समलैंगिकता अपराध है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू


नई दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) : उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी याचिकाओं पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई शुरू कर दी।  प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई  चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता और समलैंगिक संबंधों को अपनाने वाले समुदाय के मौलिक अधिकारों पर विचार करेगी। शीर्ष अदालत ने वर्ष 2013 में अपने फैसले में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय ने दो समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा परस्पर सहमति से यौन संबंध स्थापित करने को दंडनीय अपराध बनाने वाली धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया था।  धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध दंडनीय अपराध है और इसके लिये दोषी व्यक्ति को उम्र कैद, या एक निश्चित अवधि के लिये, जो दस साल तक हो सकती है, सज़ा हो सकती है और उसे इस कृत्य के लिये जुर्माना भी देना होगा। इस मामले में सुनवाई शुरू होते समय गैर सरकारी संगठन नाज फाऊंडेशन के एक वकील ने हस्तक्षेप की अनुमति मांगी। इसी संगठन ने साल 2001 में सबसे पहले उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। पीठ ने कहा कि इस मामले में दायर सुधारात्मक याचिका का सीमित दायरा है और कोई अन्य पीठ को इसकी सुनवाई करनी होगी।