डीप सी वेंट समुद्र में ज्वालामुखी

डीप सी वेंट एक विशाल अंतर्जलीय ज्वालामुखी है। पूर्वी प्रशांत महासागर के तल में लगभग 8,000 फुट नीचे ज्वालामुखी के फटने से यह बना है, जोकि पानी के भीतर का एक अजूबा माना जाता है। इस स्थान पर सूर्य की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती। इसका निर्माण सागर की गहराई के तल में घटित ज्वालामुखी विस्फोट और महाद्वीप परतों के खिसकने और परस्पर टकराने के कारण हुआ था। इस भौगोलिक क्रिया के कारण इन परतों के स्थानों से लावा बहकर पूरे प्रदेश पर चादर की तरह फैल गया। इस क्रिया से वहां का तापमान की 600 डिग्री  फारन्हाइट से अधिक हो गया और ज्वालामुखी दीवारों में पड़ी दरारों से उबलता हुआ पानी लावे के साथ चारों ओर फैल गया। यह प्रक्रिया कई सप्ताहों तक चलती रही। ज्वालामुखी से निकला काला धुआं वास्तव में धात्विक गुणों से युक्त था जोकि धीरे-धीरे जलगत  ज्वालामुखी का पंख बन गया और उसके गर्म लावे ने चारों और अवशेष के रूप में जगह बना ली। ज्वालामुखी फटने की इस घटना से पानी में प्रति वर्ष इंच पर कई हज़ार पौंड का दबाव बना और परिणामस्वरूप बना इंच पर कई हज़ार पौड का दबाव बना और परिणाम स्वरूप बना सुराख मैगनीज और अन्य खनिजों से भर गया। इस छिद्र की खोज से पहले वैज्ञानिक मानते थे कि समुद्र में पाए जाने वाले खजिनों को महाद्वीप , नदियों द्वारा महासागर में ले जाया जाता है। इस आश्चर्यजनक सुराख वाले स्थान पर सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती। इसलिए यहां जलगत अजूबों को मानव चलित शक्तिशाली रोशनी में देखा जा सकता है। 1977 में पहली बार आल्विन नामक पनडुब्बी के वैज्ञानिकों ने इस सुराख की तस्वीरें खींच कर दुनिया के सामने रखी। इसके अध्ययन से महासागरीय वैज्ञानिकों को इस स्थान की भोजन शृंखला का पता चला। जिसे वहां पनपने वाले जीव खाते थे। इस सुराख में जीवन का प्रारम्भ जीवाणुओं से होता है और ये ही दूसरे जीवों के लिए भोजन बन जाते है। यहां तीन सौ प्रकार की समुद्री जीवों की प्रजातियां निवास करती हैं। इनमें बारह फुट लम्बा लाल नोक वाला विशालकाय ‘ट्यूबवार्य’ प्रमुख है। जो  अपने तीन लाख सम्स्यंशकों की सहायता से पानी से भोजन खींच लेता है। यहां के नेत्रहीन केकड़े व झीगें आंकटोपस के साथ-साथ घूमते रहते हैं। जो घोघो और केकड़ों को खाकर जीवित रहते हैं। इसके अलावा गुलाबी वेट फिश समुद्री खारे स्पंज नाजुक स्टारफिश और फूलों के समान लगने वाले ऐसे आकर्षक जीव भी पाए जाते हैं, जो अपने उपांगो को चट्टानों पर चढ़ने के लिए प्रयोग करते हैं। इस अंधेरे सुराख में रहने वालों में मोलास्क की 48 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें सीप भी शामिल हैं। यहां 10 इंच लम्बी सीप भी निवास करती है। ऐसे कई अज्ञात सुराख अभी तक प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर में है, जिनकी खोज जारी है। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि इनकी खोज के बाद और यहां रहने वाले जीवाणु के अनुसंधान से शायद यह पता चले कि धरती पर जीवन की शुरुआत किस विलक्षण तरीके से हुई है।

—जी.के. खत्री
118/368 कौशलपुरी, कानपुर