मुझे रिंग में मर्दों से लड़ना पसंद हैर् कविता देवी


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वह हंसते हुए बताती हैं, ‘मैं रिंग में पुरुषों से लड़ने को प्राथमिकता देती हूं। पुरुषों को हराकर मुझे गहरी संतुष्टि मिलती है; क्योंकि मैं हमेशा उसका विरोध करती आई हूं जिसका समर्थन पुरुष करते हैं। महिला उनसे बेहतर करे तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाते। मालवी गांव, जहां मेरी परवरिश हुई, जब बचपन में मैं और मेरी बहनें हंसती थीं तो मां चुप रहने को कहती थी, क्योंकि उनका मानना था कि लड़कों को ही खुलकर हंसने की अनुमति है।’‘मुझे आंखों में सुरमा व होंठों पर वेसिलीन लगाने के लिए डांट पड़ती थी। लोग कहते- ‘देखो फैशन कर रही है’। लड़के जो चाहते करते, जो चाहते पहनते। मुझे इस प्रकार के भेदभाव से चिढ़ है। मुझे अपने पैरेंट्स, अपने सुसराल के लोगों और अपने पति गौरव से लड़ना पड़ा कि मैं स्पोर्ट्स पर्सन बन जाऊं, हालांकि हमारा प्रेम विवाह हुआ था और गौरव स्वयं खिलाड़ी (वॉलीबॉल) हैं।’
लेकिन समय (शायद सफलता) के साथ उनका परिवार उनसे अधिक सहयोग करने लगा है, विशेषकर उनके पति। उनके पति ने जॉब से नफरत के बावजूद खेल छोड़ा, दिल्ली में नौकरी करनी शुरू की ताकि परिवार को सहारा दे सकें। ‘मेरे भाई संजय दलाल को एहसास हुआ कि मुझे खेलों में अधिक रूचि है और उसने मुझे प्रोत्साहित किया, मेरे बदले की सारी डांट भी खाई।’ किसान परिवार में जन्मी कविता पांच भाई बहनों में बीच की हैं। 35 वर्षीय कविता ने खेलों में अपना करियर 20 वर्ष की आयु में एक वेटलिफ्टर के रूप में शुरू किया था, मामूली आर्थिक सहयोग था, फिर भी कुछ सफलता मिली। दक्षिण एशियाई खेलों 2016 में स्वर्ण पदक भी जीता। 2016 में उनके पति व भाई ने उनकी मुलाकात खली से कराई और कविता की दिलचस्पी कुश्ती में हो गई। ‘मैंने वेटलिफ्टिंग पर कुश्ती को इसलिए प्राथमिकता दी, क्योंकि एक पहलवान के रूप में मुझे थोड़े ही समय में जो पहचान व अवसर मिले हैं वह प्रेरणादायक हैं।’  (समाप्त)
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर