फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप यूरोपियन कप बनकर रह गया है

जब पेरिस में फ्रांस ने ब्राज़ील को 3-0 से पराजित किया था तो अगले दिन यानी 13 जुलाई 1998 को ‘डेली मिरर’ में सुर्खी थी ‘आर्सेनल ने विश्व कप जीता’। यह सुर्खी काफी हद तक अतिश्योक्ति थी; क्योंकि फ्रांस की तरफ से आर्सेनल के केवल एक खिलाड़ी इम्मानुएल पेटिट ने खेल शुरू किया था और बाद में लेट सब्स्टिटियूट के रूप में पैट्रिक वीएरा आये थे। दरअसल, इस सुर्खी की पृष्ठभूमि यह थी कि 1966 से 1998 तक इंग्लैंड की प्रीमियर लीग में खेलने वाले किसी खिलाड़ी ने वर्ल्ड कप नहीं जीता था। लेकिन तब से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है। रूस में खेले जा रहे फीफा विश्व कप में जो चार टीमें- फ्रांस, क्त्रोशिया, इंग्लैंड व बेल्जियम-सैमीफाइनल में पहुंचीं हैं उनके कुल 92 खिलाड़ियों में से 40 इंग्लैंड में अपनी फुटबॉल खेलते हैं। चूंकि ये चारों टीमें ही यूरोप की हैं, इसलिए यह विश्व कप एक तरह से यूरोपियन कप बन गया है। बहरहाल, महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि संसार की टॉप टीमें इस विश्व कप में सेमी फाइनल से पहले ही क्यों बाहर हो गईं? जवाब से पहले देखते हैं कि विश्व कप में हुआ क्या? कजान को महानों का कब्रिस्तान कहा जा रहा है। यहीं जर्मनी दक्षिण कोरिया से हारी और 1938 के बाद पहली बार विश्व कप में पहले राउंड में ही बाहर हो गई। कुछ दिन बाद इसी वेन्यू पर 16 के राउंड में अर्जेंटीना फ्रांस से हार कर प्रतियोगिता से बाहर हो गई। फिर 6 जुलाई को ब्राज़ील भी क्वार्टर फाइनल हार गई और ऐसी सेमीफाइनल लाइनअप छोड़ गई जिसकी भविष्यवाणी शायद ही किसी ने प्रतियोगिता से पहले की हो। विश्व कप के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि जर्मनी, अर्जेंटीना या ब्राज़ील में से कोई भी सेमीफाइनल में नहीं है। अगर 16 के राउंड में रूस के हाथों स्पेन की पराजय पर भी गौर किया जाये तो यह विश्व कप शॉक से भरा रहा है। उक्त प्रश्न का कोई एक स्पष्ट उत्तर नहीं है। प्रत्येक टीम की अपनी समस्याएं थीं। जर्मनी ने बहुत खराब फुटबॉल खेली, न गेंद पर नियंत्रण था और न आक्रमण में फोकस था। जिन वरिष्ठ खिलाड़ियों में प्रबंधक जोअशिम लो ने (शायद गलत) आस्था रखी, वह अपने रंग में नहीं थे। मिडफील्डर समी खेदिरा, डिफेंडर जेरोम बोअटेंग और फॉरवर्ड थॉमस मुलर ने निराश किया। लो को शायद यह मालूम ही नहीं था कि उनके बेहतरीन 11 खिलाड़ी कौन हैं। स्पेन रूस के खिलाफ 120 मिनट में बेहतर साइड थी, लेकिन पेनल्टी में हार गई। वैसे उसके आक्रमण में दूसरे के किले को भेदने की क्षमता नहीं थी। इस्को का प्रदर्शन ही ठीक था, रक्षापंक्ति बिखरी हुई थी और विश्व कप से दो दिन पहले प्रबंधक जुलेन लोपेतेगुई की बर्खास्तगी ने गुड़ गोबर कर दिया। अर्जेंटीना का विश्व कप से बाहर होना आश्चर्यजनक नहीं था। वह कमज़ोर टीम थी जिसने बामुश्किल ही विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया था और