कांग्रेस-विरोध की ‘संजीवनी’ आ़िखर कब तक ? 


2019 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव के बादल मंडराने लगे हैं। लगभग सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दल ‘चुनावी मोड’ में आ चुके हैं। नए गठबंधन बनाने,अवसरवादी राजनीति के पत्ते फेंटने तथा ‘उज्जवल राजनीतिक भविष्य’ की राह तलाशने का समय आ गया है। विचारधाराओं को तिलांजलि देकर राजनीतिक ऩफे-ऩुकसान की शतरंज बिछाई जाने लगी है। लगभग प्रत्येक छोटे-बड़े चुनाव को एक उत्सव के रूप में मनाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने तो मानो अभी से चुनावी बिगुल फूंक दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देशव्यापी चुनावी दौरे अभी से शुरू हो चुके हैं और उन्होंने 2019 के चुनाव के मद्देनज़र मतदाताओं से संवाद स्थापित करना शुरू कर दिया है। भाजपा 2019 के चुनाव में जाने से पहले अपनी ही पार्टी के संभावित डैमेज कंट्रोल पर ज़्यादा ध्यान दे रही है। पार्टी जहां अपने गठबंधन सहयोगियों को अपने से दूर जाने से रोकने की पूरी कोशिश कर रही है वहीं भाजपा की कोशिश यह भी है कि आगामी चुनाव में जिन सांसदों का टिकट काटा जाए वे भी किसी तरह पार्टी छोड़कर न जाने पाएं। और यदि कोई सांसद टिकट के चलते पार्टी छोड़ भी देता है तो उसकी जगह पर उसी निर्वाचन क्षेत्र से किसी दूसरे दल के ऐसे मज़बूत प्रत्याशी को अपने साथ जोड़ा जाए जो पार्टी की जीत सुनिश्चित कर सके। पार्टी की ओर से राज्य इकाईयों को भी कथित तौर पर ऐसे निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी पार्टी का कोई भी असंतुष्ट नेता नज़र आए तो उसे भाजपा में शामिल करने में देर न की जाए।  परंतु भाजपा के दो शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह केंद्रीय सत्ता पर विराजमान होने के लगभग पांच वर्ष हो जाने के बाद भी अभी तक अपनी सरकार की उपलब्धियों तथा 2014 में पार्टी द्वारा मतदाताओं से किए गए चुनावी वादों को पूरा करने या उन्हें गिनाने के नाम पर नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी व नेहरू-गांधी परिवार को कोसने के नाम पर वोट मांगते फिर रहे हैं। भाजपा ने 2014 के अपने चुनावी संकल्प-पत्र में मतदाताओं से जिन वादों को पूरा करने का संकल्प किया था, उन वादों को याद दिलाने या उनको पूरा करते हुए दिखाने की ज़रूरत नहीं महसूस हो रही है। इसके बजाए प्रधानमंत्री शायद ही अपनी किसी जनसभा में कांग्रेस या नेहरू-गांधी परिवार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोसने से बाज़ आते हों। ऐसी स्थिति ज़ाहिर है तभी पैदा होती है जब अपनी उपलब्धियां व अपनी योग्यता बताने के लिए आपके पास कुछ न हो। 
आज 2019 के चुनाव में जाने से पहले जब भाजपा के पास अपने पिछले वादों को पूरा करते हुए दिखाने हेतु कुछ भी नहीं है तो एक बार फिर उसने बड़ी ही सोची-समझी रणनीति के तहत पुन: कांग्रेस व नेहरू-गांधी परिवार के विरोध की ‘संजीवनी’ का सहारा लेने का निर्णय किया है। नरेंद्र मोदी व अमित शाह जगह-जगह यह बताते फिरते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने एक ही परिवार का महिमामंडन करने के लिए दूसरे महापुरुषों के योगदान को नज़रअंदाज़ किया। कई बार यह ‘कुशल’ राजनीतिज्ञ कांग्रेस के ही नेताओं को वऱगलाने के लिए यह भी कहते सुनाई देते हैं कि कांग्रेस में ओैर भी कई प्रतिभावान नेता हैं परंतु उन्हें बोलने नहीं दिया जाता या आगे नहीं आने दिया जाता। जब कांग्रेस पार्टी के नेता सरकार के पिछले वादों को याद दिलाते हैं या उनसे सरकार की चार वर्ष की उपलब्ध्यिं का हिसाब मांगते हैं या चार वर्ष