प्राणियों का जीवन है जल


जल जीवन का महत्त्वपूर्ण तथ्य है। स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है। जीवधारी प्राणी भोजन के बिना कुछ दिन रह सकता है, किन्तु जल के बिना जीवन असंभव है। जल के दो स्रोत हैं—
दिव्य जल : आकाश से वर्षाकाल में सीधे प्राप्त जल दिव्य जल है। इसे वर्षा ऋतु के मध्यकाल में एकत्र किया जाता है। यह लघु, शीघ्र पचने वाला, शीतल, बलकारक, तृप्ति देने वाला, बुद्धिवर्धक एवं औषधीय रसायन है। शरद ऋतु की वर्षा का एकत्र किया गया पानी निर्दोष एवं श्रेष्ठ माना जाता है।
भौम जल : भौम जल का स्रोत पृथ्वी है। पृथ्वी के भीतर से किसी भी माध्यम से निकाला गया जल भौम जल कहलाता है। इसमें मीठा, खारा, हल्का या पौष्टिक आदि पाए जाने वाले गुण वहां की भूमि के गुणों पर निर्भर करते हैं। यह जल कुएं, तालाब, बावड़ी, नदी, झरना सबमें मिलता है। इनका पानी प्रात: काल ग्रहण करना चाहिए। इस समय का जल साफ एवं शीतल 
होता है।
जल पान विधि : अधिक जल पीने से अन्न का पाचन उचित रूप से नहीं होता। यह अग्नि को मंद कर देता है। पानी नहीं पीने से भी यही क्रिया होती है। अतएव जठराग्नि को बढ़ाने के लिए या पाचन क्रिया को ठीक रखने हेतु बार-बार थोड़ा जल पीना चाहिए।
शीतल जल के गुण : मूर्छा, पित्त, दोष, गर्मी , दाह, विष विकार, रक्त विकार, मद्य से उत्पन्न विकार, थकान, भ्रम, अजीर्ण, तमक श्वास, वमन आदि रोगों में लाभदायक है।
सामान्य पीने योग्य जल : जो जल किसी भी प्रकार की गंध से रहित हो, सुखदायक, शीतल, तृष्णा को मिटाने वाला, साफ, हल्का एवं पीने में रुचिकारक हो, वही पीने योग्य होता है।
अयोग्य जल : पहली वर्षा का पानी, चिपचिपा, कृमियों वाला पानी, पत्ते, कीचड़युक्त, दुर्गंधित पानी एवं सूर्य-चन्द्रमा की किरणें जिस पर नहीं जाती हो, अन्य ऋतुओं में बरसने वाला पानी, किसी पात्र में बहुत दिनों तक रखा गया, पानी त्याज्य है। ऐसे पानी को सेवन करने से अफारा,अरूचि, ज्वर, पाण्डु, मंदाग्नि, खुजली, वमन आदि हो सकता है।
पानी और पात्र : पानी जिस पात्र में रखा हो, उसका गुण-दुर्गुण ग्रहण कर लेता है। वर्तमान समय में ताम्र पात्र में रखा जल सेवनीय है। 
सोना, चांदी एवं मिट्टी के बर्तन में रखे जल में भी यही गुण विद्यमान होता है। सोने-चांदी का पात्र सबके सामर्थ्य में नहीं होता। मिट्टी के पात्र की सफाई बड़ी समस्या है। तांबे का पात्र सर्वसुलभ है। रात को रखा गया पानी तांबे के साथ मिलाकर कापर आक्साइड का गुण प्राप्त कर लेता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायी है। इसके तल में बचा पानी असेवनीय है।
निष्कर्ष 
* पीने योग्य पानी भोजन के एक घंटे पूर्व अथवा पश्चात् लें। तब पाचन उपयुक्त होता है। 
* भोजन के बीच में थोड़ा सा पानी पीना अमृत 
तुल्य है।
* भूख लगने पर भोजन एवं प्यास लगने पर पानी पीना उपयुक्त होता है।
* पानी शरीर के ऊर्जा स्तर को बनाए रखने में भरपूर सहायक है। अधिकतर रोग शरीर में पानी की कमी से होते हैं।
* पानी शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालता है।
* यह यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का कार्य भी करता है।
* खून को पतला करता है।
* पाचन क्रिया को बनाए रखता है।
* शरीर में सोडियम की मात्रा कम कर रक्तचाप ठीक रखता है। 
* मांसपेशियों को लचीला बनाए 
रखता है।
—सीतेश कुमार द्विवेदी