कानून का शिकंजा

भारत को आरम्भिक काल से ही महिलाओं के साथ की जाती ज्यादतियों के कारण शर्मसार होना पड़ा है। समय-समय पर यह ज्यादतियां अपने रूप अवश्य बदलती रही हैं, परन्तु यह बड़ी सच्चाई है कि सदियों से इस देश में महिला बड़े स्तर पर कुचली जाती रही है। पुरुष के जुल्मों को सहन करती रही है। देश के आज़ाद होने के बाद भी यह सिलसिला लगातार जारी रहा है। बड़ी शर्म की बात यह है कि चाहे समय के साथ मानवीय जागरूकता बढ़ती गई, समाज विकास के पथ पर चलता भी नज़र आया परन्तु फिर भी महिला के प्रति दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव नज़र नहीं आया। आज भी देश की चादर इन दागों से भरी पड़ी है। महिला के साथ दुष्कर्म होने के अनेकों समाचार हर कोने से निरंतर मिलते रहे हैं, परन्तु ज्यादातर महिला शर्मसारी या डर के कारण ऐसी ज्यादती को नश्र नहीं करती और यह घिनौनी घटनाएं दबकर रह जाती हैं। चाहे आज तक ऐसी घटनाएं कम नहीं हुईं, परन्तु अब महिला काफी सीमा तक होते इस घिनौने घटनाक्रम के प्रति शिकायत करने लगी है। पहले इस संबंधी भारतीय कानून काफी नरम और त्रुटिपूर्ण था, जिस कारण दुष्कर्मी अक्सर कानून के शिकंजे में फंसने से बच जाते थे। परन्तु समाज में कुछ घटनाएं ऐसी घटती हैं, जो हालात को बड़ा मोड़ देने में सक्षम हो जाती हैं। ऐसी ही एक घटना दिल्ली में दिसम्बर के महीने वर्ष 2012 को घटी थी, जिसमें एक 23 वर्षीय डाक्टरी की पढ़ाई करती लड़की का चलती बस में उसके साथी दोस्त के सामने 6 व्यक्तियों द्वारा जबरदस्ती दुष्कर्म किया गया था। लड़की और साथी के विरोध करने के कारण उनको बुरी तरह लोहे की रॉडों से मारा गया था और फिर चलती बस से नीचे फैंक दिया गया था। यह घटना पूरे देश में करंट की तरह फैल गई थी। स्थान-स्थान पर प्रदर्शन हुए थे। इसके बाद संसद और सरकार को ऐसे घिनौने कृत्यों के लिए कड़े कानून बनाने पड़े थे। इस घटना के लिए वर्ष 2013 में पांच दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाई थी, जिस सज़ा को उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था। इन 6 दोषियों में से मुख्य दोषी राम सिंह ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। एक नाबालिग दोषी को तीन वर्ष की सज़ा हुई थी। उस समय सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस को सदमे की सुनामी का नाम दिया था और कहा था कि ऐसे अमानवीय रवैये के दोषी दया के पात्र नहीं हो सकते। न्यायालय ने स्पष्ट रूप में यह भी कहा था कि यदि दोषियों को कड़ी सज़ा मिलती है तो समाज में विश्वास पैदा होगा। नि:संदेह ऐसे दरिन्दगी भरे कृत्य ने समाज की अंतर्रात्मा को हिलाकर रख दिया था। इस फैसले का देश भर में स्वागत किया गया था। क्योंकि इससे पहले और बाद में बड़ी और प्रतिनिधि संस्थाओं ने और विशेष तौर पर प्रमुख महिला संगठनों ने इसका स्वागत किया था। अब दोषियों द्वारा अपनी सज़ा संबंधी पुन: सर्वोच्च न्यायालय में डाली गई याचिका को भी सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। पंजाब में भी ऐसे घिनौने घटनाक्रम सामने आते रहे हैं, जिनमें से एक केस गैंगस्टर निशान सिंह द्वारा फरीदकोट से एक लड़की का बंदूक की नोक पर अपहरण करने का था, जिसकी बेहद चर्चा हुई थी। इसके अलावा महिलाओं पर तेज़ाब फैंकने की घटनाओं ने भी समाज में बेहद रोष पैदा किया है। इस संबंधी भी दोषियों को बड़ी सज़ाएं देने की मांग उठती रही है, जिनमें से एक मांग यह भी है कि दोषी तब तक जेल से बाहर नहीं आना चाहिए जब तक प्रभावित महिला पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाती, क्योंकि तेज़ाब से प्रभावित महिला के कभी भी पूरी तरह ठीक होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। दिसम्बर, 2012 में निर्भया नाम के इस चर्चित केस के बाद अगले वर्ष अगस्त के महीने में मुंबई में एक अंग्रेज़ी मीडिया की पत्रकार लड़की के साथ शक्ति मिल में पांच व्यक्तियों द्वारा दुष्कर्म किया गया था। इनमें से तीन दोषियों को बाद में मौत की सज़ा सुनाई गई थी। इसी तरह जनवरी, 2018 में एक 8 वर्षीय बच्ची के साथ जम्मू-कश्मीर के कठुआ के निकट रसाना गांव में दुष्कर्म करके उसको मारने के बाद भी एक तरह से वहां तूफान उठ खड़ा हुआ था, जिसने राज्य की राजनीति को भी हिलाकर रख दिया था। पठानकोट में अदालत द्वारा अब यह केस लगातार सुना जा रहा है। आज भी चाहे ऐसे दर्दनाक हादसे जारी हैं, परन्तु इनके प्रति पैदा हो रही जागरूकता तथा दोषियों के प्रति समाज में बढ़ रही नफरत और कानून का शिकंजा भी अब एक उदाहरण बनता जा रहा है, जिस कारण ऐसी घटनाओं के बड़ी सीमा तक कम होने की उम्मीद की जा रही है। इसी लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस फैसले पर लगाई गई दोबारा मोहर का एक बार फिर स्वागत किया जाएगा। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द