देश पर बढ़ता विदेशी ऋण  : दबे पांव दहलीज तक पहुंचा एक और आर्थिक संकट

एक्सटर्नल या बाहरी ऋण क्या है? यह वह पैसा है जो हमारे देश के लोगों ने विदेशी महाजन (कर्ज देने वाला) से लिया और जिसका वापस अदा किया जाना शेष है। दिसम्बर 2017 के अंत में भारत का बाहरी ऋण 513.4 बिलियन डॉलर था, जो मार्च 2017 की तुलना में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि प्रदर्शित करता है। इसमें से अधिकतर कर्ज निजी व्यापारियों पर है जिन्होंने विदेशी महाजनों से आकर्षक दरों पर उधार लिया था। तथ्य यह है कि कुल बाहरी ऋण का 78.8 प्रतिशत (404.5 बिलियन डॉलर) गैर सरकारी प्रतिष्ठानों जैसे प्राइवेट कंपनीज ने लिया हुआ है। बाहरी वाणिज्य उधार और विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड्स, जो भारतीय कम्पनियों के विदेशी उधार को जाहिर करते हैं, का आकार बहुत बढ़ गया है। यह दिसम्बर 2015 के अंत में 99,490 करोड़ रुपए था जो दिसम्बर 2017 के अंत में बढ़कर 1,72,872 करोड़ रुपए हो गया। हालांकि बाहरी ऋण को दोनों रुपए या विदेशी मुद्रा जैसे अमरीकी डॉलर में व्यक्त किया जा सकता है, लेकिन भारत का अधिकतर बाहरी ऋण डॉलर से जुड़ा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि भारतीय कर्जदारों को अपने ऋण की वापसी करते समय पहले रुपए को डॉलर में बदलना होगा। दिसम्बर 2017 तक भारत के कुल बाहरी ऋण में से लगभग 48 प्रतिशत डॉलर में था और 37.3 प्रतिशत रुपए में था। अब सवाल यह है कि इसमें खतरा क्या है? दरअसल, विदेशी उधार में दो मुख्य खतरे होते हैं। एक यह कि जिस तरह घरेलू उधार के संदर्भ में लिए गये ऋण पर ब्याज दर में अनुमान से अलग परिवर्तन हो सकता है, वैसे ही बाहरी ऋण पर भी हो सकता है। मसलन, बहुत अधिक डिफॉल्ट हो सकता है। जब ब्याज दर बढ़ जाती है तो उधार लेने वाला उच्च ब्याज दर अदा नहीं कर पाता या कठिनाई महसूस करता है, जिससे व्यवस्थित खतरे बढ़ जाते हैं। गौरतलब है कि अमरीका के फेडरल रिजर्व ने जो ब्याज दरों में वृद्धि की है उससे भारत सहित अनेक देशों में उधार लेने की दरों में इजाफा हो गया है। भारत में बांड उपज में तेजी आयी है। मसलन पिछले साल जून में 10 साल के सरकारी बांड पर यील्ड (उपज) लगभग 6.5 प्रतिशत थी जो बढ़कर लगभग 8 प्रतिशत है। एक अन्य मुख्य खतरा मुद्राओं के एक्सचेंज रेट में आशा के विपरीत परिवर्तन आना है। हाल के दिनों में रुपये के मूल्य में अप्रत्याशित गिरावट आयी है। इससे भारतीय कम्पनियों को गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। जिन कंपनियों को डॉलर में ऋण वापस करने हैं, उन्हें अब अपने पूर्व अनुमान से अधिक रुपए खर्च करने पड़ेंगे आवश्यक डॉलर खरीदने के लिए। हालांकि उधार लेने वाले आमतौर से अपनी ब्याज दर निर्धारित करते समय मुद्रा के मूल्य में संभावित उतार-चढ़ाव को संज्ञान में रखते हैं, लेकिन समस्या उस समय बड़ी हो जाती है जब आशा के विपरीत ब्याज दर में वृद्धि हो जाती है। व्यापार अनुमान का खेल है, टीवी कार्यक्रम दस का दम की तरह। अनुमान के गलत होते ही बाजी