प्रकृति से छेड़छाड़ से जीना हुआ मुहाल 


यह तो सर्वविदित है कि मौसम में परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है। यह हमारी जिंदगी के लिए आवश्यक भी तो हैं पर ऐसे परिवर्तन अगर अहितकारी हों तो हमारा जीना ही मुहाल हो जाएगा । मौसम में एकदम इतनी वृद्धि हानिकारक है। यह सीधा-सादा ग्लोबल वार्मिंग का घातक परिणाम है । सड़कों पर दूर-दूर तक कोई पेड़ दिखाई न देना व जंगलों का सफाचट होना मौसम में अत्यधिक तेजी लाने के गंभीर कारण बन रहे हैं। कच्चे मकानों की अपेक्षा कंक्रीट के महलनुमा भवनों का निर्माण हो रहा है। जंगलों-पेड़ों के अभाव से आक्सीजन की बेहद कमी हो रही है । हम प्रकृति से इतने दूर होते चले जा रहे हैं कि खुली हवा में साँस लेना भी मुश्किल है। प्रकृति ही तो हमारी जीवनदायिनी है। पुराने समय में लोगों को प्रकृति से बेहद प्यार था। अभी भी आप देश के उस कोने में चले जाइए जहाँ चारों ओर हरियाली ही हरियाली हो वहाँ अपेक्षाकृत मौसम सुखद है। हमारा आचार-व्यवहार, खान-पान एवं रहन-सहन इतना ज्यादा बदल गया है कि हम बनावटी जीवन जी रहे हैं। खुले आसमान की अपेक्षा हमने अपने आपको घरों में कैद कर लिया है । वातानुकुलित वाहनों, घरों व कार्यालयों में बैठकर अब हम से यह भीषण गर्मी कैसे बर्दाश्त होगी ?
  एक मजदूर गर्मी में काम करता है पर उसके मुकाबले हम लोग मेहनत से जी तो चुराते हैं साथ ही हम सुविधाभोगी हो गए हैं । इसीलिए तो हम गर्मी सहन करने के सक्षम नहीं हैं । परम्परागत खान-पान का त्याग कर हम आधुनिक हानिकारक पेय पदार्थों का रसास्वादन कर रहे हैं । विदेशी कंपनियों को हमारे स्वास्थ्य से क्या लेना-देना? उन्हें तो बस अपना मुनाफा ही दिखाई देता है । कुएं, तालाब कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे । बारिश के पानी का संचयन नहीं हो रहा। 
अगर हमने विपरीत मौसम में अपने आपको रहने में सक्षम बनाना है तो हमें तुरन्त प्रकृति से प्यार करना होगा । प्रकृति व परम्परागत जीवन शैली से जुड़े। अधिकाधिक पौधारोपण करें। वृक्षों-जंगलों की स्वयं रक्षा करें। कुछेक वर्ष पूर्व ‘अजीत प्रकाशन समूह’ ने समूचे राज्य में पौधारोपन की प्रशंसनीय पहल की थी जिसके सार्थक परिणाम भी देखने को मिले थे। लोगों को भी इस नई पहल का स्वागत करते हुए और ज्यादा प्रयास करने चाहिए। । मौसम के बदलते मिजाज को अगर हम आज नहीं समझेंगे तो बहुत देर हो जाएगी। फिर हम मौसम की मार मरते रहेंगे । आओ, हम समय रहते संभलें प्रकृति के अंग-संग रहें । पहले से लगाए हुए पौधों को बढ़ा होने तक उनका संरक्षण करें । 

ब़ागी तेवर अपना रहे हैं भाजपा के सांसद धर्मवीर
भाजपा सांसद धर्मवीर ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पूर्व उप-प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल की तारीफ की है। वह पहले ही यह कह चुके हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का उनका कोई इरादा नहीं है। वह तोशाम क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ने के ख्वाइशमंद हैं। भाजपा उन्हें टिकट दे तो स्वीकार है। लेकिन जिस ढंग से उन्होंने इनेलो नेताओं की प्रशंसा की है, उससे राजनीति के जानकार कुछ और ही अंदाज लगाने लगे हैं। वह जानते हैं कि वह मौसम विज्ञानी हैं। हवा का रुख भांप कर फैसला करते हैं। धर्मवीर क्या करेंगे? जाहिर है, बिना चुनाव लड़े तो नहीं रहेंगे। किस पार्टी से लड़ेंगे, यह जानने के लिए बस थोड़ा इन्तजार कीजिए। धर्मवीर पहली बार चौधरी देवीलाल की पार्टी से विधायक व मंत्री बने थे। फिर वह कांग्रेस में विधायक व संसदीय सचिव रहे और पिछले चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होकर भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने थे। 
 ‘गब्बर’ बनाम कालिया