में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं या इनकी दूसरी साज़िशों को बेऩकाब करते हैं उस समय भाजपा के शीर्ष नेताओं द्वारा यह कहा जाता है कि चूंकि यह लोग ज़मीन से कट चुके हैं,ऐसे लोग जनता में भ्रम और निराशा फैला रहे हैं। अमित शाह तो सीधे तौर पर कांग्रेस से यही सवाल कर डालते हैं कि कांग्रेस बताए कि लश्कर जैसे आतंकी संगठन से कांग्रेस का नाता क्या है? वे राहुल गांधी को राहुल बाबा कहकर उनका मज़़ाक उड़ाने की कोशिश करते हैं जबकि राहुल गांधी उनपर अपराध व भ्रष्टाचार के कई सीधे आरोप लगा चुके हैं। यदि इनसे कोई चार सालों का हिसाब मांगता है तो यह पलटकर कांग्रेस से साठ सालों का हिसाब मांग बैठते हैं। स्वयं हिंदुत्ववाद की राजनीति करने के बावजूद कांग्रेस को ध्रुवीकरण व परिवारवाद का ज़िम्मेदार बताया जा रहा है। 
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति व तहज़ीब हमें अपनी बहुओं के मान-सम्मान की प्रेरणा देती है। परंतु सोनिया गांधी संभवत: देश की अकेली ऐसी बहू होगी जिसे भाजपा नेताओं द्वारा विदेशी महिला, रोम राज्य  या इटली का चश्मा अथवा इटालियन संस्कृति जैसे व्यंग्य भरे शब्दों से संबोधित किया जाता रहा है। जनता को वऱगलाने के लिए इन्हीं चुनावी महारथियों ने पिछले चुनाव में राम राज्य बनाम रोम राज्य का नारा भी दिया था। आज जब इनसे यह सवाल किया जाता है कि आपके राम राज्य में आ़िखर कई बड़े सरकारी प्रतिष्ठान जैसे एसबीआई,बीएसएनएल,एयर इंडिया तथा एचएएल व भारतीय रेल जैसे और भी कई संसथानों पर संकट के बादल क्यों मंडरा रहे हैं और ठीक इसके विपरीत अडानी,रिलायंस,जियो,पेटीएम तथा अनेक निजी विमानन कंपनियां मुऩाफे में कैसे जा रही हैं? आज आप यह नहीं बता पा रहे हैं कि सत्ता में आते ही जिस उत्साह के साथ आपने देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी उनमें से आ़िखर कितने स्मार्ट सिटी तैयार हुए और वह कौन से स्मार्ट सिटी हैं? आपने प्रत्येक सांसद को अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में एक-एक गांव गोद लेने का ़फरमान जारी किया था और उन गांवों को आदर्श गांव बनाने जैसी लोक-लुभावन नीति घोषित की थी। कहां हैं वह गांव और कितने आदर्श गांव अब तक बन चुके हैं? और तो और आपके अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आपके द्वारा गोद लिए गए आदर्श गांव का आ़िखर क्या हाल है देश को यह भी ज़रूर बताना चाहिए। वाराणसी को आप क्योटो बनाने चले थे। परंतु ़खबर तो यह आ रही है कि शायद मोदी जी गंगा मैया से अपना नाता तोड़ने वाले हैं। 
दरअसल मोदी व शाह के नेतृत्व में देश ने ऩफरत,सांप्रदायिक आधार पर सामाजिक विभाजन जैसी वह उपलब्धियां हासिल की हैं जिनसे देश भीतर से क़ाफी कमज़ोर हुआ है। जबकि उनके द्वारा जिस कांग्रेस पार्टी को कोसा जा रहा है व जिस नेहरू-गांधी परिवार को बार-बार नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है उस परिवार ने न केवल अतुलनीय ़कुर्बानियां दी हैं बल्कि देश को एक सूत्र में पिरोए रखने की भी भरपूर कोशिश की है। भारत के लिए कांग्रेस व नेहरू गांधी परिवार ने क्या किया है, यह मोदी व अमित शाह समझ पाएं या नहीं या जान-बूझ कर नासमझ बनने की कोशिश करें परंतु भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की संसद में इस विषय पर स्वीकारोक्ति ही अपने-आप में मोदी व शाह के पूर्वाग्रही आरोपों का म़ाकूल जवाब है। लिहाज़ा भाजपा व उसके नेताओं को अपनी उपलब्धियों व योग्यताओं के बल पर जनसमर्थन हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए न कि हमेशा कांग्रेस व नेहरू-गांधी परिवार के विरोध की ऑक्सीजन पर आश्रित रहना चाहिए।