अति प्रतिभाशाली फ्रांस की टीम से उसकी कोई बराबरी नहीं थी। लिओनेल मेस्सी की व्यक्तिगत प्रतिभा ही लम्बे समय से अर्जेंटीना की कमजोरी व नाकामी पर पर्दा डाले हुए थी। मगर अकेला चना कब तक भाड़ फोड़ता रहता? क्वार्टर फाइनल में बेल्जियम के हाथों ब्राज़ील की शिकस्त आश्चर्य अवश्य थी, लेकिन उसे अपसेट नहीं कहा जा सकता। ईडन हजार्ड, केविन डे ब्रुय्ने और रोमेलु लुककू अपनी पोजीशंस में विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं। क्वार्टर फाइनल से पहले ब्राज़ील ने केवल एक गोल ही खाया था, लेकिन फिर भी उसका रक्षात्मक होना आश्चर्यजनक था क्या इन सबके लिए कोच को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ? शायद। जब प्लान ए काम नहीं कर रहा था तो लो विकल्प रहित प्रतीत हुए। विश्व कप से पहले जर्मनी पांच दोस्ताना मैचों में से एक भी नहीं जीत सकी थी, हां विश्व कप से कुछ दिन पहले उसने बड़ी मुश्किल से सऊदी अरब को अवश्य हराया था, लेकिन लो ने गलत व लापरवाही में यह अनुमान लगा लिया कि विश्व कप के दौरान सब कुछ ठीक हो जायेगा। 
फर्नांन्डो हिएर्रो ने संकट की घड़ी में स्पेन की कमान संभाली और वह किसी दूसरे की योजना को लागू करने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें दोषी नहीं माना जा सकता। दिशाहीन जोर्गे सम्पोली, अगर अर्जेंटीना मीडिया की रिपोर्टों को माना जाये तो क्रोशिया से हार के बाद वरिष्ठ खिलाड़ियों ने एक किनारे कर दिया था और मामला अपने हाथ में ले लिया था। टिटे ब्राज़ील में काफी सुधार लाये, खासकर रक्षापंक्ति में, लेकिन अब हार के बाद उन पर अपना पद छोड़ने का जबरदस्त दबाव होगा। इस संदर्भ में प्रशासकों के बारे में क्या कहा जा सकता है? स्पेनी संघ लोपेतेगुई विवाद को बेहतर ढंग से निपटा सकती थी। यह आदर्श स्थिति नहीं थी कि विश्व कप से कुछ दिन पहले रियल मेड्रिड ने उन्हें अपना अगला बॉस नियुक्त किया,लेकिन आखिरकार स्पेन को उस व्यक्ति की सेवाओं से वंचित होना पड़ा जिसने टीम में फिर से नई जान डाली थी। अर्जेंटीना का फुटबॉल संघ हमेशा से ही भ्रष्ट रहा है और अब तो वह कुप्रबंधन का भी शिकार है। विश्व कप से एक पखवाड़ा पहले अर्जेंटीना ने निकारागुआ व इज़राइल से दोस्ताना मुकाबले रद्द कर दिए, इन्हें पहले आयोजित करने का प्रयास ही अपने में घोटाला था। 
अर्जेंटीना ने आखिरकार विश्व कप से पहले के दो माह में मात्र एक मैच खेला और वह भी 104 रैंकिंग की हैती के खिलाफ। अर्जेंटीना में इस बात की चिंता है कि नया टैलेंट नहीं उभर रहा है। वर्तमान टीम वृद्ध हो गई है और अब भी उन खिलाड़ियों पर निर्भर करती है जो लगभग एक दशक पहले अंडर-20 विश्व कप जीत का हिस्सा थे। सवाल है अब आगे क्या होगा? डीबीएफ  ने पुष्टि की है कि लो जर्मनी के हेड कोच बने रहेंगे। घबराने की कोई बात नहीं है, जर्मनी में प्रतिभा की गहराई है। स्पेन व ब्राज़ील की जल्द धमाकेदार वापसी होगी, जबकि अर्जेंटीना को कुछ समय लग सकता है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर