प्राकृतिक नहीं है नवाज़ शरीफ को मिली सज़ा

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ, उनकी बेटी तथा दामाद को मिली सजा पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पिछले वर्ष 28 जुलाई को उच्चतम न्यायालय द्वारा नवाज़ शरीफ को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य ठहराए जाने और आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने, फिर पी.एम.एल.एन. के अध्यक्ष पद और अंतत: राजनीति से बाहर करने के फैसलों के बाद किसी को यह संदेह नहीं था कि राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो या एनएबी न्यायालय भी उनके खिलाफ  सज़ा सुनाएगा। यकीनन यह ऐसे व्यक्ति एवं परिवार के लिए संकट का समय है जो 1990 के दशक से ही पाकिस्तान की राजनीति को प्रभावित करता रहा है। लेकिन इसे जिस तरह पनामा मामले में मिली  सजा के रूप में पस्तुत किया जा रहा है वह सही नहीं है। पिछले वर्ष उच्चतम न्यायालय ने जब उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार दिया तब भी इसे पनामा पेपर्स से जोड़ा गया। अगर ऐसा है तो यह मानना पड़ेगा कि दुनिया में केवल पाकिस्तान की जांच एजेंसियां ही इतनी चुस्त और सक्षम हैं जिसने सबसे पहले पनामा पेपर की जांच कर ली। आखिर उसमें 140 नेताओं और सैकड़ों नामी लोगों के नाम थे। वास्तव में न तब का फैसला पनामा पेपर से सीधा जुड़ा था न वर्तमान फैसला ही। यह बात ठीक है कि उच्चतम न्यायालय में मामला पनामा पेपर आने के बाद ही ले जाया गया था और उसमें नवाज़ एवं उनके परिवार के खिलाफ  पहले से चल रहे भ्रष्टाचार के मामले भी शामिल कर लिए गए किंतु उस समय तक तो पनामा पेपर की जांच भी आरंभ नहीं हुई थी। उच्चतम न्यायालय ने शरीफ को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार देने के साथ एनएबी को छ: सप्ताह में मामला दर्ज कर छ: महीने में फैसला देने का आदेश दिया था। 28 जुलाई 2017 को पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय ने यह माना था कि वे सच बोलने वाले एवं ईमानदार नहीं हैं। पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 में सांसद बनने की योग्यता और अयोग्यता के प्रावधान के अनुसार सांसद को ‘सादिक’ और ‘अमीन’, यानी सिर्फ  सच बोलने वाला और ईमानदार होना चाहिए। इस कसौटी के आधार पर उन्हें न्यायालय ने पद से हटा दिया। वह फैसला एक न्यायिक तख्तापलट था जिसके पीछे पूरी भूमिका सेना की थी। उच्चतम न्यायालय ने छ: सदस्यीय ज्वाइंट इन्वेस्टिगेटिव टीम या जेआइटी यानी संयुक्त जांच दल का गठन किया था। उसने अपनी रिपोर्ट न्यायालय में सौंपी और उसके आधार पर न्यायालय ने शरीफ  को अयोग्य करार दे दिया। ऐसा पाकिस्तान को छोड़कर दुनिया में शायद ही किसी न्यायालय में होगा। जेआइटी ने अपनी रिपोर्ट में नवाज़ परिवार पर भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसमें कहा गया था कि 1990 में प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने भ्रष्टाचार किया। उनके दूसरे कार्यकाल में शरीफ  परिवार ने लंदन में संपत्तियां खरीदीं थीं। इसे घोषित संपत्ति में शामिल नहीं किया। जेआइटी के अनुसार शरीफ  परिवार यह साबित नहीं कर सका कि इन संपत्तियों की खरीद के लिए उनके पास धन सही स्रोतों से आए। इसने नवाज़ शरीफ  पर एक साथ 15 मामले दोबारा चलाने की सिफारिश की थी। इन मामलों में तीन 1994 से 2011 के बीच पीपीपी सरकार के दौरान दर्ज हुए थे, जबकि 12 अन्य परवेज मुशर्रफ  के शासनकाल में। इनमें एनएबी द्वारा लंदन में शरीफ  परिवार के चार फ्लैटों का मामला भी शामिल है। लंदन के 4 फ्लैटों से जुड़ा मामला उन 8 मामलों में शामिल है जिनकी एनएबी ने दिसम्बर 1999 में जांच शुरू की थी। पनामा लीक्स के अनुसार नवाज़ शरीफ  के बेटों हुसैन और हसन के अलावा बेटी मरियम नवाज़ ने टैक्स हैवन माने जाने वाले ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में कम से कम चार कंपनियां शुरू कीं। इन कंपनियों से इन्होंने लंदन में बड़ी संपत्तियां खरीदी। शरीफ  परिवार ने इन संपत्तियों को गिरवी रखकर डॉएचे बैंक से करीब 70 करोड़ रुपए का कर्ज लिया। इसके अलावा, दूसरे दो फ्लैट खरीदने में बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ने उनकी मदद की। पूरे कारोबार और खरीद-फरोख्त में अघोषित आय लगाई गई। इस जांच रिपोर्ट की प्रकृति एक आरोप पत्र की थी, जिस पर आगे सुनवाई किए जाने तथा आरोपियों को अपना पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। अभी एनएबी न्यायालय का फैसला लंदन के पॉश इलाके एवेनफील्ड में स्थित चार फ्लैटों से जुड़ा है। फैसले में कहा गया है कि नवाज़  परिवार ने अपनी विदेशी कंपनियों नील्सन इंटरप्राइजेज लिमिटेड और नेस्कोल लिमिटेड के जरिये 1993 से 1996 के दौरान इन्हें खरीदा था। इस मामले में शरीफ  के अलावा उनकी बेटी मरियम, दामाद सफदर और दोनों बेटे हसन और हुसैन सह-आरोपी बनाए गए थे। ब्रिटेन के लैंड रजिस्ट्री रिकॉर्ड के अनुसार, लंदन के एवेनफील्ड इलाके में ज्यादातर उन कंपनियों के फ्लैट हैं जो पनामा और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड जैसे टैक्स हैवेन वाली जगहों पर स्थित हैं। एनएबी ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद 8 सितम्बर 2018 को तीन मुकद्दमे दर्ज किए थे। यानी फ्लैटों के अलावा शरीफ  परिवार पर अजीजिया स्टील मिल्स और हिल मेटल कंपनी से जुड़े दो अन्य मामले भी चल रहे हैं। शरीफ परिवार ने सऊदी अरब के जेद्दा में सात अरब रुपये की पूंजी से अजीजिया स्टील मिल्स का निर्माण कराया था। जांच टीम के मुताबिक हिल मेटल कंपनी ने 2010 से 2015 के बीच 99.77 लाख डॉलर का मुनाफा कमाया।  इसमें से 4.04 लाख डॉलर नवाज़ शरीफ  को भेजे गए। तो इन दो मामलों पर फैसला अभी आना है। अन्य जो मामले दर्ज थे उनका क्या होगा कोई कुछ नहीं कह सकता। 
पाकिस्तान में अनेक नेताओं की विदेशों में संपत्तियां हैं। किंतु पिछले कुछ समय से नवाज़ शरीफ  परिवार पर न्यायपालिका का सबसे ज्यादा फोकस हो गया। क्या यह अकारण है? नहीं। सच यह है कि जिस आधार पर नवाज़ को प्रधानमंत्री पद ही नहीं चुनाव लड़ने तथा राजनीति करने के आजीवन अयोग्य ठहराया गया था उस आधार पर पाकिस्तान में सक्रिय शायद ही कोई नेता बचे। कार्रवाई नवाज़ और उनके करीबी वित्त मंत्री पर हुई थी। हम यह नहीं कहते कि नवाज़ परिवार पाक साफ  है, किंतु उनको ही निशाना बना कतई न्याय नहीं है। ध्यान रखिए, नवाज़ शरीफ परिवार के खिलाफ  उच्चतम न्यायालय में अवामी मुस्लिम लीग तथा ज़मात-ए-इस्लामी ने मामला दायर किया था। ये दोनो कट्टरपंथी संगठन हैं। माना जाता है कि सेना ने ही इनके नेताओं से मामला दर्ज करवाया था। इस समय सेना और न्यायपालिका के बीच अजीब किस्म का तालमेल देखा जा रहा है। नवाज़ शरीफ  ने अपने इस कार्यकाल में पाकिस्तान को बदलने की कोशिश की थी। बहरहाल, इस फैसले के खिलाफ  ऊपरी अदालत में अपील होगी। किंतु इससे नवाज़ शरीफ  एवं उनके परिवार की राजनीतिक जिन्दगी पर तत्काल विराम लग गया है। नवाज़ के लिए यह निजी दुर्भाग्य तो है ही पाकिस्तान की राजनीति के लिए भी यह बहुत बड़ी घटना है। पाकिस्तान की राष्ट्रीय राजनीति का एक प्रमुख ध्रुव का अवसान क्या परिणाम लाएगा अभी कहना कठिन है। किंतु नवाज़ की रिक्तता को भरने वाला कोई नेता या राजनीतिक समूह अभी दिखाई नहीं पड़ रहा है। आगामी 25 जुलाई को होने वाले चुनाव में ऐसा लग नहीं रहा है कि किसी पार्टी को बहुमत मिलेगा। नवाज़ के हश्र के बाद जो भी सरकार बनेगी उस पर सेना, कट्टरपंथी एवं कट्टर न्यायपालिका का भय कायम रहेगा।

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