नशों के विरुद्ध सामूहिक दायित्व की ज़रूरत


बात बेतुकी और बड़वोलापन लग सकती है लेकिन आज नहीं तो कल यह गम्भीर विचार करने लायक होगी। संदर्भ है पंजाब में नशों की बाढ़ व युवकों में इसके बढ़ते चलन को लेकर राजनीतिक पटल पर मचा घमासान। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पिछली गठबंधन सरकार विशेषकर अकाली दल और उसके कुछ नेताओं को इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं अकाली दल और भाजपा के नेता मुख्यमंत्री  पर चुनाव से पहले गुटका साहिब की कसम खाकर एक सप्ताह में नशे को खत्म कर देने की घोषणा को पूरा करने में न केवल विफल करार दे रहे हैं, बल्कि ‘नशा’ स्थिति और विकट हो जाने की बात कह रहे हैं। 
नशों को लेकर उपजी समस्या का यह एक पहलू है। इसका दूसरा पहला इससे अधिक चिंतनीय और विचारनीय है। यहां यह प्रश्न अवश्य उत्तर मांगता है कि क्या सरकारें लोगों को नशों के लिए प्रवृत्त भी करती है। इसका उत्तर तो यकीनन यह होगा कि ऐसा नहीं है। सरकार की मुख्य ज़िम्मेदारी नशों की तस्करी रोकना, तस्करों से सख्ती से निपटना और नशों को बेचने के माध्यम तत्वों से निपटना बनती है। फिर दूसरा पहला क्या है? मेरे विचार में बच्चों को संस्कारित कर सकने वाले सभी संस्थान इस मामले में नकेवल कोताही बरत रहे हैं, बल्कि वह ऐसी सोच से कोरे हैं। चाहे वह परिवार है, शिक्षा केन्द्र हैं, धार्मिक व आध्यात्मिक स्थल है, स्वयंसेवी संगठन हैं, चाहे राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन हैं, चाहे मीडिया है।
बच्चों को अच्छे संस्कार युक्त करने की पहली ज़िम्मेदारी परिवार और अभिभावकों की है जिसे वे नहीं निभा रहे। आज  के युग में स्वयं मोबाइल आदि में व्यस्त होकर पिता तो क्या, माताएं भी बच्चों से कट रही हैं। रही सही कसर मीडिया और टी.वी. चैनल पूरी कर रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा अभिभावक बच्चों को ऊंचे करियर की चिंता के बोझ से दबाये रखते हैं।  इस दृष्टि से धार्मिक, आध्यात्मिक स्थलों, राजनीतिक दलों की भूमिका भी अति-निराशाजनक है। 
यही स्थिति स्वयंसेवी व अन्य सामाजिक संगठनों व संस्थाओं की है। इन सब की सीमा कार्यक्रमों व आयोजनों तक है। इनमें भी सदस्यों को आचार, व्यवहार, विचार को उदृत बनाने की कोई सोच नहीं दिखती। कई संगठन तो जश्न मनाने और उनमें शराब परोसे जाने को अनिवार्य मानते हैं। यदि उपरोक्त सभी संस्थान, संगठन और संस्थान इस दिशा में अपना कर्त्तव्य निभाएं तो न केवल आज की पीढ़ी में सुधार होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ी का जीवन भी सुखद होगा। केवल सरकार (कोई भी हो) अकेले यह उद्देश्य पूरा नहीं कर सकती।