भी पलट जाती है। व्यापार में अनुमान या भविष्यवाणी हमेशा परफेक्ट नहीं होती। विनिमय दरों में आशा के विपरीत परिवर्तन से एक व्यापारी को आश्चर्यजनक लाभ भी हो सकता है और नुक्सान भी। इस साल डॉलर के मुकाबले में विभिन्न उभरती हुई बाज़ार मुद्राओं ने अपने मूल्य में जबरदस्त पतन देखा है, विशेषरूप से रुपए के मूल्य में इस साल के शुरू से अब तक लगभग 7 प्रतिशत की गिरावट आयी है। उभरती बाज़ार मुद्राओं के मूल्य में गिरावट इस वजह से आयी है क्योंकि निवेशकों में डॉलर की मांग बढ़ी है, वह उभरते बाज़ारों में अपने एसेट्स बेचना चाहते हैं और उन्हें अमरीका में निवेश करना चाहते हैं, जहां आय बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। यहां यह प्रश्न प्रासंगिक है कि इस पृष्ठभूमि में अब आगे क्या होगा? अमरीका की सेंट्रल बैंक इस साल अब तक अपनी बेंचमार्क ब्याज दर दो बार बढ़ा चुकी है। अनुमान यह है कि वह शेष 2018 में इसे दो बार और बढ़ायेगी। ब्याज दरों में अतिरिक्त वृद्धि के कारण उभरते बाज़ारों से और भी पूंजी निकाली जायेगी। इससे उधार लेने की दरों में अप्रत्याशित परिवर्तन आयेंगे और रुपए का मूल्य भी अधिक गिरेगा। गौरतलब है कि फेडरल रिजर्व के निरंतर संकुचित होते वित्तीय नीति दृष्टिकोण के कारण 10-वर्षीय अमरीकी ट्रेजरी बांड्स पर आमदनी जो पिछले साल लगभग 2 प्रतिशत थी, अब बढ़कर 3 प्रतिशत हो गई है। इससे हो यह रहा है कि निवेशकों में होड़ लग गयी है कि वह संसार के अन्य हिस्सों में अपने एसेट्स को बेचें और अपने पैसे को अमरीका में निवेश करें, जहां उन्हें बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना है। नतीजतन उभरते बाज़ारों से पूंजी निकलकर अमरीका की तरफ  फ्लो करने लगी है और उभरते बाज़ारों की कांग्रेसियों को बेचने का और डॉलर को खरीदने का दबाव बढ़ गया है। दूसरा यह कि जब फेडरल रिजर्व पैसे की सप्लाई को टाइट कर देता है तो ग्लोबल बाज़ार में अन्य कांग्रेसियों की तुलना में डॉलर की उपलब्धता कम हो जाती है। यह दोनों ही बातें उस दाम को प्रभावित करती हैं जिस पर व्यापारी अन्य कांग्रेसियों का प्रयोग करके डॉलर को खरीदने के इच्छुक होते हैं। इस स्थिति में दोनों सरकारी व गैर सरकारी विदेशी उधार लेने वाले संकट में आ जायेंगे। मार्च 2018 में रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया के पास विदेशी विनिमय रिजर्व लगभग 425 बिलियन डॉलर था। यह वह रामबाण है जिसका आरबीआई रुपए का समर्थन करने के लिए प्रयोग कर सकता है और संकट में पड़े लेनदारों को भी बेल आउट कर सकता है। लगभग चार वर्षों में आरबीआई ने इस साल जून में अपना बेंचमार्क ब्याज दर पहली बार बढ़ाया। अनुमान यह है कि वह घरेलू ब्याज दर और बढ़ाने का निर्णय ले सकता है। इस प्रयास से यह तो हो सकता है कि देश से पूंजी निकलने की धारा को थोड़ा विराम मिल जाये और रुपए को भी सहारा मिल जाये कि उसका डॉलर के मुकाबले में गिरना बंद हो जाये, लेकिन इससे यह भी हो सकता है कि घरेलू अर्थ-व्यवस्था में उधार लेने की ब्याज दर अतिरिक्त अनिश्चित हो जाये।