लेकर जाना भी मुश्किल होता था। तस्वीरें देखना अच्छा लगता था, लेकिन इसके कागज़ जल्द ही खराब हो जाते थे। लेकिन आजकल इनकी जगह वीडियो, पैन-ड्राइव आदि ने ले ली है और कैसेटों को संभालना पुराने समय की बात हो चुकी है। आधुनिक तकनीक में यादों को ज्यादा सुरक्षित तरीके से संभाला जा सकता है, जिसको बाद में भी देखने में आनंद आता है। हम अपनी यादों के प्रिंट भी निकाल कर रख सकते हैं। मोबाइल में कैद यादें कई बार गिरने और खराब होने से खत्म हो जाती हैं। उनको जिंदा रखने के लिए यादों को स्कैन करना चाहिए। यह भी सुरक्षित रखने का एक साधन है। 
कुछ यादें लिखकर भी रखी जा सकती हैं। जैसे बच्चों के जन्मदिन, वर्षगांठ और कई महत्वपूर्ण दिन आदि। यह यादें हमें एक-दूसरे के पास और रिश्तों को बनाए रखने में सहायक होती हैं। किसी धार्मिक यात्रा पर जाते हो तो अपने अनुभव को डायरी में लिखें। घर के बुजुर्ग लोग भी पुरानी यादों का पिटारा होते हैं। जिनका हमें ज्ञान नहीं होता। अपने परिवार के बारे में जानने के लिए उनके अनुभव का लाभ ज़रूर लें। इनको एप के द्वारा सेफ करके अन्य लोगों से साझा करें। अक्सर पुराने पत्रों को पढ़ कर आंखों से आंसू आ जाते हैं। कभी-कभी इन पत्रों को लिखने वाले इस दुनिया से भी चले  जाते हैं। लेकिन अपनी प्रेरणाएं और यादें पीछे छोड़ जाते हैं। जब बच्चे घर से बाहर दूर कहीं पढ़ने के लिए जाते हैं तो माता-पिता की तस्वीरें और प्यार से लिखे पत्र ही उनको सहारा देते हैं। अब पत्र लिखना लगभग खत्म हो चुका है, लेकिन यह प्रेरणा स्रोत होता है। कई लोग इनको अपने बच्चों को विरासत के रूप में देते हैं। यादों को संभाल कर रखने का मतलब आने वाली पीढ़ी को इसके बारे में बताना और दिखाना अपने बच्चे की बचपन की यादों को अधिक से अधिक संभाल कर रखें। बड़े होकर चाहे वह बहुत-सी यादें संभालते हैं, लेकिन बचपन की यादें सिर्फ माता-पिता ही संभाल सकते हैं, जोकि बहुत कीमती हैं। इन पर ही उनका जीवन निर्भर करता है। ये यादें आपसी तालमेल का एक बड़ा साधन हैं।