राजनीतिक कशमकश का शिकार हो सकता है संसद का मानसून सत्र

कल 18 जुलाई को संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। यह 10 अगस्त को समाप्त होगा। इस समय के दौरान संसद को कामकाज़ के लिए 10 दिन ही मिलेंगे। इन 10 दिनों में 18 बिल पेश किए जायेंगे। इनमें से 9 बिल पहले ही लोकसभा में पास हो चुके हैं, जिनमें से तीन तलाक का बिल भी बहुत अहम माना जा रहा है। इस सत्र में राज्यसभा के उप-चेयरमैन का चुनाव भी किया जाना है, क्योंकि पहले उप-चेयरमैन पी.जे. कुरियन ने आगामी समय में सेवानिवृत्त होना है, परन्तु पहले ही जिस तरह का माहौल बना नज़र आता है, उसको देखते हुए इस सत्र में भी ज्यादा कामकाज़ होने की उम्मीद नहीं लगती। अगले वर्ष अप्रैल-मई में आम चुनाव होने जा रहे हैं। इसलिए इस समय के दौरान संसद का एक ही और सत्र होगा जबकि चुनाव होने के कारण आगामी वर्ष में पूरा बजट भी पास नहीं किया जायेगा। जिस तरह के विरोधी पार्टियों के तथा सरकार के तेवर दिखाई दे रहे हैं, उनसे तो इस सत्र में ज्यादा कामकाज़ होने की भी उम्मीद दिखाई नहीं देती। 
पिछले बजट सत्र में भी कोई कार्य नहीं हो सका था और यह सारा समय हंगामों में ही गुजर गया था। इस बार भी कांग्रेस के अलावा तेलुगू देशम पार्टी तथा तृणमूल कांग्रेस भी अधिक हमलावर दिखाई देती हैं। गत कुछ महीनों के दौरान अधिकतर पार्टियों द्वारा आगामी लोकसभा के चुनावों के लिए तैयारियां शुरू किए जाने के कारण माहौल वैसे ही गर्म हुआ पड़ा है। नित्य दिन राजनीतिक पार्टियों द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध आलोचना के तीर छोड़े जा रहे हैं और बड़े से बड़े दोष लगाये जा रहे हैं। यदि कांग्रेस पार्टी सरकार की उसके द्वारा स्वयं सेवक संघ का एजेंडा अपनाये जाने के कारण आलोचना कर रही है तो कांग्रेस के थरूर जैसे नेता देश को ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बनाने जैसे बयान देकर माहौल को और भी गर्म कर रहे हैं। अब नरेन्द्र मोदी ने तीन तलाक के मामले में जहां कांग्रेस के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए उसको मुसलमान पुरुषों की पार्टी कहा है, वहीं उस पर मुसलमान महिलाओं के खिलाफ खड़े होने का दोष भी लगाया है, क्योंकि प्रधानमंत्री के अनुसार तीन तलाक के मामले में कांग्रेस मुसलमान महिलाओं के अधिकारों-हितों के विरोध में खड़ी है। ऐसा ही उसने राजीव गांधी के समय शाहबानो के केस में किया था, जिसने उस समय कांग्रेस की छवि को बड़ा धक्का पहुंचाया था। परन्तु अब चिंता इस बात की है कि यदि ऐसे माहौल में संसद का मानसून सत्र परिणामों रहित गुजर जाता है तो इससे बहुत सारे लटके हुए बिल पास नहीं हो सकेंगे, जिनका अनेक पक्षों से आम लोगों के लिए बड़ा नुक्सान अपेक्षित किया जा सकता है। इस समय राजनीतिक पार्टियों को बनाए गए इस तनावपूर्ण माहौल से बाहर निकलने की आवश्यकता होगी, ताकि संसद के कार्य को बेहतर ढंग से चलाया जा सके और इसमें से कुछ सुखद परिणाम निकलने की उम्मीद की जा सके। यदि मानसून सत्र भी पिछले बजट सत्र की तरह परिणाम-रहित रहकर गुजर गया तो जहां इससे देश का बड़ा नुक्सान होगा, वहीं यह बात देश के संसदीय प्रबंध के लिए भी भारी नुक्सानदायक साबित हो सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द