पंजाब के बहु-पक्षीय संकट की जड़ें कहां हैं?

पंजाब इस समय बहु-पक्षीय संकट से गुज़र रहा है। समाचार पत्रों में हर रोज़ इस संबंधी प्रकाशित होते समाचारों से इस संकट का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इन दिनों में विशेष तौर पर युवाओं द्वारा नशे की अधिक मात्रा लेने या अधिक मात्रा वाले नशे के टीके लगाने से युवाओं के मरने के तथा दूसरी तरफ किसानों और खेत मज़दूरों द्वारा आत्म-हत्याएं करने के समाचार आ रहे हैं। इन समाचारों के अलावा युवाओं के बड़े स्तर पर अपराधों की दुनिया में प्रवेश करने के समाचार भी आ रहे हैं। कुछ युवक गैंगस्टर बनकर समाज के लिए बड़े खतरे उत्पन्न कर रहे हैं और स्वयं समय-समय पर पुलिस मुठभेड़ों में दुखद मौत मर रहे हैं। इसके अलावा अनेक युवक अपने-अपने गिरोह बनाकर बैंक लूटने, बैंक से पैसे लेकर जा रहे लोगों से पैसे छीनने, लोगों के वाहन छीनने और पैट्रोल पम्पों पर डाका मारने के कार्यों में लगे हुए हैं। 
चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘द ट्रिब्यून’ के एक समाचार के अनुसार 15 मई से अब तक 60 के लगभग युवक अधिक नशा करने के कारण मारे गए हैं। मरने वाले युवक 18 से 35 वर्ष की आयु के बीच थे। औसतन हर रोज़ एक युवक पंजाब में अधिक नशा लेने के कारण मर रहा है। चाहे पंजाब के लगभग सभी ज़िलों में से इस तरह युवकों के मरने के समाचार आ रहे हैं। परन्तु माझा में यह रुझान अधिक देखने को मिल रहा है। उपरोक्त समाचार पत्र के समाचार के अनुसार गत दो महीनों के दौरान अमृतसर-10, होशियारपुर-5, तरनतारन-5, बटाला-5, मोहाली-4, रोपड़-4, जालन्धर-3, लुधियाना-3, गुरदासपुर-3, बठिंडा-3, पटियाला-3, मोगा-2, संगरूर-2, फरीदकोट-2 और फिरोज़पुर में एक युवक अधिक नशे की मात्रा लेने के कारण मारा गया है। नशों का प्रयोग करने वाले युवकों के स्वास्थ्य के पक्ष से स्थिति कितनी चिंताजनक है इसका प्रगटावा एक अन्य समाचार से हुआ है। लुधियाना से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य रवनीत सिंह बिट्टू ने 30 युवकों को नशा छुड़ाओ अस्पतालों में उपचार के लिए भेजा था, उनमें से 14 युवक एड्स के शिकार पाए गए और अन्यों में से अधिकतर युवक काला पीलिया के शिकार थे।  जहां तक किसानों और खेत मज़दूरों की आत्म-हत्याओं का संबंध है इस संबंधी भी एक बहुत दुखद समाचार सामने आया है। भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) द्वारा दी गई एक जानकारी के अनुसार राज्य में गत 30 दिनों के दौरान 47 किसानों और मज़दूरों ने आत्म-हत्याएं की हैं। ऐसी आत्म-हत्याएं संगरूर-10, बरनाला-8, मानसा-6, बठिंडा-4, पटियाला, फिरोज़पुर, अमृतसर और फतेहगढ़ साहिब में 2-2, तरनतारन, मुक्तसर साहिब, लुधियाना, जालन्धर, मोगा तथा गुरदासपुर आदि ज़िलों में एक-एक किसान या खेत मज़दूरों द्वारा आत्महत्या की गई है। जिस तरह कि उपरोक्त हमारी ओर से ज़िक्र किया गया है, गैंगस्टरों के पुलिस मुठभेड़ों में मरने और युवकों द्वारा अलग-अलग गिरोह बनाकर लूटमार करने के समाचार भी अधिक आ रहे हैं। इसके अलावा जो अन्य समाचार आ रहे हैं, वह हैं आईलैट्स करके यहां से बड़े स्तर पर युवकों के विदेशों को रवाना होने के,क्योंकि युवकों को यहां अपना कोई भविष्य नज़र नहीं आ रहा। पंजाब की फिज़ा में हर तरफ नकारात्मक रुझान ही हावी हैं। कोई उम्मीद बंधाने वाला समाचार नहीं आ रहा, पंजाब उजड़ रहा है। 
उपरोक्त सभी समाचार इस बात की पुष्टि करते हैं कि राज्य में हालात साधारण नहीं हैं। पंजाब इस समय बहुत बड़े बहु-पक्षीय संकट से गुज़र रहा है। सवालों का सवाल यह है कि इस संकट की जड़ें कहां हैं? और इसको हल कैसे किया जा सकता है? यदि इस बहु-पक्षीय संकट की जड़ों को ढूंढने का प्रयास किया जाए, तो यह बात सामने आती है कि गत तीन-चार दशकों के दौरान केन्द्र में सत्ताधारी रही सरकारों और पंजाब में सत्ताधारी रही सरकारों द्वारा पंजाब की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को मुख्य रख कर इसके विकास के लिए उपयुक्त कदम नहीं उठाए गए। इस कारण ही यह बहु-पक्षीय संकट पैदा हुआ है। इसके लिए जितने समय की केन्द्र सरकारें ज़िम्मेदार हैं उतनी ही राज्य में सत्ताधारी रही राज्य सरकारें भी ज़िम्मेदार हैं। ज़रूरत इस बात की थी, कि राज्य में हरित क्रांति आने के बाद यहां बड़े स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योग लगाए जाते और ग्रामीण क्षेत्रों में युवकों के लिए अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर पैदा किए जाते। इससे कृषि द्वारा कच्चा माल पैदा हो रहा था, उसके उद्योग द्वारा प्रोसैंसिंग करके खाद्य वस्तुएं बनाई जाती हैं और जिनको देश-विदेश में बेचा जाता था। ऐसा होने से पंजाब के किसानों को अपनी जिंसों के मंडीकरण की समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ेगा और जिन युवाओं को कृषि के क्षेत्र में रोज़गार नहीं मिलता, वह कृषि आधारित उद्योगों में कामकाज़ करके अपनी रोजी-रोटी कमा सकते थे। पंजाब की आर्थिकता विकसित देशों जैसी बन सकती थी। परन्तु राज्य के कृषि आधारित समाज को नये औद्योगिक आधारित समाज में बदलने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों तथा शहरी क्षेत्रों में भी बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की भी बेहद ज़रूरत थी। परन्तु हमारी सरकारों ने यहां समय पर राज्य में कृषि आधारित उद्योग लगाने को कोई महत्त्व नहीं दिया, वहीं सरकारों ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों को भी बड़े स्तर पर उपेक्षित कर दिया। राज्य को दशकों तक कच्चे माल की मंडी बनाकर रखा गया। क्योंकि देश को अनाज की ज़रूरत थी। इस कारण कृषि में कोई विभिन्नता लाने की बजाए गेहूं और धान के द्वि-फसली चक्र तक राज्य की कृषि को सीमित कर दिया गया। पंजाब का जल बांट कर आधा राजस्थान को दे दिया गया और शेष आधा जल पंजाब तथा हरियाणा के बीच बांट दिया। दूसरी तरफ देश की अनाज की ज़रूरतें पूरी करने के लिए राज्य में अधिक जल लेने वाली फसल धान की कृषि को उत्साहित किया जाता रहा, इससे राज्य का भूमि निचला जल भी पाताल छूने लगा। हमारी ओर से उपरोक्त तथ्य पाठकों के समक्ष रखने का उद्देश्य यह है कि राज्य का मौजूदा बहु-पक्षीय संकट एक दिन में पैदा नहीं हुआ, अपितु यह दशकों तक राज्य में अपनाई गई गलत राजनीतिक तथा आर्थिक नीतियों का परिणाम है। यदि आज इस बहु-पक्षीय संकट को हल करना है तो इसको तस्करों की धरपकड़ करके या नशा खाने वाले युवकों को नशा छुड़ाओ केन्द्रों में भेज कर या कुछ अन्य आधे-अधूरे प्रयासों से इस पर काबू नहीं पाया जा सकेगा। इसलिए केन्द्र, राज्य सरकार और राज्य के धार्मिक तथा सामाजिक संगठनों द्वारा मिलकर संयुक्त तौर पर बहु-पक्षीय प्रयास करने पड़ेंगे। हमारे विचार अनुसार इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने बनते हैं :
* ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं में बड़े स्तर पर सुधार लाए जाएं। किसानों तथा मज़दूरों के बच्चों को सस्ती, स्तरीय और विशेषकर रोज़गारोन्मुखी शिक्षा मुहैया करवाई जाए। इसके लिए राज्य के सरकारी स्कूलों में पूरे अध्यापक भर्ती किए जाएं और स्कूलों की इमारतों को बेहतर बनाकर उनको महंगे निजी स्कूलों के बराबर खड़ा किया जाए। इसी तरह ज़िलों के स्तर से लेकर प्राइमरी हैल्थ सैंटरों तक स्वास्थ्य सेवाओं को पुनर्जीवित किया जाए। स्वास्थ्य केन्द्रों में पूरे डाक्टर हों तथा अलग-अलग तरह की दवाइयों का पर्याप्त प्रबंध हो। गम्भीर बीमारियों के इलाज के लिए ज़िला स्तर के सरकारी अस्पतालों में संतोषजनक प्रबंध किए जाएं। * चाहे बहुत देर हो चुकी है, परन्तु आज भी राज्य की बड़ी ज़रूरत यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर कृषि आधारित उद्योग लगाए जाएं। फल-सब्ज़ियों, अनाज, दूध, मछली तथा अन्य अलग-अलग रूपों में कृषि जो कुछ भी पैदा करती है, कृषि आधारित उद्योग उसकी प्रोसैसिंग करके खाद्य वस्तुएं तैयार करें और जिनका देश तथा देश से बाहर मंडीकरण करने के लिए सरकारों द्वारा पर्याप्त व्यवस्था बनाई जाए। इसके साथ युवाओं के लिए राज्य में रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे। ऐसे उद्योगों वालों को केन्द्र सरकारों की ओर से पहाड़ी राज्यों के पैटर्न पर कम से कम 20 वर्षों के लिए टैक्सों की तथा अन्य रियायतें दी जाएं। जहां तक किसानों की आत्म-हत्याओं का संबंध है उनको रोकने के लिए राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियों को एकजुट होकर केन्द्र सरकार का द्वार खटखटाना चाहिए और उस पर ज़ोर देना चाहिए कि देश की समूचे तौर पर कृषि संबंधी नीतियां और खास तौर पर उत्तर भारत संबंधी कृषि संबंधी नीतियों की पुन: पड़ताल की जाए तथा कृषि को पुन: लाभदायक धंधा बनाने के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने सहित बड़े क्रांतिकारी कदम उठाए जाएं। जब तक राज्य की राजनीतिक पार्टियां मिल कर केन्द्र सरकार पर अपना दबाव नहीं डालतीं तब तक कृषि का संकट हल नहीं होगा और न ही किसान आत्म-हत्याएं रुक सकेंगी। 10 वर्षों के बाद धान के खरीद मूल्यों में 200 रुपए की वृद्धि करने से यह संकट हल होने वाला नहीं है। चाहे श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार और उसकी समर्थक पार्टियां जो भी दावे करें, खरीफ की फसलों के जो मूल्य केन्द्र की ओर से घोषित किए गए हैं, वह अभी किसानों की लागत पूरी करने वाले नहीं हैं। मुनाफे की तो बात ही दूर है। जहां तक नशों के रुझान को रोकने के लिए तत्काल उठाए जाने वाले कदमों का संबंध है उस दिशा में मौजूदा कैप्टन सरकार को पूरी प्रतिबद्धता से कार्य करना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि राज्य में नशों की तस्करी राजनीतिज्ञों, पुलिस कर्मचारियों और तस्करों की मिलीभुगत से ही होती रही है और हो रही है। इस संबंधी समय-समय पर बहुत सारे प्रमाण भी सामने आ चुके हैं। अब कैप्टन सरकार को पूरी प्रतिबद्धता से इस माफिये की कमर तोड़ने के लिए कार्य करना चाहिए। प्रथम कार्य नशों की आपूर्ति को बंद करने का होना चाहिए और दूसरा कार्य नशों के आदी हो चुके युवाओं को नशा छुड़ाओ केन्द्रों में भर्ती करके उनका उपचार करवाने का होना चाहिए। इससे आगे उन युवकों को कोई आवश्यक काम-धंधे सिखा कर काम पर लगाने के लिए भी योजनाबंदी बनाई जानी चाहिए। सरकार द्वारा तैयार की गई सांस्कृतिक नीति को प्रभावी ढंग से लागू करके अश्लील, नशों और हथियारों को उत्साहित करने वाली गायकी को भी नकेल डालनी चाहिए ताकि युवक गुमराह न हों। हमारे विचार अनुसार यदि उपरोक्त कदम देश की केन्द्र सरकार तथा पंजाब की राज्य सरकार द्वारा मिल कर प्रतिबद्धता उठाए जाएं और इसके साथ-साथ राज्य के सामाजिक और धार्मिक संगठनों द्वारा नशों के प्रचलन तथा किसान आत्म-हत्याओं को रोकने के लिए कोई समाज सुधार जैसी बड़ी लहर शुरू की जाए, तो धीरे-धीरे पंजाबी समाज को उस अंधे कुंए से निकाला जा सकेगा, जिसमें यह इस समय गिरा नज़र आ रहा है।