इन दिनों हरियाणा की एक महिला पुलिस अधिकारी संगीता कालिया चर्चा में हैं। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज उन्हें चार्जशीट कराना चाहते हैं। अनिल विज काफ़ी कड़क स्वभाव के मंत्री हैं और उनके समर्थक उन्हें गब्बर सिंह भी अक्सर कहा करते हैं। विज एक बार पहले भी संगीता कालिया को एसपी के पद से हटवा चुके हैं। जब कालिया फतेहाबाद में एसपी के पद पर थी और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज जिला कष्ट निवारण समिति के अध्यक्ष थे, उस समय दोनों के बीच तू-तू, मैं-मैं हुई और विज ने भरी बैठक में उन्हें बाहर जाने के लिए कह दिया था। कालिया जब बैठक से उठ कर बाहर नहीं गई तो खुद विज उठ कर चले गए। अब जब पानीपत जिले में कालिया एसपी थी तो वह कष्ट निवारण समिति की बैठक में हिस्सा लेने से बचती रही। कालिया जब तीनों बैठकों में नहीं पहुंची तो मुख्यमंत्री से उनकी ऐसी शिकायत की कि जिला एसपी के पद से हटा कर उन्हें भौंडसी में फर्स्ट इंडियन रिजर्व बटालियन के कमांडेंट पद पर भेज दिया गया। अनिल विज के समर्थक कह रहे हैं कि ‘गब्बर’ के वार से बचना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। इस टकराव को लोग गब्बर बनाम कालिया का भी नाम दे रहे हैं। 
बसपा की परम्परा 
बसपा के विधायकों ने हरियाणा में अब तक अपनी परम्परा लगातार कायम रखी है। हरियाणा में बसपा आमतौर पर विधानसभा की एक ही सीट पर जीतती रही है और जीतने के बाद पार्टी का इकलौता विधायक हमेशा ही सत्ता पक्ष की तरफ खड़ा नजर आता है।  सरकार चाहे किसी पार्टी की रही हो, सब के सब मुख्यमंत्री की हां में हां मिलाते रहे हैं। पृथला के विधायक टेक चंद शर्मा ने चुनाव जीतने के बाद कभी बसपा की तरफ मुड़ कर नहीं देखा।  बसपा ने उन्हें निकाल बाहर किया है, पार्टी से निष्कासन के बाद वे आज़ाद हो गए हैं।  लेकिन उन्हें याद रखना होगा कि बसपा का कोई विधायक दूसरी बार उसी पार्टी से जीत कर विधानसभा में नहीं पहुंचा है। अब टेक चंद शर्मा का भविष्य क्या होगा? ये तो चुनाव बाद ही पता चलेगा।
नैनों के बाण 
केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह जब मंच पर होते हैं, खासकर मुख्यमंत्री के साथ तो खुद को रोकना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। मुख्यमंत्री को खरी-खरी सुनाना वे अपना धर्म मानते हैं। मुख्यमंत्री के पद पर बैठने की उनकी बरसों पुरानी इच्छा है, इसीलिए बीरेंद्र सिंह माइक पकड़ते ही मुख्यमंत्री को उपदेश देने लगते हैं। इस बार बीरेंद्र सिंह और मनोहर लाल खट्टर में नैनों को लेकर बाण चले। हाल ही एक सभा में बीरेंद्र सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री को अपनी आंखें बड़ी करनी चाहिए। जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि आंखें बड़ी करने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है, उन्होंने तो अपनी आंखें पैनी कर रखी हैं। देखना आने वाले दिनों में एक दूसरे के बीच नैनों के बाण और कितने तीखे होते हैं?
भाजपा नेताओं के अलग-अलग सुर
भाजपा नेताओं के सुर आजकल एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कह रहे हैं कि अगले चुनाव में भाजपा 70 सीटें जीतेगी। भाजपा के सांसद राजकुमार सैनी सार्वजनिक तौर पर लगातार कह रहे हैं कि भाजपा के 90 फीसदी उम्मीदवार चुनाव हारेंगे। खट्टर कह रहे हैं कि भाजपा फिर सत्ता में आएगी, जबकि सैनी का कहना है कि मौजूदा सरकार के प्रति लोगों में नाराजगी है।  खट्टर कहते हैं कि किसी भी मसले को पार्टी के मंच पर हल किया जा सकता है, पर सैनी भाजपा पर जो भी हमला करते हैं, सार्वजनिक मंच से करते हैं। इस सब के बावजूद कोई नहीं समझ पा रहा है कि अनुशासित मानी जाने वाली भाजपा कुरुक्षेत्र के सांसद राजकुमार सैनी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही से इतना डरती क्यों है?
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